रायपुर, 01 नवंबर। Bastar : बस्तर की कठिन भौगोलिक परिस्थितियों और आदिवासी बहुल इलाकों में विकास की राह प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) ने खोल दी है। जहां कभी बरसात में कीचड़ और सूखे में धूल ही रास्ता हुआ करती थी, वहीं अब पक्की, चौड़ी और मजबूत सड़कों ने इन इलाकों को मुख्यधारा से जोड़ दिया है। शासन की बारहमासी आवागमन सुविधा उपलब्ध कराने की प्रतिबद्धता ने बस्तर की तस्वीर ही बदल दी है।
2388 किलोमीटर सड़कों का निर्माण, 856 करोड़ से अधिक व्यय
वर्ष 2000-01 से अब तक बस्तर जिले में पीएमजीएसवाई के अंतर्गत 2388.24 किलोमीटर लंबी सड़कों का निर्माण पूरा हो चुका है, जिस पर 856 करोड़ 80 लाख रुपये से अधिक की राशि खर्च हुई है। डामरीकृत, सीमेंट-कांक्रीट और नवोन्मेषी तकनीकों से बनी ये सड़कें केवल आवागमन का माध्यम नहीं, बल्कि बस्तर के ग्रामीण जीवन की जीवनरेखाएं बन चुकी हैं।
1420 बसाहटें पहली बार शहरों से जुड़ीं
दरभा, बास्तानार और लोहंडीगुड़ा जैसे उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों की 1420 बसाहटें अब शहरों से सीधे जुड़ चुकी हैं। पहले जहां एक मरीज को अस्पताल ले जाने में घंटों लगते थे, आज एम्बुलेंस गांव के आंगन तक पहुंच रही है। स्कूल जाने वाली बच्चियां, जो बरसात में किताबें प्लास्टिक में लपेटकर ले जाती थीं, अब बस और टैक्सी से सुरक्षित स्कूल पहुंचती हैं।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मिला नया जीवन
वनांचल में उत्पादित महुआ, चार, इमली, जंगली शहद और बांस के हस्तशिल्प अब जगदलपुर, रायपुर और बिलासपुर के बाजारों तक आसानी से पहुंच रहे हैं। इससे ग्रामीणों की आमदनी में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है। कृषि और उद्यानिकी उत्पाद भी अब बिना रुकावट बाजारों तक पहुंच रहे हैं।
451 सड़कों और 16 पुलों का निर्माण पूरा
पीएमजीएसवाई के तहत जिले में कुल 451 सड़कों को स्वीकृति मिली, जिनमें सभी का निर्माण पूरा हो चुका है —
- फेज-1: 426 सड़कें (1993.51 कि.मी.)
 - फेज-2: 5 सड़कें (94.35 कि.मी.)
 - फेज-3: 20 सड़कें (300.38 कि.मी.)
 
साथ ही, 42.30 करोड़ रुपये की लागत से 16 बड़े पुलों का निर्माण हुआ है। ये पुल नदियों और नालों पर यातायात को सुगम बनाने के साथ आपदा के समय जीवनरक्षक साबित हो रहे हैं।
नए चरण में टिकाऊ और हरित सड़कों की योजना
वर्ष 2025-26 में पीएम-जगुआ और पीएमजीएसवाई फेज-4 के तहत 295 बसाहटों का सर्वेक्षण जीओ-सड़क ऐप और ड्रोन तकनीक की मदद से पूरा किया गया है। 87 सड़कों का डीपीआर तैयार कर केंद्र को स्वीकृति के लिए भेजा गया है। नई सड़कों में जलवायु अनुकूल डिजाइन, सौर ऊर्जा से संचालित स्ट्रीट लाइट और वर्षा जल संचयन प्रणाली शामिल की जाएगी।
ग्रामीणों की जुबानी बदलाव की कहानी
- बुधरी बाई (ककनार गांव, दरभा): “पहले बीमारी में बेटा कंधे पर उठाकर ले गया था, अब गाड़ी आती है, दवा मिलती है, जिंदगी बचती है।”
 - कविता नाग (तोकापाल): “अब कॉलेज जाने में डर नहीं लगता। सड़क है, तो सपना भी पूरा होने की उम्मीद है।”
 - रामू कश्यप (स्थानीय व्यापारी): “पहले महुआ-इमली बिचौलिए सस्ते में ले जाते थे, अब खुद बाजार ले जाते हैं, दाम अच्छा मिलता है।”
 
पर्यटन और स्थानीय रोजगार को भी मिला बल
नई सड़कों ने चित्रकोट जलप्रपात, तीरथगढ़ और कुटुमसर गुफाओं जैसे पर्यटन स्थलों तक पहुंच आसान कर दी है। इससे होमस्टे, इको-टूरिज्म और स्थानीय रोजगार को बढ़ावा मिल रहा है। स्वास्थ्य विभाग की मोबाइल मेडिकल यूनिट अब गांव-गांव तक पहुंच रही हैं और मनरेगा से सड़कों के रखरखाव में रोजगार भी बढ़ा है।
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना ने बस्तर को न केवल सड़कों से, बल्कि आत्मविश्वास, अवसर और उम्मीद से जोड़ा है। ग्रामीण अब गर्व से कहते हैं “सड़क आई, तो रोशनी आई, शिक्षा आई, इलाज आया — और उम्मीद भी आई।” बस्तर की ये सड़कें अब सिर्फ गंतव्य तक पहुंचने का जरिया नहीं, बल्कि नए भारत के गांवों तक विकास की डोर बन चुकी हैं।


