NAXALITE ATTACK ON RANIBODLI CAMP
रानीबोदली। बस्तर की धरती पिछले कई दशकों से माओवाद की आग में झुलस रही है। यहां की घनी जंगलों में नक्सलियों ने अपने गढ़ बना लिए थे, जहां से वे सरकार और सुरक्षाबलों के खिलाफ लगातार खूनी खेल खेलते रहे। लेकिन 15 मार्च 2007 की रात जो हुआ, उसने न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि पूरे देश को झकझोर कर रख दिया।
यह वह काली रात थी जब माओवादियों ने बस्तर के रानीबोदली गांव में CAF और SPO जवानों के कैंप पर हमला कर दिया और 55 जवानों को मौत के घाट उतार दिया। यह हमला इतना भयावह था कि इसे याद कर आज भी लोगों की रुह कांप जाती है।
कैसे हुआ था हमला?
रानीबोदली गांव में माओवादियों के बढ़ते खतरे को देखते हुए CAF (छत्तीसगढ़ आर्म्ड फोर्स) और SPO (स्पेशल पुलिस ऑफिसर) के जवानों का कैंप स्थापित किया गया था। सलवा जुडूम आंदोलन के तहत स्थानीय आदिवासी युवाओं को SPO के रूप में भर्ती कर नक्सलियों से लड़ने के लिए तैयार किया गया था। लेकिन यह नक्सलियों के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गया। वे इस आंदोलन को कुचलना चाहते थे, और इसी का बदला लेने के लिए उन्होंने रानीबोदली को अपने निशाने पर लिया।
NAXALITE ATTACK ON RANIBODLI CAMP
14 मार्च की रात जवान अपने कैंप में सो रहे थे। चारों ओर जंगल की खामोशी थी, लेकिन इस खामोशी के पीछे मौत छुपी बैठी थी। रात करीब दो बजे अचानक गोलियों की आवाज गूंज उठी। माओवादियों ने चारों दिशाओं से कैंप को घेर लिया और ताबड़तोड़ गोलीबारी शुरू कर दी। इससे पहले कि जवान कुछ समझ पाते, उन पर बम बरसने लगे। माओवादियों ने पहले से ही कैंप को चारों ओर से घेर रखा था, जिससे जवानों को भागने का कोई मौका नहीं मिला।
हमले की सबसे भयावह बात यह थी कि माओवादियों ने कैंप में आग लगा दी। लकड़ी और टिन से बने इस कैंप ने तुरंत आग पकड़ ली, और अंदर मौजूद जवान जिंदा जलने लगे। कुछ जवानों ने बाहर निकलकर जवाबी फायरिंग करने की कोशिश की, लेकिन माओवादी पूरी तैयारी से आए थे। उन्होंने जवानों को चारों ओर से घेर लिया और एक-एक करके सभी को मार गिराया।
शहीदों की दर्दनाक शहादत
इस हमले में 55 जवान शहीद हो गए, जिनमें से ज्यादातर SPO थे। करीब 25 जवान गंभीर रूप से घायल हुए। कई जवानों की लाशें इतनी बुरी तरह जल चुकी थीं कि उनकी पहचान करना भी मुश्किल हो गया। सुबह जब राहत दल वहां पहुंचा, तो चारों ओर सिर्फ राख, खून और गोलियों के खोखे बिखरे पड़े थे।
NAXALITE ATTACK ON RANIBODLI CAMP
रानीबोदली का हमला माओवादियों की सबसे बड़ी रणनीतिक जीत मानी गई। उन्होंने यह साबित कर दिया कि वे अब भी बस्तर में कितने शक्तिशाली हैं। इस हमले के बाद सरकार और सुरक्षाबलों ने अपनी रणनीति बदली। नक्सल विरोधी अभियान तेज कर दिए गए, CAF और SPO जवानों को और बेहतर ट्रेनिंग दी गई, और बस्तर में कई नए सुरक्षा कैंप स्थापित किए गए।
लेकिन इस हमले ने एक और बड़ा असर डाला—सुप्रीम कोर्ट ने 2011 में SPO प्रणाली पर सवाल उठाते हुए इसे खत्म करने का आदेश दिया। सरकार को यह फैसला लेना पड़ा कि बिना उचित ट्रेनिंग और हथियारों के आदिवासियों को सीधे नक्सलियों से लड़ने के लिए भेजना सही नहीं है।
NAXALITE ATTACK ON RANIBODLI CAMP
रानीबोदली की घटना भारतीय इतिहास के सबसे दर्दनाक नक्सली हमलों में से एक थी। यह माओवादियों की क्रूरता का एक खौफनाक नमूना थी। हालांकि, इस घटना के बाद सुरक्षा बलों ने अपनी रणनीति बदली और माओवादियों के खिलाफ और सख्त कार्रवाई शुरू की। आज भी बस्तर में माओवाद पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है, लेकिन इस घटना के बाद सरकार और सुरक्षा एजेंसियों ने इसे जड़ से मिटाने की ठान ली।
रानीबोदली के शहीद जवानों की कुर्बानी को कभी नहीं भुलाया जा सकता। यह घटना हमेशा याद दिलाएगी कि बस्तर की धरती ने कितने जख्म झेले हैं और वहां के जवानों ने कितनी बहादुरी से अपनी आखिरी सांस तक लड़ाई लड़ी थी।
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