Kanwar Yatra Nameplate Row
उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा रूट पर दुकानदारों को अपनी पहचान बताने के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम रोक लगाते हुए योगी सरकार को बड़ा झटका दिया है। कोर्ट ने सोमवार को अपने फैसले में कहा कि दुकानदारों को पहचान बताने की जरूरत नहीं है। इसके साथ ही कोर्ट ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड सरकार को नोटिस जारी कर शुक्रवार तक जवाब मांगा है।
इस मामले में अगली सुनवाई 26 जुलाई को होगी। वही सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि अल्पसंख्यकों की पहचान कर उनका आर्थिक बहिष्कार किया जा रहा है। जो एक चिंताजनक स्थिति है। जिसके बाद विपक्ष ने इस मुद्दे पर कड़ा विरोध दर्ज कराया था। दुकानदारों की धर्म और जाति की पहचान उजागर करने वाले आदेशों को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई हैं।
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इन पर सोमवार को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी है। आदेश के तहत कांवड़ यात्रा रूट पर दुकानदारों को पहचान बताने की जरूरत नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दुकानदारों को केवल खाने के प्रकार बताने होंगे। उन्हें बताना होगा कि भोजनालय में शाकाहारी व्यंजन परोसा जा रहा है या मांसाहारी।
नेमप्लेट विवाद कहां से उपजा?
17 जुलाई को मुजफ्फरनगर के SSP अभिषेक सिंह ने कहा कि जिले के करीब 240 किमी एरिया में कांवड़ मार्ग पड़ता है। जहा सभी होटल, ढाबा, दुकान और ठेले, जहां से कांवड़िए खाने का सामान खरीद सकते हैं, सभी को अपनी दुकान के बाहर मालिक का नाम और नंबर साफ अक्षरों में लिखना होगा।
ऐसा करना इसलिए जरूरी बताया जा रहा था, ताकि कांवड़ियों में कोई कन्फ्यूजन न रहे और कानून व्यवस्था में बाधा न आए। इसके बाद मुजफ्फरनगर पुलिस के आदेश के बाद 19 जुलाई को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसे पूरे राज्य में लागू कर दिया।
सरकार के मुताबिक, कांवड़ियों की शुचिता बनाए रखने के लिए ये फैसला लिया गया। हलाल सर्टिफिकेशन वाले प्रोडक्ट बेचने वालों पर भी कार्रवाई होगी। इसके बाद ऐसा ही एक आदेश उत्तराखंड के हरिद्वार में लागू किया गया। इसके बाद 20 जुलाई को उज्जैन के मेयर ने भी दुकान के मालिकों को अपने नाम और फोन नंबर वाली नेमप्लेट लगाने के लिए कह दिया।
कांवड़ियों पर यूपी सरकार का आदेश अब सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया है। एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स नाम के एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करके यूपी सरकार के आदेश को रद्द करने की मांग की है। यह याचिका 20 जुलाई की सुबह 6 बजे ऑनलाइन दाखिल की गई है। सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री ने मामले को सुनवाई के लिए लिस्ट कर लिया है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 26 जुलाई को सुनवाई की अगली तारीख निर्धारित की है।
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