When will the cleanliness campaign take place in education?
छात्रा का यह कंटेंट सोशल मीडिया में खूब वायरल हो रहा है..आप भी पढ़िए..
नमस्कार साथियों मैं क्रांति आज आप लोगों के सामने अपनी बात रखने का मौका मिला है, आज मैं स्टडी से हटकर देश भर के उन तमाम स्टूडेंट का दर्द बताना चाहूंगी जो गांव शहर से निकलते समय एक सपना देखते है और उन सपनों को पूरा करने के लिए उनके माता-पिता का खून पसीना का पैसा वह अपना गांव का आंगन अपना घर अपना बड़ा सा कमरा सब कुछ छोड़कर सपनों की नगरी में आकर एग्जाम की तैयारी करता है, सपनों के शहर में मोटी रकम और किराया का रूम, मकान मालिक का रॉब सब कुछ सहन करके रहता है, उससे भी कहीं अधिक छोटा सा रूम में खाना- पीना, पढ़ना सब कुछ करता है कभी-कभी तो ऐसा होता है, कि अचानक गैस या पानी खत्म हो जाए तो ऐसे में भूखे प्यासे ही उन्हें सोना पड़ता है, यह तो हुआ एक स्टूडेंट का दिनचर्या.
अब हम आगे बात करते हैं दूसरे पक्ष की जहां हर दिन, हर सुबह बच्चें के मां-बाप यही सपना देखते है, कि मेरा बेटा या बेटी एक दिन अपने सपने को पूरा करके घर लौटेगी या लौटेगा इस एक सपने के बारे में सोचकर माता-पिता पुनः जी तोड़ मेहनत करने में लग जाते है कि बेटा बेटी को अगले महीने का खर्च भी भेजना है, उनका दर्द का क्या? कौन सोचेगा उनके बारे में, इतना ही नहीं रिश्तेदार पूछते हैं अभी तक जॉब नहीं हुआ तुम्हारे बच्चे का सुनते ही माता-पिता का शर्म से सर झुक जाता है, सिर्फ इसलिए कि वह अपने बच्चों को पागल की तरह दिन-रात पढ़ा रहे हैं, अपने बच्चों के सपनों को अपना सपना बना लेते हैं परंतु संयोग से हम ऐसे देश में पैदा हुए हैं जहां मेहनत के बजाय पैसा योग्यता तय करती है जिनके पास जितना पैसा है वह उतना योग्य नागरिक है.
मैं पुनः आती हूं अपने विषय पर उन छात्र-छात्रा का क्या होगा? यदि इसी तरह से प्रतियोगी परीक्षाएं पानी की तरह लीक होता रहेगा तो पहले ही बता दे झूठी आशाएं ना दे बच्चों को वैकेंसी में स्पष्ट तौर पर लिख दे कि इस परीक्षा को देने के लिए कौन योग्य है और कौन नहीं है, पिछले दिनों कई परीक्षाएं ली गई और पेपर लीक हुआ, इस तरह का सिलसिला आखिर कब तक चलता रहेगा? देश के स्टूडेंट अपना समय और पैसा कब तक बर्बाद करें और कुछ तो ऐसे भी छात्र हैं जो कर्ज में डूब जाने के वजह से आत्महत्या कर लेते हैं, मैं तो एक बात बताना भूल ही गई एग्जाम के 1 दिन पहले स्टूडेंट किन परिस्थिति में परीक्षा केंद्र तक पहुंचता है इसका दर्द सिर्फ वही समझ सकता है कोई ट्रेन में पूरी रात वॉशरूम के पास खड़े होकर तो कोई जान जोखिम में डालकर ट्रेन का हेन्डल पकड़ कर जाता है, किसी को तो केंद्र तक पहुंचने के दौरान खाना तक नसीब नहीं हो पाता है.
इसका दृश्य कुछ दिनों पहले मैंने अपने आंखों से देखा परीक्षा के समय जंक्शन पर हजारों की संख्या में स्टूडेंट्स प्लेटफार्म पर प्लास्टिक बिछाकर सोए हैं क्या एक नौकरी पाने के लिए इतनी तपस्या करनी होती है एक नौकरी ही तो है जो अपने योग्यता कुशलता का जांच करके आर्थिक सुरक्षा देने का एक मात्र साधन है क्या इसके लिए हम अपने जीवन का खूबसूरत पल को त्याग कर रहें हैं और हां बात भी यही सच है आज के समय में यही हो रहा है आज के युवा को अपने सही समय पर सही चीज नहीं मिल पा रहा है, कहते हैं कि प्राचीन काल में इतनी तपस्या ऋषि मुनि करते थे तो देवता भी प्रसन्न होकर फल दे देता था परंतु आज उन विद्यार्थियों को कौन फल देगा जहां सालों साल परीक्षा की तैयारी करता है और एक ही पल में गैस की पाइपलाइन की तरह पेपर लीक हो जाता है उनके सालों साल की मेहनत सपनों पर पानी फिर जाता है उनके सपनों को कुचल दिया जाता है.
कभी-कभी तो समझ नहीं आता है कि क्या हम आजाद देश में जन्म लिए हैं आज गुलामी के मायने बदल गए हैं गुलाम तो हम आज भी हैं आज भी हमारे देश को आजादी की जरूरत है किंतू समय परिस्थिति काल के अनुसार आज की गुलामी को हम आधुनिक या बेरोजगारी की गुलामी का नाम दे सकते हैं हमारे देश में तमाम प्रदूषण को दूर करने के लिए तो योजना बनाए जाते हैं जैसे स्वच्छता अभियान, नमामि गंगे आदि शिक्षित बेरोजगारी रूपी कचरा आखिरकार कब तक साफ होगा ? “शिक्षा का स्वच्छता” अभियान, स्वच्छता रुपी योग्यता का अभियान कब शुरू होगा बहुत ही दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि असल मायने में हम आजाद कब होंगे.
मैं यह भी जानती हूं कि किसी के लिए यह साधारण सी बात होगी नौकरी पाना परंतु में उन तमाम विद्यार्थियों के बारे में बात कर रही हूं जिनके लिए नौकरी पाना किसी भगवान से कम नहीं है, जिनके कारण उनके साथ-साथ माता-पिता भी तपस्या करता है, मुझे तो इस आजाद भारत में जन्म लेने पर गर्व है जी, परंतु आजाद भारत की संकल्पना हमारे सपनों का भारत की कल्पना संविधान निर्माता स्वतंत्रता सेनानी और बापू ने किया था मैं तो बस ऐसे ही भारत की सपना देखना चाहती हूं, दुख तो इस बात का है कि आजादी के इतने सालों बाद भी हम आजाद नहीं हो पाए कमी आज भी है उन कमियों को हम इतने सालों बाद भी दूर नहीं कर पाए, आज भी आजाद भारत में हमें “गुलामी की बू” आती है, देश के नागरिको से मेरी प्रार्थना है कि मेरा उद्देश्य किसी की आलोचना करना नहीं है मेरी बस यही आप लोगों से विनती है कि हमारे देश की भविष्य रूपी युवाओं के सपनों का पंख ना काटे और प्रतियोगी परीक्षाओं में स्वच्छता और पारदर्शिता बरते और ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहूंगी बस आपको मेरे शब्दों से कष्ट हुआ होगा तो माफी चाहती हूं.