Uttar Pradesh News
हमीरपुर। उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले से एक ऐसी खबर सामने आई है जिसने पूरे प्रशासनिक सिस्टम को कटघरे में खड़ा कर दिया है। यमुना नदी पर बने कानपुर-सागर राष्ट्रीय राजमार्ग (एनएच-34) के पुल की मरम्मत के चलते शनिवार को सभी वाहनों की आवाजाही बंद कर दी गई थी। यह आदेश हर शनिवार और रविवार को लागू होता है, जब पुल की मरम्मत का कार्य किया जाता है। लेकिन बंदी के दौरान भी वीआईपी संस्कृति ने एक बार फिर से इंसानियत को शर्मसार कर दिया।
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शनिवार सुबह 6:10 बजे पुल को बंद किया गया। इसके कुछ ही मिनटों बाद, सुबह 6:44 बजे सदर विधायक की कार को पुल पार कराने के लिए बैरिकेडिंग हटा दी गई। यह वाहन आसानी से पुल पार कर गया, जबकि आम जनता के लिए रास्ता बंद रहा। विधायक का कहना है कि वह खुद उस गाड़ी में मौजूद नहीं थे, बल्कि उनके बीमार भाई को लेकर उनके पिता कानपुर गए थे। लेकिन सवाल यह है कि जब पुल बंद था तो किसी भी सरकारी या वीआईपी वाहन को कैसे निकाला गया?
इसी दिन सुबह 9:30 बजे, सुमेरपुर के टेढ़ा गांव निवासी बिंदा अपनी 63 वर्षीय मां शिवदेवी का शव लेकर कानपुर से एक निजी एंबुलेंस में गांव लौट रहे थे। जब एंबुलेंस यमुना पुल पर पहुंची तो वहां तैनात सुरक्षा कर्मियों ने उसे रोक दिया और पुल पार करने की अनुमति नहीं दी। बिंदा ने विनती की, गुहार लगाई, लेकिन नियम का हवाला देकर रास्ता नहीं दिया गया। अंततः उसे मां का शव स्ट्रेचर पर रखकर एक किलोमीटर लंबा पुल पैदल पार करना पड़ा।
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यह दृश्य देख वहां मौजूद लोग स्तब्ध रह गए। एक बेटे को अपनी मां की अंतिम यात्रा भी सम्मानपूर्वक पूरी कराने की अनुमति नहीं मिली। शव लेकर पुल पार करना उसकी मजबूरी थी, क्योंकि वैकल्पिक मार्ग कुरारा-मनकी की हालत बदतर है। 25 किलोमीटर की दूरी तय करने में दो घंटे से ज्यादा लगते हैं, और गड्ढों से भरी सड़कें किसी शव वाहन के लिए पूरी तरह अनुपयुक्त हैं।
बताया जा रहा है कि यमुना पुल की मरम्मत के लिए पीएनसी कंपनी ने पिलर नंबर 10 पर काम शुरू किया है। कोठी की दो बेयरिंग बदली गईं और छह की मरम्मत की गई। यह काम जुलाई तक हर सप्ताहांत में चलता रहेगा। इस दौरान पैदल आवाजाही पर रोक नहीं है, लेकिन किसी भी प्रकार के वाहन की एंट्री निषिद्ध है। हालांकि यह नियम सिर्फ आम नागरिकों पर लागू होता नजर आ रहा है।
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अंतरराष्ट्रीय योग दिवस (21 जून) को भी एक प्रमुख सचिव का काफिला पुल बंद होने के बावजूद पार कराया गया था। वहीं कई बार मंत्रियों के वाहनों को भी छूट दी गई है। लेकिन जब बात आम आदमी की आती है, तब सिस्टम पूरी सख्ती के साथ अपने दरवाज़े बंद कर देता है, भले ही वह किसी के जीवन या मृत्यु का मामला क्यों न हो।
यह घटना मीडिया में सामने आते ही सोशल मीडिया पर वायरल हो गई। आम लोग प्रशासन से सवाल कर रहे हैं कि जब वीआईपी गाड़ियों को पास मिल सकता है तो क्या एक शव वाहन को इतनी भी इजाज़त नहीं दी जा सकती कि वह सम्मान के साथ किसी की अंतिम यात्रा पूरी कर सके?
यह सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि उस सिस्टम की बेजान सोच को दर्शाती है जो संवेदनाओं को ताक पर रखकर ‘नियम’ की दीवार खड़ी कर देता है। एक बेटे की मां की अंतिम यात्रा के लिए यह दिन सिर्फ एक संघर्ष नहीं था, यह सवाल था उस व्यवस्था पर जो आम और खास के लिए अलग-अलग नियम बनाती है।
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