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रायपुर का कछुआ वाला शिव मंदिर: 250 साल पुराने पंचमुखी शिवलिंग के दर्शन मात्र से होती संतान की प्राप्ति

Tortoise Shiv Temple of Raipur

रायपुर के सरोना गांव में 250 साल पुराना प्राचीन शिव मंदिर है, खास बात है कि यहां शिवलिंग पंचमुखी है, यह मंदिर दो तालाबों के बीच में बना हुआ है, दोनों तालाब इस मंदिर की खूबसूरती बढ़ाते हैं, बताया जाता है कि इस मंदिर के नीचे से तालाब का पानी बहता है, लोग इसे कछुआ वाले शिव मंदिर के नाम से भी जानते हैं, दोनों तालाब में 100 साल से अधिक उम्र के दो कछुओं समेत कई कछुए रहते हैं, जिसे देखने के लिए श्रद्धालु घंटों तालाब के किनारे खड़े रहते हैं.

रायपुर का कछुआ वाला शिव मंदिर: 250 साल पुराने पंचमुखी शिवलिंग के दर्शन मात्र से होती संतान की प्राप्ति

शिव मंदिर की विशेषता
मंदिर के पुजारी बताते है कि इस मंदिर को राजपूतों ने बनवाया था, 14 गांव के मालिक स्व. गुलाब सिंह ठाकुर नि:संतान थे, सरोना गांव के आसपास जंगलों में नागा साधुओं ने डेरा जमाया था, स्व. ठाकुर ने संतान प्राप्ति के लिए कई मन्नत मांगी, इस दौरान उनकी मुलाकात नागा साधुओं से हुई, इस पर साधुओं ने गांव के पास तालाब खुदवाकर शिव मंदिर बनाने की सलाह दी, इस पर तालाब खुदवाकर वहां शिव मंदिर बनवाया गया, इसके बाद ठाकुर परिवार को दो संतान की प्राप्ति हुई.

आज भी इस मंदिर में लोग संतान प्राप्ति की कामना लेकर आते हैं, भोलेनाथ की कृपा नि:संतान लोगों पर बरसती हैं, यहां न सिर्फ छत्तीसगढ़ से बल्कि दूसरे राज्यों से भी लोग संतान प्राप्ति की कामना लेकर पहुंचते हैं.

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कछुओं की होती है पूजा
यह मंदिर जितना पुराना है, उतने ही पुराने इस तालाब में रहने वाले कछुए और मछलियां हैं, पुजारी जी के अनुसार, यहां के तालाब में मछलियां और कछुए भगवान शिव का ही अवतार माने जाते हैं, इन्हें नुकसान पहुंचाने वालों के साथ गंभीर दुर्घटना हो सकती है, इसलिए यहां आसपास रहने वालों ने कभी इस तालाब की मछलियां या कछुए पकड़ने की कोशिश नहीं की, इतना ही नहीं किसी बाहरी व्यक्ति भी ऐसा करने की कोशिश की तो अंजाम बुरा होता है, यहां लोग मछली और कछुए को भगवान का अवतार मानकर उनकी पूजा करते हैं और उन्हें प्रसाद के रूप में आटा खिलाते हैं.

अनोखा है मंदिर का गर्भगृह
इस मंदिर गर्भगृह में पंचमुखी शिवलिंग के साथ महादेव, पार्वती और भगवान गणेश की ऐसी प्रतिमा है, जिसमें महादेव ने अपनी गोद में भगवान गणेश को लिए हुए हैं, हंस पर सवार ब्रम्हा की मूर्ति स्थापित है, यहां विष्णु की प्रतिमा गरूढ़ के साथ विद्यमान है, गणेश और पार्वती भी विराजे हैं। द्वार रक्षक कीर्तिमुख है, पांच मुख वाले शिव भी विराजमान हैं, मान्यता है कि शिव की पूजा करने से हर मनोकामना पूरी होती है, हर साल सावन और महाशिवरात्रि पर यहां विशेष पूजा की जाती है, सन 1838 ईसवीं में इस मंदिर का निर्माण हुआ था, मंदिर की देखरेख ठाकुर परिवार करता है.

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