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Friday, May 2, 2025

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Unique tradition : बीजापुर की अनोखी पंरपरा, हर साल वित्तीय लेखा-जोखा का निरीक्षण करने तहसील दफ्तर पहुंचते हैं देव!

Unique tradition

बीजापुर। छत्तीसगढ़ का आदिवासी बाहुल्य बस्तर अपनी अनोखी परंपरा, आदिवासी रीति-रिवाज, कला-संस्कृति, मेले मंड़ई के लिए विख्यात है। बस्तर के आदिवासियों से जुड़ी परंपरा शायद ही अन्यत्र देखने को मिले। आदिवासी अपनी परंपरा को ही मुख्य धरोहर मानते हैं और यही वजह है कि सदियों से चली आ रही परंपरा आज भी विद्यमान है। यह फोटों और वीडियो इस बात का जीता जागता प्रमाण हैं।

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राजा-महाराजाओं की परंपरा अब भी जीवित
यहां हर साल तीन दिवसीय वार्षिक अनुष्ठान के दौरान ही चिकटराज देव नगर के तहसील आफिस पहुंचते हैं. जानकार बताते हैं कि रियासतकाल में राजकोष में वित्तीय व्यवस्था के संग्रह के लिए खजांची नाम से व्यवस्था लागू थी, राजा-महाराजाओं की ओर से जिसका समय-समय पर निरीक्षण किया जाता था,

चूंकि अब रियासतों का दौर खत्म हो चुका है और उसकी जगह तहसील दफ्तर ने ले ली है, इसके बाद भी इलाके के कर्ता-धर्ता के रूप में चिकटराज देव ही तहसील दफ्तर पहुंचते हैं। जहां राजस्व व प्रशासन के आला अधिकारियों की मौजूदगी में खजांची के रूप में एक बक्सा रखकर देव की उपस्थिति में परंपरा का निवर्हन होता है।

Unique tradition

मां दंतेश्वरी के समकालीन चिकटराज देव विराजमान
वार्षिक अनुष्ठान के दूसरे दिन यह परंपरा निभाई जाती है। पूरे विधि-विधान को संपन्न कराने के दौरान चिकटराज देव के साथ पुजारी, मंदिर समिति सदस्य और नगरवासी तहसील कार्यालय पहुंचते हैं। मंदिर समिति से जुड़े सदस्य बताते हैं कि बस्तर की आराध्य मां दंतेश्वरी जब दंतेवाड़ा में विराजित हुई थी, उसी दौरान चिकटराज देव बीजापुर में विराजमान हुए।

8 परगना के देव विग्रहों को देते हैं न्यौता
बताया जाता है कि कि चैत्र माह में पूर्णिमा से पहले और रामनवमीं के उपरांत दूसरे मंगलवार को वार्षिक अनुष्ठान तय होता है। इसमें आराध्य चिकटराज गर्भ ग्रह से बाहर आते हैं। वार्षिक अनुष्ठान में 18 परगना के देव विग्रहों को न्यौता दिया जाता है। ग्राम प्रमुखों को नारियल-अगरबत्ती भेंटकर निमंत्रण की रस्म निभाई जाती है।

 

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