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प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि हिन्दू विवाह अधिनियम के अनुसार यदि पति-पत्नी जीवित हैं और यदि उनका तलाक नहीं हुआ है तो उनमें से कोई भी दूसरी शादी नहीं कर सकते है। कोर्ट ने अपने फैसले में साफ साफ कहा कि कानून के विरुद्ध संबंधों को न्यायालय का समर्थन नहीं मिलेगा।
इसी के साथ कोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाली विवाहिता की याचिका खारिज कर दी। जानकारी के मुताबिक, एक महिला ने सुरक्षा की मांग को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी।
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जस्टिस रेनू अग्रवाल ने कासगंज की एक विवाहिता की याचिका खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि विवाहित महिला अपने पति से तलाक लिए बिना किसी अन्य के साथ लिव इन में नहीं रह सकती है। ऐसे रिश्तों को मान्यता देने से समाज में अराजकता बढ़ेगी। याचिका में कहा गया था कि दोनों लिव इन रिलेशनशिप में है।
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उन्होंने एसपी कासगंज से अपनी सुरक्षा की मांग की थी। यहां से कोई सुनवाई न होने पर कोर्ट में याचिका दाखिल की गयी।सुनवाई के दौरान यह तथ्य सामने आया कि लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला और उसका प्रेमी दोनों ही पहले से शादीशुदा हैं।
याचिका का प्रेमी युवक की पत्नी द्वारा विरोध भी किया गया। कोर्ट में लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले जोड़े के पहले से शादीशुदा होने के सबूत भी पेश किए गए। विवाहिता याची दो बच्चे भी है और दूसरे याची के साथ लिव इन में रह रही है। कोर्ट ने इसे कानून के खिलाफ माना और सुरक्षा देने से इंकार कर दिया और याचिका को खारिज कर दिया।
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