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Jagannath Rath Yatra 2024 : पुरी में आज से शुरू जगन्नाथ रथयात्रा, बलराम और बहन सुभद्रा के साथ भ्रमण पर निकले भगवान जगन्नाथ

Jagannath Rath Yatra 2024

आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि में आज भगवान जगन्नाथ और बलदाऊ जी अपनी बहन सुभद्रा संग रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण के लिए निकलेंगे। हर वर्ष उड़ीसा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का विशाल और भव्य आयोजन किया जाता है। यह रथ यात्रा हिंदू धर्म में विशेष स्थान रखता है।

हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि पर विशाल रथ यात्रा निकाली जाती है, फिर आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष 10वीं तिथि पर इस यात्रा का समापन होता है। रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र संग साल में एक बार प्रसिद्ध गुंडिचा माता के मंदिर में जाते हैं। ज्येष्ठ पूर्णिमा पर अभिषेक-स्नान के बाद जगत के स्वामी की तबीयत खराब हो गई थी।

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Jagannath Rath Yatra 2024

स्नान पूर्णिमा पर बीमार हुए भगवान जगन्नाथ आज सुबह ठीक हो गए है। 53 साल बाद इस साल पुरी की रथयात्रा दो दिनों की होगी, इससे पहले 1971 में भी रथयात्रा दो दिन चली थी। भव्य रथ यात्रा में शामिल होने के लिए बड़ी संख्या में साधु-संत पुरी पहुंच चुके है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो व्यक्ति रथ यात्रा में शामिल होकर स्वामी जगन्नाथजी के नाम का कीर्तन करता हुआ गुंडीचा नगर तक जाता है वह सारे कष्टों से मुक्त हो जाता है, जबकि जो व्यक्ति जगन्नाथ को प्रणाम करते हुए मार्ग के धूल-कीचड़ आदि में लोट-लोट कर जाता है वो सीधे भगवान विष्णु के उत्तम धाम को प्राप्त होता है।

क्यों है अधूरी भगवान जगन्नाथ की मूर्ति

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार राजा इंद्रद्युम्न पुरी में जगन्नाथ जी का मंदिर बनवा रहे थे। उन्होंने भगवान जगन्नाथ की मूर्ति बनाने का कार्य देव शिल्पी विश्वकर्मा को सौंपा। मूर्ति बनाने से पहले विश्वकर्मा जी ने राजा इंद्रद्युम्न के सामने शर्त रखी कि वे दरवाजा बंद करके मूर्ति बनाएंगे और जब तक मूर्तियां नहीं बन जातीं तब तक अंदर कोई प्रवेश नहीं करेगा।

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उन्होंने ये भी कहा कि यदि दरवाजा किसी भी कारण से पहले खुल गया तो वे मूर्ति बनाना छोड़ देंगे। राजा ने भगवान विश्वकर्मा की शर्त मान ली और बंद दरवाजे के अंदर मूर्ति निर्माण कार्य शुरू हो गया, लेकिन राजा इंद्रद्युम्न ये जानना चाहते थे कि मूर्ति का निर्माण हो रहा है या नहीं। ये जानने के लिए राजा प्रतिदिन दरवाजे के बाहर खड़े होकर मूर्ति बनने की आवाज सुनते थे।

एक दिन राजा को अंदर से कोई आवाज सुनाई नहीं दी तो उनको लगा कि विश्वकर्मा काम छोड़कर चले गए हैं। इसके बाद राजा ने दरवाजा खोल दिया। इससे नाराज होकर बाद भगवान विश्वकर्मा वहां से अंतर्ध्यान हो गए और भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां अधूरी ही रह गईं। उसी दिन से आज तक मूर्तियां इसी रूप में यहां विराजमान हैं और आज भी इसी रूप में उनकी पूजा होती है।

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