Gariaband Breaking News
गरियाबंद। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के छुरा क्षेत्र में रहने वाली 70 वर्षीय दलित महिला, ओमबाई बघेल, इन दिनों पूरे राज्य ही नहीं बल्कि देशभर में चर्चा का विषय बन गई हैं। वजह है। उन्होंने अपने खून से भारत के राष्ट्रपति को एक भावुक और तीखा पत्र लिखा है।
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यह कोई फिल्मी कहानी नहीं, बल्कि उस सच्चाई की तस्वीर है जहाँ एक वृद्ध महिला, गंभीर बीमारी (टीबी) से जूझते हुए भी न्याय की उम्मीद में हर सरकारी दरवाज़ा खटखटाती रही। ओमबाई बघेल का दर्द सिर्फ़ व्यक्तिगत नहीं है, यह उस दलित समुदाय का प्रतिनिधित्व करता है जो आज भी अपने सम्मान और अधिकार के लिए संघर्षरत है।
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ओमबाई का कहना है कि उनके पूर्वजों की समाधि (जिसे मठ कहा जाता है) को ज़बरदस्ती तोड़ दिया गया। यह सिर्फ़ एक धार्मिक स्थल का विध्वंस नहीं था, बल्कि उनकी आस्था, सम्मान और इतिहास को मिटाने की कोशिश थी। यही नहीं, उनके परिवार के साथ भी बेहद अभद्र और अपमानजनक व्यवहार किया गया।
उन्होंने गरियाबंद के कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक और छुरा थाना में कई बार आवेदन देकर शिकायत की, लेकिन हर जगह से उन्हें निराशा ही मिली। जब उन्हें महसूस हुआ कि कानूनी प्रक्रिया उनकी आवाज़ नहीं सुन रही, तब उन्होंने अपने खून को ही अपनी आवाज़ बना लिया, और राष्ट्रपति को खून से पत्र लिख दिया।
पत्र में उन्होंने अपने दर्द के साथ-साथ इस सवाल को भी उठाया है कि क्या दलित समाज को न्याय के लिए इस हद तक जाना पड़ेगा? क्या लोकतंत्र में किसी वृद्ध महिला की पुकार तब तक नहीं सुनी जाएगी जब तक वह अपने शरीर से खून न बहा दे?
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ओमबाई बघेल का यह कदम पूरे लोकतांत्रिक सिस्टम के लिए एक आईना है। उन्होंने कानून तो नहीं तोड़ा, हिंसा का रास्ता नहीं चुना, उन्होंने संविधान पर विश्वास जताया, लोकतंत्र की सर्वोच्च संस्था, राष्ट्रपति से गुहार लगाई।
उनकी यह कोशिश अब एक चेतावनी की तरह है, कि अगर समय रहते न्यायप्रियता, संवेदनशीलता और जवाबदेही नहीं दिखाई गई, तो लोगों का संविधान और लोकतंत्र से भरोसा उठ सकता है।
यह घटना सिर्फ ओमबाई बघेल की नहीं है, यह उन तमाम आवाज़ों की पुकार है जो अब भी हाशिये पर हैं। अब यह सिर्फ़ जवाब का समय नहीं, यह जिम्मेदारी निभाने का समय है। ताकि भविष्य में किसी और को अपने खून से इंसाफ माँगने की नौबत न आए।