Neelkanth Bird on Dussehra
रायपुर। सनातन धर्म में दशहरे पर्व का विशेष महत्व होता है और हर वर्ष यह पर्व आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, दशहरे के दिन नीलकंठ पक्षी को देखने से भाग्योदय होता है और दरिद्रता दूर होती है। सांस्कृतिक रूप से इस पक्षी को समृद्धि, शांति, सौम्यता और समरसता का संदेशवाहक भी माना जाता है।
धार्मिक रूप से दुर्गा पूजा में विजयादशमी के दिन नीलकंठ पक्षी को देखना काफी फलदायी बताया गया है और बुराई पर अच्छाई की जीत की प्रेरणा का प्रतीक माना गया है। नीलकंठ के दर्शनों के साथ दशहरे के दिन शमी के पेड़ की पूजा करने का भी विधान है। आइए जानते हैं दशहरे के दिन नीलकंठ पक्षी देखने का धार्मिक महत्व क्या है…
Neelkanth Bird on Dussehra
नीलकंठ को भगवान शिव का प्रतीक माना जाता है। कहा जाता है कि जब भगवान शिव ने समुद्र मंथन के दौरान विष का पान किया था, तब उन्होंने इस रंग-बिरंगे पक्षी का रूप धारण किया था। वहीं ऐसी मान्यता है कि दशहरा के दिन भगवान शिव नीलकंठ पक्षी के रूप में धरती पर आए थे। तो वहीं कुछ मान्यताओं में नीलकंठ पक्षी को विजय का प्रतीक माना गया है। कहा जाता है कि भगवान राम ने दशहरे के दिन नीलकंठ पक्षी का दर्शन किए थे तभी रावण पर विजय प्राप्त की थी।
वहीं दूसरी कहानी में कहा जाता है कि रावण का वध करने पर भगवान राम को जब ब्रह्महत्या का पाप लगा लगा था तो उन्होंने लक्ष्मण के साथ भगवान शिव की पूजा आराधना की थी। जिससे प्रसन्न होने पर भोलेनाथ ने उन्हें नीलकंठ पक्षी के रूप में भगवान राम और लक्ष्मण को दर्शन दिए थे। इसलिए, दशहरा के दिन नीलकंठ पक्षी को देखना एक शुभ और सकारात्मक संकेत माना जाता है।
जानिए पौराणिक महत्व
विष्णु पुराण में नीलकंठ पक्षी को भगवान विष्णु का वाहन बताया गया है। वहीं, शिव पुराण में नीलकंठ पक्षी को भगवान शिव का गण माना गया है। जबकि, गर्ग संहिता और गरुड़ पुराण में नीलकंठ पक्षी को शुभ और मंगलकारी कहकर वंदना की गई है। कुछ और धार्मिक ग्रंथों में नीलकंठ पक्षी को मां दुर्गा की सहचरी माना है। मान्यता है कि दुर्गा पूजा संपन्न होने के बाद जब मां दुर्गा वापस कैलाश धाम जाती है, तो नीलकंठ उनका मार्गदर्शन करता है।
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