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Train Blast Breaking : मुंबई लोकल ट्रेन ब्लास्ट 2006…! 19 साल बाद आया ऐतिहासिक फैसला…बॉम्बे हाई कोर्ट ने 11 में से 11 दोषियों को किया बरी

Train Blast Breaking: Mumbai local train blast 2006...! Historic verdict came after 19 years...Bombay High Court acquitted 11 out of 11 accused

Train Blast Breaking

मुंबई, 21 जुलाई। Train Blast Breaking : बॉम्बे हाई कोर्ट ने 11 जुलाई 2006 को मुंबई लोकल ट्रेनों में हुए सिलसिलेवार धमाकों के मामले में सोमवार को एक ऐतिहासिक और चौंकाने वाला फैसला सुनाया। अदालत ने निचली अदालत द्वारा दोषी ठहराए गए 12 में से 11 आरोपियों को सभी आरोपों से बरी कर दिया है। एक आरोपी की मौत अपील प्रक्रिया के दौरान हो चुकी थी।

फैसले में अदालत ने क्या कहा?

हाई कोर्ट की विशेष पीठ ने कहा कि, सबूत विश्वसनीय नहीं थे और गवाहों की गवाही संदेह के घेरे में थी। कबूलनामे जबरदस्ती लिए गए, जो कानूनन अमान्य हैं। गवाहों की पहचान परेड संदिग्ध रही, कई गवाह वर्षों तक चुप रहे और फिर अचानक आरोपियों की पहचान की। बरामद आरडीएक्स और अन्य सामग्री के कोई ठोस वैज्ञानिक प्रमाण नहीं मिले। प्रॉसिक्यूशन पूरी तरह असफल रहा, और आरोपी यह साबित करने में सफल रहे कि उनके खिलाफ मामला कमजोर था।

जेल से रोते हुए जुड़े आरोपी

वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अमरावती, नागपुर, पुणे और नासिक की जेलों से जुड़े सभी 11 आरोपी बरी किए जाने के बाद भावुक हो उठे। किसी ने खुशी नहीं जताई, सभी की आंखों में आंसू थे।

वकीलों की प्रतिक्रिया

आरोपियों के वकील युग मोहित चौधरी ने कहा कि, “यह फैसला उन हजारों लोगों के लिए उम्मीद की किरण है, जो सालों से गलत तरीके से जेल में बंद हैं।” जबकि सरकारी वकील राजा ठकारे ने कहा कि “यह फैसला मार्गदर्शक की तरह है, जो भविष्य की जांचों में ध्यान रखने योग्य है।”

क्या हुआ था 2006 में?

11 जुलाई 2006 की शाम मुंबई की भीड़भाड़ वाली लोकल ट्रेनों में महज 11 मिनट के भीतर सात धमाके हुए थे। इन विस्फोटों में 189 लोग मारे गए और 827 से ज्यादा घायल हुए। ATS ने जांच कर 13 लोगों को गिरफ्तार किया था और 15 अन्य को फरार बताया, जिनमें से कई के पाकिस्तान में छिपे होने का शक था।

अब तक का कानूनी सफर

2015 में विशेष अदालत ने 12 आरोपियों को दोषी ठहराया, जिनमें से 5 को फांसी और 7 को उम्रकैद की सजा दी गई थी। राज्य सरकार ने फांसी की सजा की पुष्टि के लिए हाई कोर्ट में याचिका दायर की, जबकि आरोपियों ने खुद को निर्दोष बताते हुए अपील की। 2023 में आरोपी एहतेशाम सिद्दीकी ने हाई कोर्ट से सुनवाई में तेजी की मांग की, जिसके बाद विशेष पीठ गठित हुई। करीब 6 महीने तक रोजाना सुनवाई चली और फिर 6 महीने में फैसला तैयार किया गया।

अब आगे क्या?

राज्य सरकार इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकती है। हालांकि, फैसले में गंभीर खामियों की ओर इशारा करते हुए यह साफ कर दिया गया है कि अगर जांच निष्पक्ष और वैज्ञानिक तरीके से न हो, तो इतने बड़े मामले भी अदालत में टिक नहीं पाते। यह फैसला न केवल 11 निर्दोष (Train Blast Breaking) बताए जा रहे लोगों की रिहाई का मार्ग प्रशस्त करता है, बल्कि भारत की न्यायिक प्रणाली पर गंभीर प्रश्न भी खड़े करता है, क्या हमारे जांच तंत्र में सुधार की आवश्यकता है?
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