Shirdi Shree Sai Baba Sansthan
साईं बाबा की पावन नगरी शिर्डी से साईं भक्तों के लिए बड़ी खुशखबरी आई है। श्री साईंबाबा संस्थान ने एक नई संशोधित दान नीति लागू की है, जिसके तहत जो भी श्रद्धालु संस्थान को दान देंगे, उन्हें उनकी दान राशि के अनुसार विशेष सुविधाएं दी जाएंगी। ये सुविधाएं केवल भक्ति को नहीं, बल्कि सेवा और सम्मान को भी समर्पित होंगी।
इस योजना को संस्थान की समिति से मंजूरी मिल चुकी है और इसका उद्देश्य साईं भक्तों को एक सुसंस्कृत, सम्मानजनक और व्यवस्थित दर्शन अनुभव प्रदान करना है।
Shirdi Shree Sai Baba Sansthan
क्या मिलेगा भक्तों को इस नई नीति के तहत?
₹10,000 से ₹24,999 तक दान पर:
- 5 लोगों के लिए एक बार का आरती पास
- 5 उदी प्रसाद पैकेट
- 1 लड्डू प्रसाद पैकेट
₹25,000 से ₹50,000 तक दान पर:
- दो बार आरती या दर्शन पास
- साईं बाबा की 3D पॉकेट फोटो
- 5 उदी प्रसाद पैकेट
- 1 साईं सच्चरित्र पुस्तक
- 2 लड्डू प्रसाद पैकेट
Shirdi Shree Sai Baba Sansthan
₹50,001 से ₹99,999 तक दान पर:
- 2 वीवीआईपी आरती पास
- विशेष सम्मान चिन्ह
- 5 उदी प्रसाद पैकेट
- साईं सच्चरित्र
- 2 लड्डू प्रसाद पैकेट
₹1 लाख से ₹9.99 लाख तक दान पर:
- पहले वर्ष 2 और हर साल 1 वीवीआईपी दर्शन पास
- एक बार साल में निःशुल्क दर्शन
- शॉल से सम्मान
- 3D फोटो
- पूजा कूपन और भोजन पास
- वस्त्र और प्रसाद भेंट
Shirdi Shree Sai Baba Sansthan
₹10 लाख से ₹50 लाख तक दान पर:
- हर वर्ष 2 वीवीआईपी आरती पास
- एक बार विशेष ‘प्रोटोकॉल दर्शन’
- साईं बाबा को वस्त्र अर्पण का विशेष अवसर
- साईं मूर्ति, पूजा कूपन, भोजन पास
₹50 लाख से ऊपर दान पर:
- आजीवन हर साल 3 वीवीआईपी आरती पास
- 2 प्रोटोकॉल दर्शन पास
- वस्त्र अर्पण और भेंट का विशेष सम्मान
- साईं मूर्ति और प्रतिष्ठित सम्मान चिन्ह
- जीवनभर भोजन पास सुविधा
Shirdi Shree Sai Baba Sansthan
क्या बोले संस्थान के CEO?
संस्थान के मुख्य कार्यकारी अधिकारी गोरक्ष गाडिलकर ने बताया कि इस योजना का मुख्य उद्देश्य श्रद्धालुओं को सेवा, सादगी और सम्मान से जोड़ना है। शिर्डी आने वाले भक्तों को उच्च स्तरीय अनुभव मिले, यही संस्थान की प्राथमिकता है।
कैसे पाएं ये सुविधाएं?
सभी श्रद्धालु इस योजना की पूरी जानकारी श्री साईंबाबा संस्थान की आधिकारिक वेबसाइट www.sai.org.in पर जाकर प्राप्त कर सकते हैं। यहीं से दान की प्रक्रिया भी की जा सकती है।
शिर्डी साईं बाबा के दरबार में सेवा और श्रद्धा अब और भी भावनात्मक रूप में जुड़ गई है। अब दान सिर्फ पुण्य नहीं, बल्कि आजीवन सेवा और सम्मान का मार्ग भी बन गया है।