Mukhtar Ansari Death
बांदा। उत्तर प्रदेश में गैंगस्टर से नेता बने बाहूबली, डॉन मुख्तार अंसारी का अंत हो गया। बांदा जेल बंद यूपी का ये दबंग गुरुवार रात सदा के लिए मौत की नींद सो गया। प्रशासन दावा कर रहा है कि उसे रात में उल्टी हुई फिर बेहोशी आई। इसके बाद जेल प्रशासन उसे रात 8:25 बजे रानी दुर्गावती मेडिकल कॉलेज ले जाया गया, यहां 9 डॉक्टरों ने उसको चेक किया, लेकिन मुख्तार अंसानी को बचाया नहीं जा सका।
शुक्रवार को 3 डॉक्टरों के पैनल समेत 5 लोगों की टीम ने मुख्तार के शव का पोस्टमार्टम किया। इसे बाद मुख्तार को उसके पैत्रिक घर गाजीपुर ले जाया गया। मुख्तार अंसारी की मौत की खबर पूरे यूपी में जंगल की आग की तरह फैली। उससे सताए लोगों ने जश्न मनाया तो उसके चाहने वाले रोते भी दिखे। राजनीतिक प्रतिक्रियाएं भी आई।
विपक्ष जहां अंसारी की मौत को हत्या बता रहा है तो राज्य सरकार से लेकर केंद्र के मंत्री आरोपों को बेबुनियाद बता रहे हैं। अंसारी के बेटे ने मीडिया को बताया कि उसके पिता को जहर दिया गया था।
राजनीतिक बयानबाजी से माहौल खराब ना हो इसे भांपते हुए योगी सरकार पहले ही पूरे राज्य में सुरक्षा बढ़ा दी गई है। मऊ और गाजीपुर में धारा 144 लागू कर दी गई है। बांदा में भी सुरक्षा के विशेष इंतजाम किए गए हैं।
अब आपको संक्षेप में बताते हैं मुख्तार अंसारी और उसके रसूख के बारे में
पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई जिलों में मुख्तार अंसारी आतंक का पर्याय था। उससे चाहने वाले भी हैं और नफरत करने वाले भी। अंसारी की मृत्यु के साथ ही अपराध के एक युग और राजनीति के साथ उसके गठजोड़ के एक अध्याय का अंत हो गया। अंसारी के खिलाफ हत्या से लेकर जबरन वसूली तक के 65 मामले दर्ज थे, फिर भी वह विभिन्न राजनीतिक दलों के टिकट पर पांच बार विधायक चुना गया।
रसूखदार था मुख्तार अंसारी का परिवार
मुख्तार अंसारी का जन्म 20 जून 1963 को नगर पालिका परिषद मुहम्मदाबाद के पूर्व चेयरमैन सुबहानुल्लाह अंसारी के तीसरे बेटे के रूप में हुआ था। मुख्तार के दादा मुख्तार अहमद अंसारी स्वतंत्रता सेनानी थे। महात्मा गांधी के सहयोगी रहते हुए वह 1926-27 में कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। नाना बिग्रेडियर उस्मान आर्मी में थे और उन्हें उनकी वीरता के लिए महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था। देश के पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी भी मुख्तार अंसारी के रिश्ते के चाचा हैं।
उमर बढ़ने के साथ ही अंसारी ने राज्य में पनप रहे सरकारी ठेका माफियाओं में खुद को स्थापित करने के लिए अपना गिरोह बनाया और फिर अपराध की दुनिया में दस्तक दी। साल 1978 की शुरुआत में जब वो महज 15 साल का था उसने अपराध की दुनिया में पहला कदम रखा। तब अंसारी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 506 (आपराधिक धमकी) के तहत गाजीपुर के सैदपुर थाने में पहला मामला दर्ज किया गया था। इसके बाद लगभग एक दशक में 1986 के आते तक वो ठेका माफियाओं के बीच एक जाना-पहचाना चेहरा बन गया। इसके बाद अंसारी पर हत्या, वसूली, धमकी जैसे कई केस दर्ज हुए।
हैरानी के बात ही है कि अंसारी पर जैसे मुकदमे बढ़े उसे राजनीति में जगह मिलती गई। जब उस पर 14 मामले दर्ज थे। तब अंसारी पहली बार 1996 में मऊ से बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर विधायक चुना गया। इसके बाद राजनीति उसे फिर हार नहीं मिली बल्कि उसने खुद अपने बेटे के लिए सीट छोड़ दी थी जिस पर बेटे भी राजनीतिक विरासत आगे बढ़ाई।
कृष्णानंद राय हत्याकांड के बाद ही अंसारी का बुरा दौर शुरू हुआ
मुख्तार के बड़े भाई अफजाल अंसारी ने गाजीपुर की मोहम्मदाबाद विधानसभा सीट से 1985 से 1996 तक लगातार 5 बार चुनाव जीता था। लेकिन 2002 के चुनाव में भाजपा के कृष्णानंद राय ने अफजाल अंसारी को हरा दिया। तीन साल बाद 29 नवंबर 2005 को कृष्णानंद राय की हत्या कर दी गई। मुख्तार उस वक्त जेल में था, इसके बावजूद उसे इस हत्याकांड में नामजद किया गया। और यहीं से उसके बुरे दिनों को सिलसिला तेज हो गया। जब अंसारी की मौत की खबर आई तो कृष्णानंद राय की पत्नी अलका राय ने भी अपनी प्रतिक्रिया सुनिए…
अंसारी पिछले 19 साल से यूपी और पंजाब की कई जेलों में बंद रहा। साल 2005 से जेल में रहते हुए उसके खिलाफ हत्या और गैंगस्टर अधिनियम के तहत 28 केस दर्ज हो गए थे और सितंबर 2022 से आठ आपराधिक मामलों में उसे दोषी ठहराया जा चुका था।
सितंबर 2022 से लेकर पिछले 18 महीनों में यह आठवां मामला था, जिसमें मुख्तार अंसारी को उत्तर प्रदेश की विभिन्न अदालतों ने सजा सुनाई थी। उसे एक अन्य मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। वैसे अंसारी के इंतने अपराध थे कि उसे एक बार में एक साथ बताना आसान नहीं है।