रायपुर, 15 अक्टूबर।Pandit Dhirendra Shastri : मध्य प्रदेश के बागेश्वर धाम के प्रमुख पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री, जिन्हें भक्तों प्रेम से ‘बागेश्वर बाबा’ कहते हैं, आज देश-दुनिया में आस्था का एक बड़ा नाम बन चुके हैं। 15 जुलाई 1996 को छतरपुर के एक गरीब परिवार में जन्मे धीरेंद्र शास्त्री ने गरीबी और आर्थिक तंगी के बीच बचपन बिताया। सरकारी स्कूल में पढ़ाई करते हुए, परिवार की कठिनाइयों के बावजूद, वे युवावस्था में ही कथावाचन में सक्रिय हो गए।
धीरेंद्र शास्त्री का परिवार पीढ़ियों से बागेश्वर धाम की सेवा करता आ रहा है, जो भगवान हनुमान को समर्पित एक पावन स्थल है। उनके दादा सेतुलाल गर्ग, जो स्वयं एक संन्यासी बाबा थे, की समाधि इसी धाम में स्थित है। इसी पावन भूमि से जुड़े रहकर, धीरेंद्र बाबा ने देश-विदेश से आए लाखों भक्तों के लिए ‘दिव्य दरबार’ और ‘पर्चा’ जैसी भव्य धार्मिक परंपराओं को स्थापित किया।
भक्तों का मानना है कि उन्हें भगवान हनुमान की असीम कृपा प्राप्त है, और वे अपनी कथाओं के दौरान दिव्य शक्तियों का अनुभव करते हैं। सोशल मीडिया के माध्यम से उनकी लोकप्रियता में जबरदस्त इजाफा हुआ है, जिसने उनकी पहुंच को नए आयाम दिए हैं।
हालांकि, उनकी बढ़ती प्रसिद्धि के साथ आलोचनाएं और विवाद भी जुड़े रहे हैं। रायपुर में एक कथा कार्यक्रम के दौरान उनका ममता बनर्जी पर विवादित टिप्पणी करना सोशल मीडिया और राजनीतिक गलियारों में सुर्खियां बनी। उन्होंने पश्चिम बंगाल की राजनीतिक स्थिति पर अप्रत्यक्ष रूप से टिप्पणी करते हुए कहा था, “जब तक वहां ‘दीदी’ हैं, हम वहां नहीं जाएंगे। जब ‘दादा’ आएंगे, तब जाकर कथा करेंगे।” इस बयान ने राजनीति और आस्था के बीच की जटिलता को उजागर किया।
आलोचक धीरेंद्र शास्त्री पर अंधविश्वास फैलाने और विवादास्पद बयानों के लिए भी निशाना साधते रहे हैं। इसके बावजूद, उनके लाखों भक्त उन्हें आध्यात्मिक मार्गदर्शक और संकटमोचक के रूप में देखते हैं, जो भक्तों की हर समस्या का समाधान करने का दावा करते हैं।
गरीबी से संघर्ष करते हुए देशभर में भक्ति और आस्था का एक बड़ा चेहरा बनने वाले बागेश्वर बाबा ने यह साबित किया है कि व्यक्तिगत कठिनाइयों के बावजूद आत्मविश्वास और समर्पण से कोई भी ऊंचाई हासिल की जा सकती है। उनकी आवाज अब देश की सीमाओं को पार कर विदेशों तक पहुंच चुकी है।
पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का व्यक्तित्व इस बात का उदाहरण है कि आस्था और भक्ति की शक्ति कैसे जीवन को बदल सकती है, जबकि उनके विवाद यह भी दर्शाते हैं कि धार्मिक आस्था और सामाजिक जिम्मेदारी के बीच संतुलन बनाए रखना कितना आवश्यक है।