SUPREME COURT WAQF LAW
नई दिल्ली। वक्फ (संशोधन) अधिनियम को लेकर देशभर में मचे राजनीतिक और धार्मिक विवाद के बीच सुप्रीम कोर्ट में आज एक ऐतिहासिक सुनवाई शुरू हुई। दोपहर 2 बजे से भारत के उच्चतम न्यायालय में इस कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली 73 याचिकाओं पर सुनवाई की शुरुआत हुई। इस बहुचर्चित मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की त्रिसदस्यीय पीठ कर रही है।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि वक्फ संशोधन अधिनियम मुसलमानों की धार्मिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता, उनकी संपत्ति पर स्वामित्व और आत्म-प्रशासन के अधिकारों पर सीधा हमला है। उनका आरोप है कि हालिया संशोधनों ने वक्फ बोर्डों की लोकतांत्रिक प्रकृति को समाप्त कर दिया है और कार्यपालिका को वक्फ संपत्तियों पर अनुचित नियंत्रण सौंप दिया है। ‘वक्फ बाय यूजर’ जैसी परंपरागत अवधारणाएं, जो वर्षों से समुदाय की धार्मिक संपत्तियों को पहचान दिलाती थीं, उन्हें अधिनियम से हटा दिया गया है। इसके अलावा, अनुसूचित जनजातियों को वक्फ संपत्ति घोषित करने से भी बाहर रखा गया है।
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इन 73 याचिकाओं में कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, AIMIM, वाईएसआरसीपी, भाकपा और राष्ट्रीय जनता दल जैसे कई विपक्षी दलों के प्रतिनिधि शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, जमीयत उलमा-ए-हिंद, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और समस्ता केरल जमीयतुल उलेमा जैसे प्रमुख मुस्लिम धार्मिक संगठनों ने भी अपनी आपत्तियाँ दर्ज की हैं। इस बीच, दो हिंदू याचिकाकर्ता—वरिष्ठ अधिवक्ता हरीशंकर जैन और नोएडा की पारुल खेरा—ने इस अधिनियम को मुसलमानों को अवैध रूप से सरकारी और हिंदू धार्मिक संपत्तियों पर अधिकार देने वाला बताया है।
केंद्र सरकार का रुख इस अधिनियम को पूरी तरह से जायज़ ठहराने का रहा है। सरकार ने इसे वक्फ संपत्तियों के पारदर्शी और प्रभावी प्रबंधन की दिशा में एक आवश्यक कदम बताया है। साथ ही, देश के सात राज्यों ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर अधिनियम का समर्थन किया है। उन्होंने अपने हलफनामों में कहा है कि यह संशोधन संविधान सम्मत है और इससे वक्फ संस्थाओं की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता आएगी।
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इस अधिनियम को लेकर संसद में भी लंबी बहस देखने को मिली थी। लोकसभा में 288 और राज्यसभा में 128 सांसदों ने इसके पक्ष में वोट किया, जबकि क्रमशः 232 और 95 सदस्यों ने इसका विरोध किया था। 5 अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस अधिनियम को अपनी स्वीकृति दी थी, जिसके बाद यह कानून बना।
अब जबकि यह मामला सर्वोच्च न्यायालय के दरवाजे पर है, देशभर की निगाहें इस ऐतिहासिक सुनवाई पर टिकी हुई हैं। यह सुनवाई न केवल वक्फ कानून की वैधता को तय करेगी, बल्कि यह भी निर्धारित करेगी कि सरकार धार्मिक अल्पसंख्यकों की संपत्तियों और अधिकारों में कहां तक हस्तक्षेप कर सकती है। आने वाले दिनों में यह फैसला भारत में धार्मिक स्वतंत्रता और राज्य के अधिकारों की सीमाओं को लेकर एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण स्थापित करेगा।
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