G7 Summit Update
कनाडा के कैलगरी में आयोजित जी-7 समिट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात नहीं हो पाएगी। इस बहुप्रतीक्षित बैठक की पृष्ठभूमि पहले से तैयार थी, लेकिन ट्रंप मिडिल ईस्ट में बढ़ते ईरान-इजराइल तनाव के चलते अचानक अमेरिका लौट गए।
व्हाइट हाउस की ओर से जारी बयान में सीधे तौर पर युद्ध का जिक्र नहीं किया गया, लेकिन ट्रंप ने खुद सोशल मीडिया पर ईरान को चेताते हुए कहा कि उसे परमाणु समझौते पर तुरंत हस्ताक्षर करने चाहिए और न्यूक्लियर हथियारों से दूर रहना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि सभी को तत्काल तेहरान छोड़ देना चाहिए।
जी-7 समिट के पहले दिन इजराइल-ईरान संघर्ष पर एक साझा प्रस्ताव तैयार किया गया था, लेकिन ट्रंप ने उसमें हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया। उनकी इस एकतरफा रवैए ने समिट की एकता पर सवाल खड़े कर दिए। कनाडा की एक न्यूज वेबसाइट के अनुसार, ट्रंप का कहना है कि ईरान यह युद्ध हार रहा है लेकिन उसने बातचीत शुरू करने में देर कर दी।
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प्रधानमंत्री मोदी हालांकि कार्यक्रम के अनुसार कैलगरी पहुंच चुके हैं और समिट में हिस्सा ले रहे हैं। वे फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रो, जापान के शिगेरु इशिबा, ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज, ब्रिटेन के कीर स्टारमर, जर्मनी के फ्रेडरिक मर्ज और कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी से द्विपक्षीय वार्ताएं करेंगे।
इस बीच, ट्रंप का पहनावा भी चर्चा का विषय बन गया जब उन्होंने अमेरिका और कनाडा दोनों के झंडे वाला एक पिन अपने कोट पर लगाया। राजनीतिक हलकों में इसे ट्रंप की उस पुरानी इच्छा से जोड़ा जा रहा है, जिसमें वह कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य बनाना चाहते हैं। यह विचार खुद में हास्यास्पद है, लेकिन ट्रंप बार-बार इसे दोहराते रहे हैं और कनाडा बार-बार इसका खंडन करता रहा है।
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इतना ही नहीं, ट्रंप ने रूस को G7 में दोबारा शामिल करने की बात भी छेड़ दी। उन्होंने कहा कि पहले यह समूह G8 था, लेकिन बराक ओबामा और कनाडा के ट्रूडो की वजह से रूस को निकाला गया, जो उनके अनुसार एक बड़ी गलती थी।
इन तमाम घटनाक्रमों ने जी-7 समिट की दिशा बदल दी है। जहां एक ओर वैश्विक नेता एक मंच पर सहयोग बढ़ाने और युद्ध से बचने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं ट्रंप की नीतिगत असहमतियां और उनकी आक्रामक बयानबाजी इस समिट की गंभीरता को हल्का कर रही हैं। प्रधानमंत्री मोदी की द्विपक्षीय वार्ताओं पर अब सबकी निगाहें टिकी हैं, क्योंकि अमेरिका की अनुपस्थिति के बीच भारत की कूटनीतिक स्थिति और भी महत्वपूर्ण हो गई है।