रायपुर. महान संत परमपूज्य आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज आज रविवार को ब्रह्मलीन हुए, उन्होंने छत्तीसगढ़ के चंद्रगिरी तीर्थ में समाधि ली. विद्यासागर महाराज देश के पहले ऐसे आचार्यश्री थे जिन्होंने अब तक 505 से भी अधिक दीक्षाएं दीं, वे सबसे ज्यादा जेनेश्वरी दीक्षाएं देने वाले संत थे. इनके समाधि लेने के बाद देश के कोने कोने से राजनेताओं का प्रतिक्रिया आना शुरु हो गया है.
आचार्य श्री विद्यासागर जी से भेंट मेरे लिए अविस्मरणीय – पीएम मोदी
पीएम मोदी ने एक्स पर लिखा आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज जी का ब्रह्मलीन होना देश के लिए एक अपूरणीय क्षति है, लोगों में आध्यात्मिक जागृति के लिए उनके बहुमूल्य प्रयास सदैव स्मरण किए जाएंगे, वे जीवनपर्यंत गरीबी उन्मूलन के साथ-साथ समाज में स्वास्थ्य और शिक्षा को बढ़ावा देने में जुटे रहे, यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे निरंतर उनका आशीर्वाद मिलता रहा, पिछले वर्ष छत्तीसगढ़ के चंद्रगिरी जैन मंदिर में उनसे हुई भेंट मेरे लिए अविस्मरणीय रहेगी। तब आचार्य जी से मुझे भरपूर स्नेह और आशीष प्राप्त हुआ था, समाज के लिए उनका अप्रतिम योगदान देश की हर पीढ़ी को प्रेरित करता रहेगा.

आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का ब्रह्मलीन होना व्यक्तिगत क्षति – शाह
गृहमंत्री अमित शाह ने एक्स पर लिखा कि महान संत परमपूज्य आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज जैसे महापुरुष का ब्रह्मलीन होना, देश और समाज के लिए अपूरणीय क्षति है, उन्होंने अपनी अंतिम साँस तक सिर्फ मानवता के कल्याण को प्राथमिकता दी, मैं अपने आप को सौभाग्यशाली मानता हूँ कि ऐसे युगमनीषी का मुझे सान्निध्य, स्नेह और आशीर्वाद मिलता रहा. मानवता के सच्चे उपासक आचार्य विद्यासागर जी महाराज का जाना मेरे लिए एक व्यक्तिगत क्षति है, वे सृष्टि के हित और हर व्यक्ति के कल्याण के अपने संकल्प के प्रति निःस्वार्थ भाव से संकल्पित रहे.

विद्यासागर जी महाराज ने एक आचार्य, योगी, चिंतक, दार्शनिक और समाजसेवी, इन सभी भूमिकाओं में समाज का मार्गदर्शन किया, वे बाहर से सहज, सरल और सौम्य थे, लेकिन अंतर्मन से वज्र के समान कठोर साधक थे, उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य व गरीबों के कल्याण के कार्यों से यह दिखाया कि कैसे मानवता की सेवा और सांस्कृतिक जागरण के कार्य एक साथ किये जा सकते हैं, आचार्य विद्यासागर जी महाराज का जीवन युगों-युगों तक ध्रुवतारे के समान भावी पीढ़ियों का पथ प्रदर्शित करता रहेगा। मैं उनके सभी अनुयायियों के प्रति अपनी गहरी संवेदना व्यक्त करता हूँ.
श्रीज्ञानसागर जी महाराज से ली थी मुनिदीक्षा
बता दे कि जैन मुनि विद्यासागर जी महाराज ने शनिवार रात 2.30 बजे देह त्याग दिया था, आज रविवार दोपहर उनका अंतिम संस्कार किया गया, आचार्यश्री का जन्म 10 अक्टूबर 1946 को कर्नाटक प्रांत के बेलगांव जिले के सदलगा गांव में हुआ था, उन्होंने 30 जून 1968 को राजस्थान के अजमेर नगर में अपने गुरु आचार्य श्रीज्ञानसागर जी महाराज से मुनिदीक्षा ली थी, आचार्यश्री ज्ञानसागर जी महाराज ने उनकी कठोर तपस्या को देखते हुए उन्हें अपना आचार्य पद सौंपा था.
22 साल की उम्र में घर, परिवार छोड़ उन्होंने मुनि दीक्षा ली थी, दीक्षा के पहले भी उनका नाम विद्यासागर ही था, उन्होंने शुरुआत से ही कठिन तप में खुद को लगा दिया, उन्होंने दूध, दही, हरी सब्जियां और सूखे मेवों का अपने संन्यास के साथ ही त्याग कर दिया था, संन्यास के बाद वे पानी भी दिन में सिर्फ एक बार अपनी अंजुलि से भर कर पीते थे, वे फलों के रस का सेवन करते थे, उन्होंने पैदल ही पूरे देश में भ्रमण किया.
धन संचय के खिलाफ थे आचार्य विद्यासागर
आचार्य विद्यासागर जी ने कभी किसी से पैसा नहीं लिया, वे धन संचय के खिलाफ थे उन्होंने ना कभी कोई ट्रस्ट बनाया, जिसके जरिए पैसा ले सकें, ना ही कभी अपने नाम का कोई बैंक अकाउंट खुलवाया, वे दक्षिणा या दान में भी कभी पैसा नहीं लेते, कुछ जानने वालों का दावा है कि उन्होंने कभी पैसे को हाथ नहीं लगाया, जो पैसा कभी उनके नाम पर लोग दान भी करते तो उसे वे समाज सेवा में लगाने के लिए दे देते थे.