Korba Secl News
कोरबा। देश ही नहीं बल्कि एशिया की सबसे बड़ी खदान बनने का मार्ग साऊथ ईस्टर्न कोलफिल्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) की गेवरा परियोजना के लिए खुल गया। खदान की मौजूदा उत्पादन क्षमता 52.5 मिलियन टन से बढ़ाकर 70 मिलियन टन प्रति वर्ष करने के लिए पर्यावरणीय स्वीकृति एसईसीएल को मिल गई है।
मंत्रालय द्वारा पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से लगातार समन्वय बनाकर रिकार्ड समय में गेवरा परियोजना को पर्यावरण स्वीकृति दिलाने में मदद की, जो कि राष्ट्र की ऊर्जा आकांक्षाओं की पूर्ति में महत्वपूर्ण योगदान देगी। वर्ष 2023-24 में 600 लाख टन उत्पादन का लक्ष्य है और आने वाले वर्ष 2024-25 में 700 लाख टन उत्पादन की तैयारी है। इसके साथ ही यह एशिया महाद्वीप की सबसे बड़ी कोयला उत्पादक खदान बन जाएगी।
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गेवरा परियोजना ने देश की सबसे बड़ी कोयला खदान बनने का गौरव हासिल किया है। यह खदान 40 से अधिक वर्षों से देश की ऊर्जा सुरक्षा में अपना सफल योगदान दे रही है। खदान की लंबाई लगभग दस किलोमीटर और चौड़ाई चार किलोमीटर है। खदान में सरफेस माइनर, रिपर माइनिंग के रूप में पर्यावरण- अनुकूल ब्लास्ट- रहित खनन तकनीक का प्रयोग किया जाता है।
खदान में ओवरबर्डन हटाने के लिए 42 क्यूबिक मीटर सावेल और 240 टन डंपर जैसी उच्चतम क्षमता वाली दुनिया की सबसे बड़ी एचईएमएम मशीनों का उपयोग किया जाता है। इसमें पर्यावरण-अनुकूल कोयला निकासी के लिए कंवेयर बेल्ट, साइलो और रैपिड लोडिंग सिस्टम से सुसज्जित फर्स्ट-माइल कनेक्टिविटी भी है।
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चालू वित्तीय वर्ष में कुसमुंडा परियोजना 500 लाख टन कोयला उत्पादन के वार्षिक लक्ष्य दिया गया है, इसे हासिल करने खदान आगे बढ़ रही है। वरिष्ठ अधिकारीयों द्वारा लगातार खदानों का निरीक्षण भी किया जा रहा है। मंगलवार को संचालन एसएन कापरी कुसमुंडा क्षेत्र पहुंचे तथा वह कर्मियों से मुलाकात कर उनका उत्साह बढ़ाया।
उन्होंने कुसमुंडा के नीलकंठ, बरकुटा, कैट पैच का भी निरीक्षण कर कोयला उत्पाद की गतिविधियों को बढ़ाने का भी निर्देश दिए। इस अवसर पर सीएमडी डा प्रेम सागर मिश्रा ने कहा कि इस वित्तीय वर्ष में कुसमुंडा क्षेत्र समेकित प्रयास से निश्चित ही अपना उत्पादन लक्ष्य हासिल करेगी। गेवरा खदान ने आधुनिक और पर्यावरण के अनुकूल खनन प्रौद्योगिकी के समावेश के माध्यम से कोल इंडिया की परियोजनाओं में अपना एक विशेष स्थान बनाया है।