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‘No King In US’: ट्रंप-मस्क की नीतियों के खिलाफ फूटा अमेरिकी गुस्सा, 50 राज्यों में एक साथ प्रदर्शन

‘No King In US

अमेरिका एक बार फिर विरोध की लहरों से गुज़र रहा है। पर इस बार निशाने पर हैं राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उद्योगपति एलन मस्क। बता दें कि न्यूयॉर्क, वॉशिंगटन डीसी और शिकागो से लेकर लॉस एंजेल्स और जैक्सनविल तक पूरा अमेरिका सड़कों पर उतर आया है। ‘50501’ नाम के इस राष्ट्रव्यापी आंदोलन ने पूरे देश में हलचल मचा दी है। इस नाम का मतलब है—50 विरोध प्रदर्शन, 50 राज्य और एकजुटता में एक आंदोलन।

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मिली जानकारी के मुताबिक लोगों का आक्रोश ट्रंप की नीतियों और एलन मस्क की आर्थिक रणनीतियों के खिलाफ है। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि ट्रंप की टैरिफ वॉर नीति से देश की अर्थव्यवस्था डगमगा गई है। आयातित चीज़ें महंगी हो गई हैं, जिससे रोजमर्रा की ज़िंदगी पर असर पड़ा है। वहीं शेयर बाजार में गिरावट आई है और बेरोजगारी ने नए स्तर छुए हैं। दूसरी ओर, मस्क का दक्षता विभाग सरकारी नौकरियों में भारी कटौती कर रहा है, जिससे हज़ारों कर्मचारी बेरोजगार हो चुके हैं।

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बता दें कि प्रदर्शनकारियों ने व्हाइट हाउस का घेराव किया और टेस्ला के शोरूमों के बाहर भी विरोध दर्ज कराया। न्यूयॉर्क की मुख्य पब्लिक लाइब्रेरी के बाहर लोग ‘No Kings in America’ और ‘Resist Tyranny’ जैसे नारे लगे पोस्टर लिए खड़े थे। जहां उनके नारों में निराशा नहीं, बल्कि चेतावनी थी—तानाशाही को अमेरिका की मिट्टी में नहीं पनपने देंगे।

इन प्रदर्शनों में अमेरिका की इमिग्रेशन एजेंसी ICE के खिलाफ भी भारी आक्रोश देखने को मिला। ‘No ICE, No Fear, Immigrants are Welcome Here’ का नारा गूंजा, जो साफ़ दर्शाता है कि लोग अब प्रवासियों के खिलाफ सख्त सरकारी कार्रवाई से थक चुके हैं। उनका मानना है कि ट्रंप प्रशासन का रवैया न केवल अमानवीय है, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ भी है।

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खबरों से मिली जानकारी के मुताबिक, पूरे अमेरिका में करीब 400 से ज़्यादा विरोध रैलियाँ आयोजित की गईं। लोगों ने इसे सिर्फ नीतियों का विरोध नहीं, बल्कि लोकतंत्र की रक्षा की एक बड़ी लड़ाई करार दिया। व्हाइट हाउस प्रेस पूल से कुछ प्रमुख मीडिया हाउसेज़ को हटाया जाना और ट्रंप द्वारा सोशल मीडिया पर खुद को ‘किंग’ कहना—इन सबने इस आंदोलन को और भी प्रासंगिक बना दिया।

गौरतलब है कि यह प्रदर्शन ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद चौथी बार हो रहा है। इससे पहले 5 अप्रैल और 17 फरवरी को भी देशभर में इसी तरह की लहर उठी थी। अब यह आंदोलन एक शक्ल ले चुका है। एक जनआवाज़, जो अब कह रही है कि अमेरिका में कोई राजा नहीं होगा, और तानाशाही को किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

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