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SC ON ALLAHABAD HIGH COURT : सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी, हाईकोर्ट का फैसला असंवेदनशील और अमानवीय

SC ON ALLAHABAD HIGH COURT

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस विवादित फैसले पर रोक लगा दी है, जिसमें कहा गया था कि नाबालिग लड़की के निजी अंगों को छूना और उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ना ‘रेप’ या ‘अटेम्प्ट टू रेप’ की श्रेणी में नहीं आता। बता दें कि इस फैसले को लेकर देशभर में तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने खुद इस मामले को संज्ञान में लिया और इस पर सख्त टिप्पणी की।

खबरों से मिली जानकारी के मुताबिक बुधवार को जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने मामले की सुनवाई की और हाईकोर्ट के फैसले को “पूरी तरह असंवेदनशील और अमानवीय” करार दिया। बेंच ने कहा कि “यह बेहद गंभीर मामला है, लेकिन फैसले में न्यायिक संवेदनशीलता की पूरी तरह से कमी नजर आ रही है।” कोर्ट ने केंद्र सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य संबंधित पक्षों को नोटिस जारी कर जवाब देने को कहा है।

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जानिए क्या है पूरा मामला?

उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले की रहने वाली एक महिला ने 12 जनवरी 2022 को कोर्ट में एक शिकायत दर्ज कराई थी। शिकायत के मुताबिक, 10 नवंबर 2021 को वह अपनी 14 वर्षीय बेटी के साथ अपनी देवरानी के घर गई थीं। शाम को जब वे घर लौट रही थीं, तो गांव के तीन युवक – पवन, आकाश और अशोक रास्ते में मिल गए।

पवन ने महिला से कहा कि वह उसकी बेटी को बाइक से घर छोड़ देगा। मां ने भरोसे के साथ बेटी को पवन की बाइक पर बैठा दिया, लेकिन रास्ते में पवन और आकाश ने लड़की के निजी अंगों को छूआ और जबरन पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की। इस दौरान आकाश ने लड़की के पायजामे का नाड़ा तोड़ दिया। लड़की की चीख-पुकार सुनकर वहां से गुजर रहे दो ग्रामीण सतीश और भूरे मौके पर पहुंचे, लेकिन आरोपियों ने देसी तमंचा दिखाकर धमकाया और फरार हो गए।

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पीड़िता की मां जब आरोपी पवन के घर शिकायत करने गई, तो पवन के पिता अशोक ने उसे गालियां दीं और जान से मारने की धमकी दी। अगले दिन महिला जब पुलिस में FIR दर्ज कराने गई, तो पुलिस ने इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की। आखिरकार, महिला ने अदालत का दरवाजा खटखटाया।

जिसके बाद कोर्ट ने मामले को गंभीर मानते हुए 21 मार्च 2022 को इसे स्वीकार किया और गवाहों के बयान दर्ज किए। इसके बाद, पवन और आकाश के खिलाफ IPC की धारा 376 (बलात्कार), 354 (महिला की मर्यादा भंग करने के लिए हमला), 354B (महिला को निर्वस्त्र करने का प्रयास) और POCSO एक्ट की धारा 18 (यौन अपराध का प्रयास) के तहत केस दर्ज किया गया। वहीं, अशोक पर IPC की धारा 504 (जानबूझकर अपमान) और 506 (धमकी देना) के तहत मामला दर्ज किया गया।

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हाईकोर्ट ने क्यों दिया विवादित फैसला?

जब तीनों आरोपियों को समन भेजा गया, तो उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि इन आरोपों पर पुनर्विचार किया जाए। इस पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा कि – “किसी लड़की के निजी अंग पकड़ लेना, उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ देना और जबरन उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश से रेप या ‘अटेम्प्ट टू रेप’ का मामला नहीं बनता।”

इस फैसले के बाद कोर्ट ने दो आरोपियों पर लगी IPC की धारा 376 और POCSO एक्ट की धारा 18 को हटा दिया और उनके खिलाफ सिर्फ छेड़छाड़ के आरोप तय किए। वहीं, तीसरे आरोपी के खिलाफ दर्ज याचिका को स्वीकार कर लिया गया।

सुप्रीम कोर्ट की फटकार

हाईकोर्ट के इस फैसले पर कानूनी विशेषज्ञों, महिला संगठनों और कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कड़ी आलोचना की। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने खुद इस मामले की सुनवाई का फैसला किया।

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वहीं बुधवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने हाईकोर्ट के फैसले को कड़ी आलोचना करते हुए कहा –”हमें यह कहते हुए बहुत दुख हो रहा है कि फैसला लिखने वाले में न्यायिक संवेदनशीलता की पूरी तरह कमी थी। यह बेहद गंभीर मामला है, लेकिन हाईकोर्ट के जज ने इसे हल्के में लिया।”

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में न्यायपालिका को अत्यधिक संवेदनशीलता और सावधानी बरतनी चाहिए, ताकि पीड़िता को न्याय मिल सके।

केंद्र सरकार का क्या कहना है?
पहले भी पलटे जा चुके हैं ऐसे फैसले

यह पहली बार नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ने यौन अपराधों से जुड़े किसी विवादित फैसले पर दखल दिया हो। 2021 में बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने भी एक फैसले में कहा था कि ‘त्वचा से त्वचा’ संपर्क न होने पर POCSO के तहत अपराध नहीं माना जाएगा।

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सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को पलटते हुए कहा था कि –

“POCSO के तहत अपराध साबित करने के लिए जरूरी नहीं कि त्वचा से त्वचा का संपर्क हो, बल्कि आरोपी की नीयत ज्यादा महत्वपूर्ण होती है।”

अब आगे क्या?
क्या यह मामला एक मिसाल बनेगा?

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