नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने फैसला लेते हुए कहा की रिश्वत लेने पर सांसदों और विधायकों को कानूनी छूट नहीं मिलेगी. यह फैसला निश्चित रूप से राजनीति में नैतिकता और शुचिता की दिशा में एक बड़ा कदम है। यह फैसला महुआ मोइत्रा के मामले में भी महत्वपूर्ण है, जिन पर रिश्वत लेकर सदन में सवाल पूछने का आरोप है। अब CBI या जो भी जांच एजेंसी मामले की जांच कर रही है, वो महुआ मोइत्रा के मामले में केस दर्ज कर सकती है और दिल्ली के MP/MLA कोर्ट में ये मामला चल सकता है.
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के मुख्य बिंदु:
सांसदों और विधायकों को सदन में भाषण या वोट के लिए रिश्वत लेने पर कानूनी छूट नहीं मिलेगी।
यह फैसला 1998 के फैसले को पलटता है, जिसमें सांसदों और विधायकों को रिश्वत लेने पर अभियोजन से छूट दी गई थी।
अब CBI या कोई भी जांच एजेंसी महुआ मोइत्रा के मामले में केस दर्ज कर सकती है और दिल्ली के MP/MLA कोर्ट में मामला चल सकता है।
यह फैसला देश की राजनीति में नैतिकता और शुचिता को बढ़ावा देगा।
दरअसल 8 दिसंबर 2023 को महुआ मोइत्रा के मामले में लोकसभा की एथिक्स कमेटी की रिपोर्ट सदन के पटल पर रखी गई थी. एथिक्स कमेटी ने Cash For Query यानी पैसे लेकर सवाल पूछने के मामले में महुआ मोइत्रा को दोषी करार दिया था, जिसके बाद उन्हें सदन से निष्कासित कर दिया गया था. अब सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने फैसले में साफ कहा है कि सांसदों को अनुच्छेद 105(2) और 194(2) के तहत किसी भी तरह की कानूनी छूट नहीं मिलती जो उन्हें रिश्वत लेने के बाद अभियोजन से बचा सके. यानी कि अगर रिश्वत लेकर कोई भाषण या वोट दिया है तो बतौर सांसद मिलने वाला विशेषाधिकार लागू नहीं होगा और आपराधिक मामला वैसे ही चलेगा, जैसा सामान्य मामलों में चलता है.
इस फैसले के कुछ संभावित परिणाम:
सांसदों और विधायकों को रिश्वत लेने से पहले दो बार सोचना होगा।
यह राजनीतिक भ्रष्टाचार को कम करने में मदद कर सकता है।
यह राजनीति में नैतिकता और शुचिता को बढ़ावा देगा।
यह फैसला निश्चित रूप से एक सकारात्मक कदम है, लेकिन यह केवल शुरुआत है। राजनीति में भ्रष्टाचार को पूरी तरह से खत्म करने के लिए अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
इस मामले में मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 7 सदस्यीय बेंच ने इस मामले में 5 अक्टूबर 2023 को अपना फ़ैसला सुरक्षित रखा था. 1998 में दिए गए फ़ैसले में सांसदों और विधायकों को सदन में भाषण देने या फिर वोट देने के लिए रिश्वत लेने पर भी अभियोजन से छूट दी गई थी. देश की राजनीति को हिलाने वाले JMM रिश्वत कांड के इस फ़ैसले की 25 साल बाद देश की सबसे बड़ी अदालत पुनर्विचार किया है