RAIPUR HOSPITAL CONTROVERSY
रायपुर। राजधानी रायपुर में लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर हमला हुआ है। राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल — डॉ. भीमराव आंबेडकर अस्पताल (मेकाहारा) — में तैनात प्राइवेट बाउंसरों ने खबर संकलन के लिए पहुंचे पत्रकारों के साथ धक्का-मुक्की, गाली-गलौच और जान से मारने की धमकी दी। यही नहीं, आरोप है कि बाउंसर कंपनी के हेड वसीम ने पुलिस के सामने बंदूक तक लहराई।
बता दें कि यह शर्मनाक घटना उस समय हुई जब उरला इलाके में चाकूबाजी की सूचना के बाद कुछ पत्रकार अस्पताल में घायलों की स्थिति जानने पहुंचे। पेशेवर दायित्व निभा रहे पत्रकारों को बाउंसरों ने न केवल कवरेज से रोका, बल्कि उनके साथ बदसलूकी की। एक पत्रकार को जबरन धक्का देकर पीछे हटाया गया और खुलेआम धमकियां दी गईं।
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सीसीटीवी में कैद हुई बर्बरता:
पूरी घटना अस्पताल के सीसीटीवी कैमरे में कैद हो गई, जिसकी फुटेज सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही है। इसमें साफ देखा जा सकता है कि बाउंसर एक पत्रकार को धमकाते हुए धक्का दे रहा है। इस वीडियो के वायरल होते ही जनता, मीडिया संगठनों और राजनैतिक दलों में आक्रोश फैल गया।
पुलिस और प्रशासन की भूमिका पर सवाल:
घटना के बाद जब पत्रकारों ने विरोध जताया और जवाब माँगा, तब अस्पताल प्रशासन ने बाउंसरों की कोई निंदा नहीं की, उल्टे पत्रकारों की संभावित विरोध रैली से निपटने के लिए पुलिस बल तैनात कर दिया गया। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, शहर के अन्य बाउंसर भी एकत्र होकर अस्पताल परिसर में जमा हो गए, जिससे माहौल और भी तनावपूर्ण हो गया।
यह दृश्य किसी फिल्मी गैंग वार जैसा प्रतीत हो रहा था, जहां एकतरफा शक्ति प्रदर्शन किया जा रहा था। वहीं, पुलिस भी बाउंसरों की तरह पूरी तैयारी में दिखी — लेकिन पत्रकारों को सुरक्षा देने के लिए नहीं, बल्कि उन पर लाठीचार्ज के लिए।
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देर रात तक चला धरना, स्वास्थ्य मंत्री के आश्वासन पर खत्म हुआ प्रदर्शन:
इस घटना के विरोध में रायपुर के पत्रकारों ने मुख्यमंत्री निवास के बाहर देर रात तक धरना दिया। धरने में पत्रकारों की मुख्य मांगें थीं:
- बाउंसरों पर एफआईआर और गिरफ्तारी
- अस्पताल में सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा
- मीडिया की सुरक्षा के लिए नीति निर्माण
- दोषी बाउंसर कंपनी को ब्लैकलिस्ट किया जाए
रात करीब 2 बजे राज्य के स्वास्थ्य मंत्री के आश्वासन के बाद धरना स्थगित किया गया। पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए चार बाउंसरों को हिरासत में लिया है और मामले की जांच की जा रही है।
अस्पताल प्रशासन की माफी, लेकिन सवाल बाकी:
अस्पताल अधीक्षक ने सार्वजनिक रूप से पत्रकारों से माफी मांगी है, और एसएसपी ने भी निष्पक्ष कार्रवाई का भरोसा दिलाया है। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है — प्राइवेट बाउंसरों को किस हद तक अधिकार हैं?
क्या उन्हें मीडिया की स्वतंत्रता रोकने, धमकाने और मारपीट करने का अधिकार है? क्या इनकी पृष्ठभूमि की जांच की जाती है?
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पहले भी रहे हैं विवाद:
यह पहला मामला नहीं है। मेकाहारा अस्पताल में बाउंसरों द्वारा परिजनों और यहां तक कि डॉक्टरों से भी मारपीट की घटनाएं सामने आ चुकी हैं। लेकिन हर बार प्रशासन ने इन घटनाओं को अनदेखा किया, जिससे इनकी गुंडागर्दी बढ़ती गई।
पत्रकार संगठनों का विरोध:
छत्तीसगढ़ पत्रकार संघ, प्रेस क्लब समेत कई मीडिया संगठनों ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए मांग की है कि –
- दोषियों पर कड़ी कार्रवाई हो
- अस्पताल प्रशासन की जवाबदेही तय हो
- पत्रकारों को सुरक्षा दी जाए
- राज्य में मीडिया के लिए सुरक्षित कार्य माहौल सुनिश्चित किया जाए
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यह घटना न केवल पत्रकारों की सुरक्षा बल्कि लोकतंत्र की नींव और कानून व्यवस्था की निष्पक्षता पर भी गंभीर सवाल उठाती है। अगर लोकतंत्र के प्रहरी ही असुरक्षित हैं, और पुलिस मूकदर्शक बनी रहे, तो आम नागरिकों का क्या होगा?
ऐसे में राज्य सरकार को चाहिए कि वह इस घटना को चेतावनी मानते हुए न केवल दोषियों को सजा दे, बल्कि अस्पतालों में प्राइवेट सुरक्षा तंत्र की पूरी समीक्षा करे, जिससे ऐसी घटनाएं दोबारा न हों।
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