RG Kar Case
कोलकाता। सात महीने पहले की बात है, जब पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज के गलियारों में हलचल मच गई। जहां एक युवा महिला डॉक्टर, जिसने लोगों की सेवा करने का सपना देखा था, अस्पताल के एक कमरे में मृत पाई गई। वह सिर्फ एक डॉक्टर नहीं थी, बल्कि एक बेटी थी, एक बहन थी, और किसी के लिए पूरी दुनिया थी।
लेकिन उस दिन, उसकी दुनिया उजड़ गई। और यह पूरे समाज के लिए एक सवाल खड़ा कर दिया। “क्या हमारी बेटियां कभी सुरक्षित होंगी?” वह युवती, जिसने बचपन से ही डॉक्टर बनने का सपना देखा था, जिसने न जाने कितनी रातें पढ़ाई में बिताईं, जिसने अपने माता-पिता से वादा किया था कि वह एक दिन उनका नाम रोशन करेगी। उसे उसी अस्पताल में दुष्कर्म के बाद हैवानियत की सारे हदें पार करते हुए बड़ी ही बेरहमी मौत के घाट उतार दिया गया।
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उसके माता-पिता को यकीन ही नहीं हो रहा था कि उनकी बेटी अब इस दुनिया में नहीं है। उन्होंने सोचा था कि वह समाज की सेवा करेगी, लेकिन समाज ने उसे क्या दिया? जब पुलिस ने फोन किया और बताया कि उनकी बेटी अब इस दुनिया में नहीं रही, तो मानो उसकी मां की सांसें वहीं रुक गईं। उन्हें समझ ही नहीं आया कि उनकी बेटी, जो मरीजों की जान बचाने के लिए डॉक्टर बनी थी, खुद को क्यों नहीं बचा सकी? पहले तो उन्हें यकीन ही नहीं हुआ।
शायद कोई गलती हुई होगी। लेकिन जब उन्होंने अपनी बेटी की lifeless body देखी, तो उनकी दुनिया उजड़ गई। उनके आंसू सूख चुके थे, लेकिन सवाल जलते कोयले की तरह उनके दिल में धधक रहे थे। की “आखिर क्यों मेरी बेटी को मारा?” “उसे न्याय कब मिलेगा?”
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सात महीने का इंतजार, लेकिन कोई जवाब नहीं
दिन बीतते गए, हफ्ते बीतते गए, और अब सात महीने हो चुके हैं, लेकिन न्याय अब भी एक अधूरी कहानी बना हुआ है। पीड़िता की मां हर दरवाजे पर गईं, हर अधिकारी से गुहार लगाई, लेकिन कहीं से कोई राहत नहीं मिली।
“मैंने कभी नहीं सोचा था कि मुझे अपनी बेटी के लिए न्याय मांगने सड़कों पर आना पड़ेगा। क्या किसी मां के लिए इससे बड़ा दुख हो सकता है?” यह सवाल एक मां की आंखों में आंसू बनकर छलकता है।
उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने की इच्छा जताई। उनका कहना है कि अगर देश की सबसे ताकतवर हस्ती से मिलकर अपनी बेटी के लिए न्याय की गुहार नहीं लगा सकी, तो फिर न्याय कहां मिलेगा?
“हमने राष्ट्रपति से मिलने के लिए समय मांगा, हमें कहा गया कि उनके पास समय नहीं है। हमने दो बार प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को मेल भेजा, लेकिन कोई जवाब नहीं आया। हम भीख नहीं मांग रहे, हम बस न्याय चाहते हैं।”
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वहीं पुलिस ने शुरुआती जांच के बाद चुप्पी साध ली। सरकार के तरफ से कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जा रही है। और तो और मृत्यु प्रमाणपत्र तक नहीं दिया गया। जब न्याय नहीं मिला, तो उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से मिलने का फैसला किया। उन्होंने हर संभव दरवाजा खटखटाया, लेकिन हर जगह से निराशा ही हाथ लगी।
- राष्ट्रपति से मिलने का समय मांगा, लेकिन जवाब मिला—”उनके पास समय नहीं है।”
- दो बार प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह को ईमेल भेजे, लेकिन कोई उत्तर नहीं आया।
- हर बार बस एक ही जवाब—”धैर्य रखें, जांच चल रही है।”
- लेकिन कितना धैर्य रखें? क्या एक मां को अपनी बेटी के लिए न्याय मांगने का भी अधिकार नहीं है?
- “हम भीख नहीं मांग रहे, बस न्याय चाहते हैं!”
- पीड़िता की मां के चेहरे पर झुर्रियां आ गई हैं, लेकिन उनके हौसले अब भी जिंदा हैं। वह कहती हैं, “मैं भीख नहीं मांग रही, मैं न्याय मांग रही हूं। क्या मेरी बेटी के साथ जो हुआ, वह सही था?”
न्याय की तलाश में भटकता परिवार
उनका दर्द सिर्फ इस बात का नहीं है कि उनकी बेटी चली गई, बल्कि इस बात का भी है कि मृत्यु प्रमाणपत्र तक उन्हें नहीं दिया गया।
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“हमारे पास हमारी बेटी के जाने का कोई आधिकारिक दस्तावेज तक नहीं है। ऐसा लगता है जैसे सरकार चाहती है कि हम इस मामले को भूल जाएं। लेकिन क्या कोई मां अपनी बेटी की मौत को भूल सकती है?”
वे सोचती हैं, क्या महिलाओं की सुरक्षा का वादा सिर्फ नारों तक सीमित रह गया है? अगर एक डॉक्टर अस्पताल में सुरक्षित नहीं है, तो आम लड़कियों का क्या होगा?
मां की आखिरी उम्मीद
अब, उनकी उम्मीद सिर्फ एक है – प्रधानमंत्री मोदी। वे चाहती हैं कि मोदी उनसे मिलें, उनकी बात सुनें और उनकी बेटी के लिए न्याय की राह खोलें।
“अगर आज मेरी बेटी के साथ ऐसा हुआ है, तो कल किसी और की बेटी के साथ भी हो सकता है। मैं बस इतना चाहती हूं कि मेरी बेटी की आत्मा को शांति मिले। न्याय कहां है?”
उनका यह सवाल सिर्फ उनके लिए नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए है। क्या इस देश में बेटियां अब भी सुरक्षित हैं? क्या न्याय सिर्फ एक सपना बनकर रह गया है?
वह इंतजार कर रही हैं, शायद उनकी बेटी की आत्मा को न्याय मिल जाए। लेकिन सवाल अभी भी हवा में तैर रहा है—
“न्याय कहां है?”
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