Makar sankranti 2025
रायपुर। वैसे तो हिंदू धर्म में सभी त्योहारों का अपना अलग और खास महत्व रहता है। इसी तरह प्रमुख त्योहारों में से एक मकर संक्रांति भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसे हर वर्ष जनवरी माह में मनाया जाता है। इस दिन सूर्य देव धनु राशि से निकल कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। बता दें कि मकर संक्रांति एक ऋतु पर्व है। जो दो ऋतुओं का संधिकाल होता है।
यह त्योहार शीत ऋतु के खत्म होने और वसंत ऋतु के आगमन की सूचना देता है। पिछले कुछ सालों से मकर संक्रांति का पर्व कभी 14 तो कभी 15 जनवरी को मनाया जाता है। पूरे देश में यह पर्व अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। वहीं कुछ राज्यों में इस खिचड़ी के नाम से जाना जाता है। क्योंकि इस दिन खिचड़ी खाना और दान करने की परंपरा है।
Makar sankranti 2025
इस दिन गंगा स्नान और दान-पुण्य का भी विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन दान करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है। मकर संक्रांति के दिन काले तिल, खिचड़ी, काली उड़द की दाल, चावल, गुड़, कंबल और घी का दान बेहद शुभ माना जाता है। कहते हैं इन चीजों का दान करने से मान-सम्मान व प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है।
Makar sankranti 2025
जानिए क्या होता है गुड़-तिल का खास महत्व
सनातन धर्म के अनुसार, मकर संक्रांति पर परंपरा के तौर पर गुड़ और तिल का भोग लगाना शुभ माना जाता है। गुड़ और तिल का ज्योतिष शास्त्र में भी महत्व होता है। यहां पर गुड़ को ज्योतिष में समझे तो,विशेष रूप से व्यक्ति की कुंडली में राहु और केतु के दोष को निवारण करने के लिए बनाया जाता है। अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में राहु या केतु का अशुभ प्रभाव हो, तो वह व्यक्ति गुड़ का दान करके इन ग्रहों के दुष्प्रभाव को कम कर सकता है।
खिचड़ी का दान
मकर संक्रांति के दिन काली उड़द की दाल की खिचड़ी का दान करना चाहिए। मान्यता है कि इस दिन इन चीजों का दान करने से भाग्य में वृद्धि होती हैं, साथ ही शनिदेव भी प्रसन्न होते हैं।
Makar sankranti 2025
काले तिल का दान
मकर संक्रांति के शुभ दिन पर काले तिल का दान अवश्य करना चाहिए। माना जाता है कि जल में काले तिल डालकर भगवान सूर्यदेव को अर्घ्य देने पर वह प्रसन्न होते हैं, इतनी ही नहीं इससे भगवान शनिदेव का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है।
कैसे शुरू हुई खिचड़ी खाने की परंपरा?
मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी खाने की परंपरा से जुड़ी एक कहानी प्रचलित हैं। जिसके अनुसार, जब खिलजी ने देश पर आक्रमण किया तो चारों तरफ लगातार संघर्ष चल रहा था। ऐसे में योगी मुनियों को अपनी जमीनों को बचाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता था। कई बार वे भूखे भी रह जाते थे। तब एक दिन बाबा गोरखनाथ ने उनकी समस्या को हल करने के लिए काली उड़द की दाल में चावल, घी और कुछ सब्जियां डालकर पका दिया ताकि उनका पेट भी भर जाए और इसे बनाने में ज्यादा समय भी नहीं लगा।
जब खिचड़ी बनकर तैयार हुई तो सबको बहुत पसंद आयी और इससे योगियों को आसानी से भूख मिटाने का रास्ता भी मिल गया। इस व्यंजन को बाबा गोरखनाथ ने खिचड़ी का नाम दिया। बता दें कि जिस दिन इसे पहली बार तैयार किया गया था, उस दिन मकर संक्रांति का दिन था। इसके बाद से तमाम जगहों पर मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी बनाने की परंपरा की शुरूआत को गई।
Makar sankranti 2025
मकर संक्रांति के दिन हर साल गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी मेले का आयोजन किया जाता है। जिसकी शुरुआत बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी का भोग लगाकर की जाती है। इसके बाद पूरे मेले में खिचड़ी को प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। इस दिन गोरखनाथ मंदिर खिचड़ी चढ़ाई भी जाती है।
मकर संक्रांति का महत्व
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य उत्तरायण होते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस अवधि में मृत्यु को प्राप्त होने वाले व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दौरान सूर्य की पूजा का विशेष महत्व होता है। ऐसी भी मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि से मिलने उनके घर जाते हैं। दरअसल मकर राशि के स्वामी शनि देव हैं और सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना पिता और पुत्र के अनोखे मिलन को दर्शाता है।
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