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Tuesday, June 17, 2025

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Shardiya Navratri 2024 4th Day : शारदीय नवरात्रि के चौथे दिन करें माँ कुष्मांडा की पूजा-अर्चना, जानें पूजा विधि, मंत्र, मुहूर्त, भोग, महत्व

Shardiya Navratri 2024 4th Day

रायपुर। शारदीय नवरात्रि 3 अक्टूबर, 2024 से आरंभ हो चुकी है। शारदीय नवरात्रि के चौथे दिन मां दुर्गा के चौथे स्वरुप मां कुष्मांडा की पूजा अर्चना की जाती है। मां कुष्मांडा की मंद मुस्कान से ही इस संसार ने सांस लेना शुरु किया, यानी इनसे ही सृष्टि का आरंभ हुआ है। जब सृष्टि में चारों तरफ अंधकार फैला हुआ था। तब देवी कुष्मांडा ने अपनी मंद मुस्कान से अंधकार का नाश करके सृष्टि में प्रकाश किया था। मां कुष्मांडा का वास ब्रह्माण के मध्य में माना जाता है और वह पूरे ब्रह्मा की रक्षा करती हैं। आइए जानते हैं मां कुष्मांडा की पूजा की सही तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, मंत्र और भोग।

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मां कुष्मांडा का स्वरुप

मां कुष्मांडा को अष्टभुजा देवी कहा जाता है। उनकी आठ भुजाएं हैं। मां कुष्मांडा के हाथों में धनुष, बाण, कमल पुष्प, चक्र, गदा, कमंडल, जप माला और अमृकपूर्ण कलश कहता है। मां कुष्मांडा सिंह की सवारी करती है। मां कुष्मांडा की पूजा में हरे रंग के प्रयोग सबसे ज्यादा करना चाहिए। मां कुष्मांडा को हरा रंग और नीला रंग अति प्रिय है।

पूजा का शुभ मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार चतुर्थी तिथि की शुरुआत 6 अक्तूबर को प्रातः 07:49 से होगी जिसका समापन 7 अक्तूबर प्रातः 09:47 पर होगा।

Shardiya Navratri 2024 4th Day

मां कुष्मांडा की पूजा विधि
  • सबसे पहले सूर्योदय से पहले ही स्नान कर लें और हरे रंग के वस्त्र धारण करें। इसके अलावा आप नीले रंग के वस्त्र भी धारण कर सकते हैं।
  • सबसे पहले रोज की तरह कलश की पूजा करें। कलश का तिलक करें।
  • मां कुष्मांडा का पंचामृत से स्नान कराके उन्हेंं हरे रंग के वस्त्र अर्पित करें।
  • इसके बाद मां कुष्मांडा का ध्यान करते हुए उनके मंत्र का जप करें। ध्यान के बाद उन्हें लाल पुष्प, सफेद कुम्हड़ा, फल, सुखे मेवे आदि अर्पित करें।
  • इसके बाद मां कुष्मांडा की आरती करें और फिर अंत में मां को भोग लगाएं।
मां कुष्मांडा का प्रिय फूल और रंग

मां कुष्मांडाको लाल रंग प्रिय है, इसलिए पूजा में उनको लाल रंग के फूल जैसे गुड़हल, लाल गुलाब आदि अर्पित कर सकते हैं, इससे देवी प्रसन्न होती हैं।

Shardiya Navratri 2024 4th Day

मां कुष्मांडा के भोग

माता कुष्मांडा को कुम्हरा अति प्रिय है। इसलिए नवरात्रि के चौथे दिन मां कुष्मांडा को पेठे को भोग लगाएं। इसके साथ ही माता रानी मालपुए और हलवे का भोग भी लगा सकते हैं।

मां कुष्मांडा पूजा मंत्र-
  • ऊं ऐं ह्रीं क्लीं कुष्मांडायै नम:।
  • या देवी सर्वभूतेषु माँ कुष्मांडा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
मां कुष्मांडा की आरती

कुष्मांडा जय जग सुखदानी।मुझ पर दया करो महारानी॥
पिगंला ज्वालामुखी निराली।शाकंबरी माँ भोली भाली॥
लाखों नाम निराले तेरे ।भक्त कई मतवाले तेरे॥
भीमा पर्वत पर है डेरा। स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥
सबकी सुनती हो जगदंबे।सुख पहुँचती हो माँ अंबे॥
तेरे दर्शन का मैं प्यासा।पूर्ण कर दो मेरी आशा॥
माँ के मन में ममता भारी।क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥
तेरे दर पर किया है डेरा।दूर करो माँ संकट मेरा॥
मेरे कारज पूरे कर दो।मेरे तुम भंडारे भर दो॥
तेरा दास तुझे ही ध्याए।भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥

मां कुष्मांडा की पूजा के फायदे
  • मां कुष्मांडा की पूजा करने से व्यक्ति को आरोग्य का वरदान प्राप्त होता है. उसे रोग और दोष से मुक्ति मिलती है।
  • यदि आपको यश और कीर्ति की चाह है तो आप मां कुष्मांडा की पूजा करें।
  • संकट में घिरे लोगों को भी देवी कुष्मांडा की पूजा करनी चाहिए, इस देवी की कृपा से जीवन के संकट दूर हो सकते हैं।
  • मां कुष्मांडा की कृपा से व्यक्ति को शक्ति और दीर्घायु की प्राप्ति होती है।

Shardiya Navratri 2024 4th Day

मां कुष्मांडा व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार जब सृष्टि का कोई अस्तित्व नहीं था, चारों ओर अंधकार ही अंधकार था, तब एक ऊर्जा, गोले के रूप में प्रकट हुई। इस गोले से बेहद तेज प्रकाश उत्पन्न हुआ और देखते ही देखते गोले ने नारी का रूप ले लिया। माता ने सबसे पहले तीन देवियों महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती को उत्पन्न किया। महाकाली के शरीर से एक नर और नारी उत्पन्न हुए।

नर के पांच सिर और दस हाथ थे, उनका नाम शिव रखा गया और नारी का एक सिर और चार हाथ थे, उनका नाम सरस्वती रखा गया। महालक्ष्मी के शरीर से एक नर और नारी का जन्म हुआ। नर के चार हाथ और चार सिर थे, उनका नाम ब्रह्मा रखा और नारी का नाम लक्ष्मी रखा गया। फिर महासरस्वती के शरीर से एक नर और एक नारी का जन्म हुआ। नर का एक सिर और चार हाथ थे, उनका नाम विष्णु रखा गया और महिला का एक सिर और चार हाथ थे, उनका नाम शक्ति रखा गया।

इसके बाद माता ने ही शिव को पत्नी के रूप में शक्ति, विष्णु को पत्नी के रूप में लक्ष्मी और ब्रह्मा को पत्नी के रूप में सरस्वती प्रदान कीं। ब्रह्मा को सृष्टि की रचना, विष्णु को पालन और शिव को संहार करने का जिम्मा सौंपा। इस तरह संपूर्ण ब्रह्मांड की रचना मां कुष्मांडा ने की। ब्रह्मांड की रचना करने की शक्ति रखने वाली माता को कुष्मांडा के नाम से जाना गया।

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