Second Sawan Somvar
श्रावण मास का सावन सोमवार व्रत बाबा भोलोनाथ की असीम कृपा पाने और उन्हें प्रसन्न करने के लिए बेहद विशेष महत्व वाला माना जाता है। इस साल सावन की खाश बात ये है कि सावन की पहली शुरुआत ही सोमवार से हुई थी और इसका समापन भी सोमवार के दिन ही होगा। इस बार सावन में 5 सावन सोमवार व्रत हैं, जिसकी वजह से भी सावन का महीना बेहद महत्वपूर्ण है।
आज सावन का दूसरा सोमवार है। सावन सोमवार भगवान शिव की पूजा के लिए समर्पित है। भक्त सावन में बाबा भोलेनाथ की पूजा उपासना कर महादेव का आशीर्वाद पाने के लिए सोमवार के दिन व्रत रखते है। धार्मिक मान्यता है कि सावन महीने के सोमवार को भगवान शिव की विधि विधान के साथ पूजा अर्चना करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
Second Sawan Somvar
दूसरा सावन सोमवार मुहूर्त और योग
- सावन के दूसरे सोमवार पर भरणी नक्षत्र प्रातः 10 बजकर 55 मिनट तक है, उसके बाद से कृत्तिका नक्षत्र है।
- शुभ योग की बात करें तो गण्ड योग सुबह से शाम 05 बजकर 55 मिनट तक है, इसके बाद वृद्धि योग प्रारंभ होगा।
- सोमवार को ब्रह्म मुहूर्त प्रातः काल 04 बजकर 17 मिनट से 04 बजकर 59 मिनट तक है।
- अभिजीत मुहूर्त दोपहर 11 बजकर 48 मिनट से बजे से 12 बजकर 42 तक है।
पूजन विधि
इस बार सावन मास में पांच सोमवार होंगे। सावन मास के सोमवार पर अपनी मनोकामना पूर्ण हेतु आप भगवान शिव की 108 बेलपत्रों से भगवान की पूजा करें। भगवान शिव पर एक-एक बेलपत्र अर्पित करते हुए ” ॐ साम्ब सदा शिवाय नमः ” का लगातार जाप करें। इससे आपकी मनोकामना पूर्ण होंगी और जीवन में निरंतर सफलता प्राप्त होंगी।
- सावन सोमवार के दिन सुबह उठकर स्नान कर साफ कपड़े पहन लें।
- इसके बाद मंदिर की सफाई कर गंगाजल के छिड़काव करें।
- फिर शिवजी का दही, गंगाजल, दूध, घी और शक्कर आदि से रुद्राभिषेक करें।
- इसके बाद उन्हें बेलपत्र, चंदन, अक्षत, फल आदि चीजें अर्पित करें।
- फिर दीपक जलाकर आरती करें और शिव मंत्रों का जप करें।
- इसके साथ ही शिव चालीसा का पाठ करना भी शुभ फलदायी होगा।
- अंत में महादेव को सफेद मिठाई, हलवा, दही, पंचामृत, भांग का भोग लगाएं।
- बाद में इस प्रसाद को सभा लोगों में वितरण करें।
Second Sawan Somvar
सावन मास का महत्व
पौराणिक मान्यताओ के अनुसार समुद्र मंथन श्रावण मास में हुआ था। उस समय समुद्र मंथन से 14 प्रकार के तत्व 14 रत्न निकले । इनमें से 13 तत्वों व रत्नों देवताओं व दानवों ने आपस में वितरण कर लिया। उन तत्वों में से एक तत्व हलाहल विष भी निकला। वह हलाहल विष को महादेव ने अपने कंठ (गले) में धारण किया। उससे भगवान शंकर का गला नीला पड़ गया, इससे भगवान शंकर नीलकंठ कहलाए। परंतु उस विष की गर्मी इतनी अधिक थी की देवताओं को गर्मी शांत करने का कोई उपाय नहीं सूझा।
इस पर चंद्रदेव को शिव शंकर ने मस्तक पर धारण किया था तथा भगवान शंकर के मस्तक पर ही गंगा अवतरित किया जिसके बाद भी ताप कम नहीं हुआ। तब जाकर सहस्त्र जलधाराओं से भगवान शंकर का अभिषेक किया गया। तभी से भगवान शंकर पर जल चढ़ाने की परंपरा व धारणा चली आ रही है।
ऐसा भी कहा जाता है कि सावन सोमवार का व्रत करने से माता पार्वती को भगवान शिव पति रूप में मिले थे, इसलिए यह व्रत मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए अविवाहित महिलाओं द्वारा भी रखा जाता है। वहीं, विवाहित महिलाएं अपने खुशहाल वैवाहिक जीवन के लिए यह व्रत रखती हैं। सावन का महीना भगवान शिव को प्रिय माना जाता है और सावन के सभी सोमवार बहुत शुभ होते हैं।
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अलग अलग जलाभिषेक का महत्व
- जल से शिव का अभिषेक करने पर दीघार्यु प्राप्ति होती है तथा विघ्नों का नाश होता है।
- दूध से अभिषेक करने पर स्वस्थ शरीर व निरोगी काया प्राप्त होती है।
- गन्ने के रस (इक्षु रस) से शिवजी अभिषेक करने पर लक्ष्मी जी की कृपा प्राप्त होती है तथा व्यक्ति संपन्न होता है।
- इत्र से (सुगंधित द्रव्य) से अभिषेक करने पर व्यक्ति कीर्तिवान होता है।
- शक्कर से अभिषेक करने पर पुष्टि में वृद्धि होती है।
- आम रस से अभिषेक करने पर योग्य संतान प्राप्ति होती है।
- गंगाजल से अभिषेक करने पर मुक्ति (मोक्ष) प्राप्त होता है।
- घी से शिव का अभिषेक करने से संपन्नता आती है।
- तेल से अभिषेक करने पर विघ्नों का नाश होता है।
- सरसों के तेल से श्रावण मास में शिवजी का अभिषेक करने से शत्रुओं का शमन होता है।