Women Commandos in Chhattisgarh
छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में बदलाव की बयार बह रही है। कभी बंदूक उठाकर अपनों के खिलाफ लड़ने वाली महिलाएं आज उन्हीं अपनों की रक्षा के लिए हथियार थाम चुकी हैं। ये महिलाएं अब ‘दंतेश्वरी लड़ाके’ के नाम से पहचानी जाती हैं। एक ऐसी एलीट महिला कमांडो फोर्स, जो नक्सलियों के खिलाफ सुरक्षा बलों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ रही है।
बीजापुर जिले की उसमति, जिन्होंने 15 वर्षों तक नक्सली संगठन में रहकर जंगलों में जिंदगी गुजारी, आज उसी अनुभव का इस्तेमाल समाज को बचाने में कर रही हैं। एक समय पर गंगलूर शिविर में छह लोगों की हत्या कर चुकीं उसमति अब कहती हैं, “नक्सली बनकर कुछ नहीं मिला, लेकिन आत्मसमर्पण के बाद हमें घर, नौकरी और बच्चों की पढ़ाई मिली। अब डर नहीं लगता, क्योंकि अब हम सही लड़ाई लड़ रहे हैं।”
Women Commandos in Chhattisgarh
बचेली की मधु पोडियाम, जिनके पति को नक्सलियों ने मार डाला, अब AK-47 लेकर पति की मौत का बदला लेने की कसम खा चुकी हैं। वहीं नारायणपुर की सुंदरी, जो पहले पुलिस के खिलाफ लड़ती थीं, आज उन्हीं के साथ मिलकर नक्सलियों के खिलाफ मोर्चा संभाले खड़ी हैं। सुंदरी कहती हैं, “पहले डर लगता था कि घरवालों को मार देंगे, अब नहीं लगता।”
इस परिवर्तन की शुरुआत दंतेवाड़ा के तत्कालीन एसपी डॉ. अभिषेक पल्लव ने की थी। उनके नेतृत्व में 60 महिला कमांडो की एक विशेष टुकड़ी तैयार की गई, जिसमें 20 आत्मसमर्पित पूर्व नक्सली, 20 नक्सली हिंसा की पीड़ित महिलाएं और 20 ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं शामिल हैं। ये महिलाएं अब लंबी जमीनी कार्रवाई, गुप्त अभियानों और सर्जिकल स्ट्राइक्स में अग्रिम पंक्ति में रहती हैं।
इन महिलाओं का न केवल जीवन बदला है, बल्कि उन्होंने अपने जैसे कई औरों के लिए प्रेरणा की मिसाल भी कायम की है। दंतेश्वरी लड़ाके अब केवल एक नाम नहीं, बल्कि साहस, बदलाव और नई शुरुआत की प्रतीक बन चुकी हैं।