West Bengal Ram Navami Politics
पश्चिम बंगाल में 2026 के विधानसभा चुनाव की हलचल अभी से महसूस की जा सकती है। राज्य की सियासत में धर्म और पहचान के मुद्दे एक बार फिर केंद्रीय भूमिका में हैं। हाल ही में रामनवमी और हनुमान जयंती के अवसर पर जो कुछ हुआ, उसने इस बात को और पुख्ता कर दिया कि भाजपा और तृणमूल कांग्रेस दोनों ही पार्टियां इस बार चुनावी जमीन पर धार्मिक पहचान की राजनीति को निर्णायक बनाने की दिशा में कदम बढ़ा रही हैं।
भाजपा, जो 2021 में पहली बार बंगाल में मुख्य विपक्षी दल बनी, अब सत्ता हासिल करने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है। लेकिन बंगाल की जमीनी सियासत आसान नहीं है – यहां धार्मिक और सांस्कृतिक चेतना एक गहरे इतिहास से जुड़ी हुई है, और किसी भी बाहरी विचारधारा को स्वीकार करने में आम बंगाली मतदाता सावधानी बरतता है। यही वजह है कि भाजपा ने इस बार रणनीति बदलते हुए पूरी तरह से हिंदू वोट बैंक के ध्रुवीकरण पर ध्यान केंद्रित किया है।
West Bengal Ram Navami Politics
बंगाल की जनसंख्या में लगभग 70% हिंदू और 30% मुस्लिम हैं। अब तक, मुस्लिम मतदाता बड़े पैमाने पर एकजुट होकर TMC को वोट देते आए हैं, जिससे ममता बनर्जी की पार्टी को सीधा फायदा मिला। वहीं, हिंदू वोटों का बंटवारा भाजपा और TMC के बीच होता रहा है। 2021 के चुनावों में भाजपा को 50% हिंदू और केवल 7% मुस्लिम वोट मिले थे, जबकि TMC को 39% हिंदू और 75% मुस्लिमों ने वोट दिया था। विश्लेषकों की मानें तो यदि भाजपा TMC के वोट बैंक में सिर्फ 4% की सेंध भी लगा पाती है, तो वह 2026 में सत्ता की दौड़ में गंभीर दावेदार बन सकती है।
यही कारण है कि हाल ही में संघ प्रमुख मोहन भागवत का 10 दिन का बंगाल दौरा बेहद अहम माना जा रहा है। उनके इस दौरे को भाजपा की चुनावी रणनीति के रूप में देखा जा रहा है। संघ और भाजपा ने मिलकर पूरे राज्य में धार्मिक आयोजनों का सिलसिला शुरू किया – रामनवमी और हनुमान जयंती के मौके पर सैकड़ों शोभायात्राएं निकाली गईं, जिनमें भगवा झंडों, नारों और धार्मिक प्रतीकों के जरिए यह संदेश दिया गया कि भाजपा बंगाल में ‘हिंदू अस्मिता’ की रक्षक के तौर पर खड़ी है।
West Bengal Ram Navami Politics
दूसरी तरफ, ममता बनर्जी की पार्टी भी असमंजस में दिखी। मुस्लिम वोटर खोएं न, लेकिन ‘हिंदू विरोधी’ छवि भी न बने। इस द्वंद्व से निपटने के लिए TMC ने भी रामनवमी पर रैलियां निकालकर एक सधा हुआ संदेश देने की कोशिश की कि वह सभी धर्मों का सम्मान करती है।
बंगाल में राजनीति केवल धर्म से नहीं चलती – यहां भाषा, संस्कृति और क्षेत्रीय अस्मिता का भी उतना ही महत्व है। भाजपा को सिर्फ धार्मिक आयोजन और हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण से संतोष नहीं करना होगा, बल्कि उसे स्थानीय मुद्दों पर अपनी पकड़ मजबूत करनी होगी, जैसे बेरोजगारी, शिक्षा, भ्रष्टाचार और महिला सुरक्षा। बंगाल का मतदाता भावुक है, लेकिन उतना ही विवेकशील भी। वह विचारधारा के साथ-साथ काम को भी देखता है।
इस बार की लड़ाई दो विचारों की नहीं, दो छवियों की है। एक तरफ भाजपा की आक्रामक सांस्कृतिक पहचान और हिंदू कार्ड, दूसरी तरफ ममता की क्षेत्रीय अपील और प्रशासनिक पकड़। 2026 में किसकी रणनीति कारगर होगी, यह कहना अभी जल्दबाज़ी होगी, लेकिन इतना ज़रूर है कि मुकाबला कांटे का होने जा रहा है।