Mata Sita Divine Saree
रायपुर। रामायण की कथा में एक अनोखा प्रसंग, रामायण केवल श्रीराम की मर्यादा की गाथा नहीं है, बल्कि इसमें माता सीता की त्याग, धैर्य और सतीत्व की कहानी भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। जब श्रीराम को 14 वर्षों का वनवास मिला, तो सीता जी ने पत्नी धर्म का पालन करते हुए उनके साथ वन में जाने का निर्णय लिया। साथ में राम के छोटे भाई लक्ष्मण भी थे।
वनवास पर जाने से पहले, वे सभी अत्रि ऋषि के आश्रम पहुंचे। वहीं पर एक बहुत खास घटना घटी, जिसका उल्लेख श्रीरामचरितमानस और पुराणों में मिलता है।
माता अनसुइया से मिला दिव्य उपहार
अत्रि ऋषि की पत्नी माता अनसुइया, जिन्हें त्रेता युग की महान पतिव्रता स्त्री माना जाता है, ने माता सीता का स्वागत अत्यंत स्नेह और श्रद्धा से किया। उन्होंने सीता जी को सतीत्व की शिक्षा दी, जो एक स्त्री के जीवन में पवित्रता, समर्पण और चरित्र की महत्ता को दर्शाती है।
सीता जी को जब विदा करने का समय आया, तब माता अनसुइया ने उन्हें एक दिव्य पीले रंग की साड़ी भेंट में दी। लेकिन यह कोई साधारण साड़ी नहीं थी, इसमें विशेष चमत्कारी गुण थे।
Mata Sita Divine Saree
क्या थी इस दिव्य साड़ी की खासियत?
- यह साड़ी कभी मैली नहीं होती थी, चाहे कितनी भी कठिन परिस्थिति हो या मौसम कैसा भी क्यों न हो।
- यह फटती या घिसती नहीं थी, इसलिए पूरे 14 वर्षों तक बिना किसी बदलाव के माता सीता इसे पहनती रहीं।
- यह साड़ी दिव्य ऊर्जा से युक्त थी, जिसे पहनकर सीता जी का तेज और अधिक बढ़ गया था।
- यह वस्त्र केवल एक भौतिक परिधान नहीं, बल्कि माता सीता के तप और सतीत्व का प्रतीक बन गया।
साड़ी का आध्यात्मिक महत्व
धार्मिक दृष्टिकोण से यह माना जाता है कि यह साड़ी केवल कपड़ा नहीं, बल्कि एक दिव्य कवच थी, जो माता सीता की रक्षा करती थी। यही कारण है कि वनवास की कठिन परिस्थितियों में, राक्षसों और असुरों के बीच रहते हुए भी माता सीता का तेज और सम्मान अक्षुण्ण बना रहा।
आध्यात्मिक संदेश
इस कथा से यह संदेश मिलता है कि सच्चे सतीत्व, चरित्र और तप के कारण एक स्त्री में ऐसी दिव्यता आ जाती है कि प्रकृति भी उसके साथ सहयोग करने लगती है। माता अनसुइया द्वारा दी गई यह साड़ी केवल एक उपहार नहीं थी, वह एक स्त्री सशक्तिकरण का प्रतीक थी — एक ऐसी स्त्री जो कठिनाइयों में भी अपने धर्म, चरित्र और मर्यादा को नहीं छोड़ती।
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