Navratri 2024 9th Day
रायपुर। शारदीय नवरात्रि के दौरान नौ दिनों तक मां दुर्गा के अलग-अलग नौ स्वरूपों की पूरे विधि-विधान से पूजा अर्चना की जाती है। नवरात्रि का नौवां दिन मां सिद्धिदात्री को समर्पित होता है। इस दिन को राम नवमी और महानवमी के नाम से भी जाना जाता है। नवरात्रि के नौवें दिन मां सिद्धिदात्री (Maa Siddhidatri) की पूजा किए जाने का विधान है। इस दिन भक्त मां सिद्धिदात्री की पूजा कर कन्या पूजन करने के बाद नवरात्रि उत्सव का समापन किया जाता है।
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ऐसा करने से भक्तों पर मां दुर्गा की कृपा बनी रहती है। माता सिद्धिदात्री मौक्ष की देवी मानी जाती हैं। धार्मिक मान्यता है कि मां सिद्धिदात्री की विधि पूर्वक पूजा अर्चना करने से भक्तों को सिद्धि और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस बार अष्टमी और नवमी तिथि एक ही होने के कारण दोनों ही दिन का कन्या पूजन एक ही दिन अलग- अगल मुहूर्त में किया जाएगा।
Navratri 2024 9th Day
मां सिद्धिदात्री की पूजा की तिथि
वैदिक पंचाग के अनुसार, नवमी तिथि की शुरुआत शुक्रवार, 11 अक्टूबर दोपहर 12 बजकर 6 मिनट होगी। नवमी तिथि का समापन शनिवार, 12 अक्टूबर दोपहर 10 बजकर 58 मिनट तक रहेगी। उदय तिथि के अनुसार,नवमी तिथि शुक्रवार, 11 अक्टबर को मनाई जाएगी।
अष्टमी और नवमी तिथि कन्या पूजन का शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, अष्टमी तिथि कन्या पूजन का शुभ मुहूर्त सुबह 7 बजकर 44 मिनट से लेकर 10 बजकर 37 मिनट तक रहेगा। वहीं नवमी तिथि का कन्या पूजन के शुभ मुहूर्त की शुरुआत 2 बजे से लेकर 2 बजकर 45 मिनट तक रहेगा। इसके अलावा एक मुहूर्त सुबह 11 बजक 45 मिनट से लेकर 12 बजकर 30 मिनट तक भी रहेगा। इस मुहूर्त में भी कन्या पूजन किया जा सकता है।
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मां सिद्धिदात्री की पूजा विधि
- नवरात्रि के नौवें दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि सम्पन्न करें।
- इसके बाद लाल या पीले रंग के स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- अब मंदिर में मां सिद्धिदात्री की प्रतिमा या तस्वीर लगाकर उनकी पूजा आरंभ करें।
- मां सिद्धिदात्री को रोली कुमकुम लगाकर, लाल चुनरी, अक्षत्, फूल, माला, सिंदूर, फल, नारियल, आदि अर्पित करें।
- मां के आगे घी का दीपक जलाकर पूजा मंत्र पढ़ें और उन्हें हलवा, पूड़ी, चना, खीर का भोग लगाएं।
- इसके बाद मां सिद्धिदात्री की कथा पढ़ें और आरती करें।
- आखिर में मां सिद्धिदात्री से प्रार्थना करें और भूल-चूक की क्षमा याचना करें।
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मां सिद्धिदात्री का भोग
माता को प्रसन्न करने के लिए हलवा, पूरी, चना, फल, खीर और नारियल का भोग लगाते हैं। मान्यता है कि जामुनी या बैंगनी रंग के वस्त्र धारण करके माता की पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
मां सिद्धिदात्री मंत्र
- सिद्ध गन्धर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
- सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥
- वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
- कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्वनीम्॥
Navratri 2024 9th Day
मां सिद्धिदात्री की आरती
जय सिद्धिदात्री मां, तू सिद्धि की दाता।
तू भक्तों की रक्षक, तू दासों की माता।
तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि।
तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि।
कठिन काम सिद्ध करती हो तुम।
जभी हाथ सेवक के सिर धरती हो तुम।
तेरी पूजा में तो ना कोई विधि है।
तू जगदम्बे दाती तू सर्व सिद्धि है।
रविवार को तेरा सुमिरन करे जो।
तेरी मूर्ति को ही मन में धरे जो।
तू सब काज उसके करती है पूरे।
कभी काम उसके रहे ना अधूरे।
तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया।
रखे जिसके सिर पर मैया अपनी छाया।
सर्व सिद्धि दाती वह है भाग्यशाली।
जो है तेरे दर का ही अम्बे सवाली।
हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा।
महा नंदा मंदिर में है वास तेरा।
मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता।
भक्ति है सवाली तू जिसकी दाता।
मां सिद्धिदात्री की पूजा का महत्व
महानवमी या नवरात्रि के नौवे दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। मान्यता है कि जो भक्त मां भगवती के इस स्वरुप की पूरे विधि विधान से पूजा करता है। उसके सभी काम पूरे होते हैं। इसके अलावा मां सिद्धिदात्री की पूजा करने से धन, यश, बल और मोक्ष की प्राप्ति होती है। देवी पुराण के अनुसार शिवजी ने देवी मां की कृपा से ही सिद्धियों को प्राप्त किया था। जिससे उनका शरीर आधा देवी का हो गया था, इसलिए भगवान शिव को अर्धनारीश्वर भी कहा जाता है।
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महानवमी व्रत कन्या पूजन विधि
महानवमी या नवरात्रि के 9वें दिन कन्या पूजन में कन्याओं की संख्या 9 होनी चाहिए। कन्या पूजन में लांगूर यानी एक बालक को भी बैठाया जाता है। सबसे पहले कन्या पूजन के लिए कन्याओं को घर पर आदर और सम्मान के साथ बुलाएं। इसके बाद कन्याओं के पैरों को जल या दूध से धोकर उन्हें कुमकुम व सिंदूर का टिका लगाएं और आशीर्वाद लें।
इसके बाद कन्याओं और लागूंरा को भोजन कराएं। भोजन में हलवा, चना, पूरी, सब्जी, केला आदि शामिल करें। भोजन कराने के बाद कन्याओं को अपनी इच्छा अनुसार दान दक्षिणा दें। अंत में माता से भूल चूक के लिए क्षमा याचना कर सभी कन्याओं और लागूंरा के चरण स्पर्श करें और माता का जयकारा लगाते हुए उन्हें सप्रेम विदा करें।
मां सिद्धिदात्री की व्रत कथा
पौराणिक कथा अनुसार सिद्धिदात्री देवी के नाम का अर्थ होता है सिद्धि देने वाली देवी। मां सिद्धिदात्री की पूजा से इंसान के अंदर की बुराइयों और अंधकार का नाश हो जाता है और जीवन सुखों से भर जाता है। कहते हैं माता अपने भक्तों की सभी मनोकामना पूरी करती हैं। मां के स्वरूप की बात करें तो मां सिद्धिदात्री कमल पर विराजमान हैं और इनकी सवारी शेर है। देवी की चार भुजाएं होती है। इनके दाएं हाथ में गदा, दूसरे दाहिने हाथ में चक्र है। दोनों बाएं हाथ में शंख और कमल का फूल है। कहते हैं भगवान शिव ने मां सिद्धिदात्री की कठोर तपस्या करके 8 सिद्धियां प्राप्त की थी।
इतना ही नहीं मां सिद्धिदात्री की ही कृपा से भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था जिस वजह से भगवान का एक नाम अर्धनारीश्वर पड़ा था। कहते हैं देवी दुर्गा का यह स्वरूप अन्य सभी स्वरूपों की तुलना में सबसे ज्यादा शक्तिशाली है। कथा में यह उल्लेखित है कि जब दैत्य महिषासुर के अत्याचारों से सभी देवता परेशान हुए, तो वे भगवान शिव और भगवान विष्णु के पास गए। वहां उपस्थित सभी देवताओं से एक तेज उत्पन्न हुआ, जिससे एक दिव्य शक्ति का निर्माण हुआ, जिसे मां सिद्धिदात्री के नाम से जाना जाता है।