Naxal Encounter in Bijapur
बीजापुर। छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के उसूर थाना क्षेत्र अंतर्गत कोतापल्ली गांव के पास कर्रेगुट्टा पहाड़ी इलाके में सुरक्षा बलों और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ का आज पांचवां दिन है। बीते 120 घंटों से यह इलाका बारूद, गोलियों और बमों की गूंज से कांप रहा है। यह कोई साधारण मुठभेड़ नहीं, बल्कि देश के इतिहास का अब तक का सबसे बड़ा सुरक्षा ऑपरेशन बन चुका है। पूरे इलाके को सुरक्षा बलों ने चारों ओर से घेर लिया है और पहाड़ी में छिपे करीब 1500 नक्सलियों को जाल में कस दिया गया है।
इस अभूतपूर्व ऑपरेशन में 10 से 12 हजार सुरक्षाबल के जवान जुटे हुए हैं, जो नक्सलवाद को जड़ से उखाड़ फेंकने का संकल्प लेकर अंतिम लड़ाई लड़ रहे हैं। बताया जा रहा है कि इन घिरे हुए नक्सलियों में संगठन के सबसे बड़े चेहरों में से एक हिड़मा और उसका करीबी साथी देवा भी मौजूद हैं। इन दोनों की मौजूदगी ने इस ऑपरेशन को और भी संवेदनशील और निर्णायक बना दिया है।
Naxal Encounter in Bijapur
बता दें कि मुठभेड़ का क्षेत्र दुर्गम पहाड़ी और जंगलों से घिरा है, लेकिन सुरक्षा बलों ने रणनीतिक तरीके से इलाके को अपने कब्जे में लिया है। हेलीकॉप्टर से न केवल निगरानी की जा रही है, बल्कि ऊपर से गोलीबारी और बमबारी के ज़रिए नक्सलियों के ठिकानों को तबाह किया जा रहा है। हर तरफ धुएं के बादल, गोलियों की आवाज़ और जंगलों में फैली तनावपूर्ण खामोशी एक युद्ध जैसे माहौल का संकेत दे रही है।
मिली जानकारी के मुताबिक बीते पांच दिनों में सुरक्षा बलों ने पांच नक्सलियों को मार गिराया है। इनमें से तीन के शव बरामद किए जा चुके हैं, साथ ही उनके पास से हथियार भी जब्त किए गए हैं। हालांकि नक्सलियों की संख्या और उनकी रणनीति को देखते हुए ऑपरेशन अब भी पूरी ताकत से जारी है। वहीं दोनों पक्षों के बीच रुक-रुक कर फायरिंग हो रही है, और सुरक्षाबल किसी भी हाल में इस बार नक्सलियों को निकलने का मौका नहीं देना चाहते।
Naxal Encounter in Bijapur
इस भीषण कार्रवाई के बीच मौसम ने भी सुरक्षाबलों की परीक्षा लेना शुरू कर दी है। तेज गर्मी और भारी उमस के कारण 40 से अधिक जवान लू की चपेट में आ चुके हैं। उन्हें तत्काल उपचार के लिए तेलंगाना के पास स्थित वेंकटापुरम अस्पताल में भर्ती कराया गया है, जहां उनका प्राथमिक इलाज किया जा रहा है। लेकिन इसके बावजूद जवानों का हौसला डिगा नहीं है। वे पूरी ताकत और समर्पण से मैदान में डटे हुए हैं।
यह ऑपरेशन केवल नक्सलियों को घेरने की कार्रवाई नहीं है, बल्कि यह उस दशक पुराने संघर्ष की निर्णायक घड़ी है, जिसने देश के भीतर अस्थिरता और भय का माहौल बना रखा था। यदि यह अभियान अपने लक्ष्य में सफल होता है, तो यह नक्सलवाद की रीढ़ तोड़ने वाला साबित हो सकता है। सरकार और सुरक्षाबलों दोनों की ओर से यह संकेत साफ है। अब नक्सलियों के लिए जंगलों में छिपने की जगह नहीं बची है।