RAM MANDIR AYODHYA
अयोध्या। उत्तर प्रदेश के अयोध्या से बड़ी खबर सामने आ रही है। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास की हालत गंभीर बनी हुई है। खबरों से मिली जानकारी के मुताबिक देर रात अचानक तबीयत बिगड़ने के बाद आचार्य सत्येंद्र दास को ब्रेन हेमरेज का अटैक आया। आनन-फानन में उन्हें श्रीराम अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन हालत नाजुक होने के चलते उन्हें लखनऊ के पीजीआई हॉस्पिटल रेफर किया गया है।
पीजीआई के न्यूरोलॉजी इमरजेंसी यूनिट में उनका इलाज जारी है। डॉक्टरों के मुताबिक, आचार्य जी को सिवियर ब्रेन हेमरेज हुआ है और सीटी स्कैन रिपोर्ट में 17 जगहों पर ब्लड क्लॉट्स पाए गए हैं। उनके शिष्य प्रदीप दास ने जानकारी दी कि फिलहाल उनकी हालत स्थिर बनी हुई है।
आचार्य सत्येंद्र दास पिछले 34 वर्षों से रामलला की सेवा में समर्पित हैं। 1992 में विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद उन्हें मुख्य पुजारी के रूप में नियुक्त किया गया था और वर्तमान में श्रीराम जन्मभूमि ट्रस्ट के अधीन पूजन-अर्चन का कार्य संभाल रहे हैं। सभी भक्तगण उनके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना कर रहे हैं।
RAM MANDIR AYODHYA
आइए जानते है, कौन हैं आचार्य सत्येंद्र दास?
आचार्य सत्येंद्र दास अयोध्या के राम जन्मभूमि परिसर में रामलला के मुख्य पुजारी हैं और पिछले 34 वर्षों से रामलला की सेवा कर रहे हैं। वे 87 वर्ष के हैं और बाबरी विध्वंस (1992) से लेकर रामलला के भव्य मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा तक के महत्वपूर्ण घटनाक्रमों के साक्षी रहे हैं।
उन्होंने करीब 28 साल तक टेंट में विराजमान रामलला की पूजा-अर्चना की और फिर लगभग चार साल तक अस्थायी मंदिर में मुख्य पुजारी के रूप में सेवा दी। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद भी वे इस भूमिका में बने हुए हैं।
आचार्य सत्येंद्र दास का योगदान न केवल धार्मिक परंपराओं को निभाने में महत्वपूर्ण है, बल्कि वे अयोध्या आंदोलन और राम मंदिर निर्माण से जुड़े ऐतिहासिक पलों के जीवित साक्षी भी हैं। उनकी उम्र और स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए उनके मंदिर आने-जाने पर कोई सख्त पाबंदी नहीं है, और वे अपनी सुविधा के अनुसार मंदिर आ-जा सकते हैं।
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वहीं आचार्य सत्येंद्र दास का सफर सरलता, समर्पण और धार्मिक आस्था का प्रतीक है। उन्होंने साल 1975 में संस्कृत विद्यालय से आचार्य की डिग्री प्राप्त की, जो उनके आध्यात्मिक और शैक्षणिक जीवन की नींव बनी। इसके ठीक एक साल बाद, 1976 में, उन्होंने अयोध्या के संस्कृत महाविद्यालय में सहायक शिक्षक के रूप में कार्य करना शुरू किया, जहाँ उन्होंने संस्कृत और धर्मशास्त्र के अध्ययन और शिक्षण में योगदान दिया।
आचार्य सत्येंद्र दास के जीवन में एक बड़ा मोड़ मार्च 1992 में आया, जब बाबरी विध्वंस के समय उन्हें तत्कालीन रिसीवर द्वारा रामलला के पुजारी के रूप में नियुक्त किया गया। उस समय उनका वेतन मात्र 100 रुपये था, जो उनके तपस्वी और सरल जीवन के अनुरूप था। हालांकि समय के साथ उनके वेतन में बढ़ोतरी की गई, लेकिन उनका मुख्य उद्देश्य हमेशा रामलला की सेवा और भक्ति ही रहा।
बता दें कि आज, आचार्य सत्येंद्र दास न केवल रामलला के मुख्य पुजारी के रूप में पहचाने जाते हैं, बल्कि अयोध्या के धार्मिक और सांस्कृतिक इतिहास के एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में भी जाने जाते हैं। उनका यह सफर उनकी अटूट श्रद्धा, धैर्य और सेवा भाव का प्रत्यक्ष प्रमाण है।