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Statement Analytical : वो महाज्ञानी नेता हैं…! अपनी ही पार्टी के दिग्गज नेता पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का तंज…इस सबके बीच पार्टी के ये 2 मंत्री खामोश

Statement by Ex Minister: He is a great knowledgeable leader...! State Congress President's taunt on a veteran leader of his own party... Amidst all this, these 2 ministers of the party are silent

Statement by Ex Minister

रायपुर/विश्लेषणात्मक। Statement Analytical: छत्तीसगढ़ में सत्ता से बाहर हो चुकी कांग्रेस अब संगठनात्मक असमंजस और आपसी टकराव की गिरफ्त में नजर आ रही है। भूपेश बघेल के जन्मदिन पर पहुंचे पूर्व मंत्री रविंद्र चौबे के एक बयान ने प्रदेश कांग्रेस में हलचल मचा दी है। उन्होंने कहा था कि “भूपेश बघेल को पार्टी का नेतृत्व करना चाहिए”-बस, यहीं से बात बिगड़ गई। अब यह महज़ जन्मदिन की शुभकामना नहीं रही, बल्कि इसे अगली चुनावी दिशा तय करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि चौबे ने बाद में स्पष्ट किया कि “प्रदेश में सामूहिक नेतृत्व (Collective Leadership) से ही काम हो रहा है और चुनाव भी इसी तरह लड़े जाएंगे”, फिर भी राजनीतिक संकेतों को पढ़ने वाले लोग मानते हैं कि यह बयान यूं ही नहीं दिया गया।

कांग्रेस में दो खेमों की लड़ाई?

चौबे के इस बयान को लेकर प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज ने तीखी प्रतिक्रिया दी और कहा कि “पार्टी से ऊपर कोई नहीं है”, जबकि चौबे ने उन्हें “छोटा भाई” बताया। इस बयान को लेकर संगठन का एक धड़ा सक्रिय हो गया, मानो संगठन की एकजुटता खतरे में हो। सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या यह बघेल बनाम बैज खेमे की लड़ाई का इशारा है?

मुद्दों पर चुप्पी क्यों?

चर्चा इस बात पर होनी चाहिए थी कि- रायपुर में बढ़ते अपराधों पर कांग्रेस क्या कर रही है? कवर्धा कलेक्टर आवास घेराव पर पार्टी की स्थिति क्या है? बिलासपुर की बदहाल सड़कों, मस्तूरी की कोल वॉशरी समस्या, और महिला पार्षद पर एफआईआर जैसे स्थानीय मुद्दों पर कांग्रेस की आवाज़ कहां है? वास्तविक मुद्दों को छोड़कर केवल नेतृत्व को लेकर बयानबाजी पर फोकस होना, प्रदेश कांग्रेस की राजनीतिक धार को कुंद करता दिख रहा है।

दो मंत्री तटस्थ

इस पूरे घटनाक्रम में पूर्व उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव की भूमिका अब भी अलग थलग है, वे कभी भी संगठनात्मक मुद्दों में खुद को प्रमुख रूप से नहीं जोड़ते। वहीं नेता प्रतिपक्ष चरणदास महंत की शैली हमेशा से ही ‘तटस्थ’ रही है, जो उन्हें बाकी नेताओं से भिन्न बनाती है। यह स्पष्ट होता जा रहा है कि छत्तीसगढ़ कांग्रेस की प्राथमिकता जनसरोकारों के बजाय आंतरिक समीकरण साधने की हो चली है। संगठन जब मुद्दों की बजाय बयानों की dissecting में व्यस्त हो, तो वह जनता की नजरों में अप्रासंगिक होता चला जाता है। भूपेश बघेल की लोकप्रियता अभी भी पार्टी के भीतर (Statement by Ex Minister) मजबूत है, पर यह तय करना कि नेतृत्व किसके हाथ में होगा, संगठन के भविष्य की दिशा तय करेगा। लेकिन यह तय है कि बयान से राजनीति भले हो जाए, जमीन पर मौजूद न होना पार्टी की सबसे बड़ी कमजोरी बनती जा रही है।
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