Pahalgam terror attack
नई दिल्ली। 22 अप्रैल 2025 की सुबह, जम्मू-कश्मीर के पहलगाम की वादियां फिर से पर्यटकों की चहलकदमी से गूंज रही थीं। लेकिन दोपहर होते-होते वो चहक चीखों में बदल गई। बैसरन घाटी में हथियारों से लैस आतंकियों ने धार्मिक पहचान पूछकर लोगों पर गोलियां बरसा दीं। 26 निर्दोष पर्यटक मारे गए, जिनमें दो विदेशी नागरिक भी थे, और 17 गंभीर रूप से घायल हुए। यह हमला न सिर्फ निर्मम था, बल्कि एक सोची-समझी साजिश का हिस्सा था।

Pahalgam terror attack
जांच में बड़ा खुलासा – दो मददगार गिरफ्तार
इस घटना के बाद पूरे देश में आक्रोश फैल गया। सवाल सिर्फ हमला करने वालों का नहीं था, बल्कि उन चेहरों का भी था, जिन्होंने उन्हें पनाह दी, खाना खिलाया, और सुरक्षा दी। दो महीने की तफ्तीश के बाद, राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी NIA ने आखिरकार उन दो चेहरों से पर्दा हटा दिया। परवेज अहमद जोठर और बशीर अहमद जोठर, ये दोनों वही लोग थे, जिन्होंने तीन आतंकियों को हमले से पहले अपने इलाके की एक झोपड़ी में छिपाया था।
NIA की पूछताछ में सामने आया कि आतंकियों ने वहीं रुककर हमले की पूरी योजना बनाई। उन्हें खाना, मोबाइल, कपड़े और रास्ता सब कुछ यहीं से मिला। और सबसे डरावनी बात ये कि इन आतंकियों में से दो पाकिस्तान से आए थे और लश्कर-ए-तैयबा जैसे खूंखार आतंकी संगठन से ताल्लुक रखते थे। एक, हाशिम मूसा, तो पाकिस्तान की स्पेशल फोर्स SSG का पूर्व कमांडो भी रह चुका था।
Pahalgam terror attack
इस हमले ने भारत को न सिर्फ झकझोरा, बल्कि मजबूर किया कि वह सिर्फ बयान नहीं, जवाब दे। 7 मई को भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ शुरू किया। राफेल विमानों और ब्रह्मोस मिसाइलों से पाकिस्तान और POK में मौजूद आतंकी ठिकानों पर हमले किए गए। नौ बड़े आतंकी अड्डे ध्वस्त कर दिए गए। सौ से ज्यादा आतंकियों को मौत मिली। जवाब इतना सटीक और तेज था कि पाकिस्तान ने 10 मई को युद्धविराम की गुहार लगाई।
लेकिन इन सबके बीच एक सवाल अभी भी हवा में है — हमले को अंजाम देने वाले चार आतंकी अभी तक कहां हैं? क्या वे पाकिस्तान में छिपे हैं, या अब भी कश्मीर की घाटियों में घूम रहे हैं? सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि वे पीओके में हैं, जहां उन्हें सेना का संरक्षण हासिल है। पहलगाम का दुर्गम इलाका, स्थानीय स्लीपर सेल और सीमित खुफिया सूचनाएं सुरक्षाबलों के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई हैं।
Pahalgam terror attack
NIA ने परवेज़ और बशीर को UAPA के तहत गिरफ्तार किया है। अब इन पर मुकदमा चलेगा, लेकिन यह गिरफ्तारी इस बात की भी गवाही है कि आतंक सिर्फ बंदूक से नहीं आता — वह सोच और सहयोग से पनपता है।
पहलगाम का ये हमला एक घाव है — देश के भरोसे पर, पर्यटकों की सुरक्षा पर, और उस उम्मीद पर जो हर हिंदुस्तानी कश्मीर की शांति को लेकर करता है। जवाब जरूर दिया गया, लेकिन न्याय तब पूरा होगा जब मासूमों का खून बहाने वाले आखिरी आतंकी को भी उसके अंजाम तक पहुंचाया जाएगा।

