EARTHQUAKES IN NEPAL
नेपाल एक बार फिर भूकंप के झटकों से हिल गया है। 29 और 30 जून को दो अलग-अलग समय पर आए इन झटकों ने लोगों में दहशत और विशेषज्ञों में चिंता बढ़ा दी है। भारत के राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र (NCS) के अनुसार,
- पहला भूकंप 29 जून को दोपहर 2:19 बजे आया जिसकी तीव्रता 4.2 मापी गई।
- दूसरा झटका 30 जून को सुबह 8:24 बजे महसूस किया गया, जिसकी तीव्रता 3.9 रही।
पहला भूकंप 10 किमी और दूसरा 14 किमी की उथली गहराई पर केंद्रित था, जो इन्हें अधिक खतरनाक बनाता है। विशेषज्ञों के अनुसार, सतह के नज़दीक आने वाले उथले भूकंप कम तीव्रता के बावजूद अधिक संरचनात्मक क्षति पहुंचा सकते हैं। यही कारण है कि इन भूकंपों को हल्के में नहीं लिया जा सकता।
EARTHQUAKES IN NEPAL
भूकंप की भौगोलिक स्थिति भी स्पष्ट की गई है—पहला झटका 29.35°N, 81.94°E पर और दूसरा 29.24°N, 81.77°E पर दर्ज किया गया। दोनों ही क्षेत्र भूगर्भीय दृष्टि से संवेदनशील जोन में आते हैं।
क्यों संवेदनशील है नेपाल?
नेपाल भारतीय और यूरेशियन टेक्टोनिक प्लेटों के टकराव क्षेत्र पर स्थित है। यह टकराव सबडक्शन ज़ोन बनाता है, जहां भारतीय प्लेट यूरेशियन प्लेट के नीचे खिसकती है। यही टकराव हिमालय का निर्माण करता है और यही इसे भूकंप की दृष्टि से सबसे जोखिमपूर्ण क्षेत्र बनाता है।
EARTHQUAKES IN NEPAL
2015 की तबाही अब भी जेहन में
25 अप्रैल 2015 को आए 7.8 तीव्रता वाले भूकंप ने नेपाल को झकझोर दिया था, जिसमें करीब 8,969 लोगों की जान गई थी और हजारों इमारतें धराशायी हो गई थीं। उस दर्दनाक घटना की 10वीं बरसी पर 26 अप्रैल 2025 को नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने धरहरा टॉवर की प्रतिकृति पर श्रद्धांजलि अर्पित की और पीड़ितों की याद में मौन रखा।
चेतावनी और ज़रूरत
बार-बार आ रहे ये भूकंप न सिर्फ एक प्राकृतिक चेतावनी हैं, बल्कि यह भी इशारा करते हैं कि नेपाल समेत पूरे हिमालयी क्षेत्र में भूकंप-रोधी संरचनाएं, जनजागरूकता, और आपदा प्रबंधन प्रणालियों को अब और भी अधिक मजबूत बनाने की जरूरत है। कहना साफ है—भूकंप टल नहीं सकते, लेकिन तैयारियां मज़बूत हो सकती हैं।