Bastar Dussehra
बस्तर दशहरे की सदियों से चली आ रही अनोखी परम्परा की महत्वपूर्ण रस्मों में से एक निशा जात्रा की रस्म नवरात्रि की महाष्टमी को देर रात निभाई गई। बता दें कि इस रस्म को पूरा करने के लिए करीब 12 बकरों की बलि दी जाती है।
यह 616 साल पुरानी परंपरा है। बस्तर राज परिवार के सदस्य कमलचंद भंजदेव ने आधी रात मां खमेश्वरी की पूजा-अर्चना कर इस रस्म को पुर विधि-विधान से पूरा किया। उन्होंने बुरी प्रेत आत्माओं से राज्य की रक्षा करने देवी मां से कामना की।
Bastar Dussehra
मिली जनकारी के मुताबिक इस अनोखे और अनूठे रस्म की शुरुआत करीब 616 साल पहले की गई थी। इस तंत्र विधाओं की पूजा राजा-महाराजा बुरी प्रेत आत्माओं से राज्य की रक्षा के लिए करते थे। सालों से चली आ रही परंपरा के अनुसार निशा जात्रा विधान को पूरा करने के लिए करीब 12 गांव के राउत ने माता का भोग प्रसाद तैयार किया।
निशा जात्रा पूजा के लिए भोग प्रसाद तैयार करने का जिम्मा राजुर, नैनपुर, रायकोट के राउत का होता है। ये समुदाय के लोग ही भोग प्रसाद कई सालों से माता खमेश्वरी को अर्पित कर रहे हैं।