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Thursday, October 16, 2025

Parole Extended : कारोबारी अनवर ढेबर की पैरोल अवधि बढ़ाई गई…! मां की तबियत खराब होने पर मिली सात दिन की राहत

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CYBER ​​FRAUD : सब्ज़ी से साइबर तक, सब्जी वाला निकला साइबर ठग, बैंक मैनेजर की मिलीभगत से रचा करोड़ों का खेल

CYBER ​​FRAUD

नई दिल्ली। दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (EOW) ने एक हाई-प्रोफाइल साइबर फ्रॉड केस का खुलासा किया है, जिसमें एक 7वीं कक्षा तक पढ़ा-लिखा सब्जी विक्रेता और एक बैंक मैनेजर शामिल हैं। इन दोनों ने मिलकर देश की प्रतिष्ठित कंपनी L&T SUCG JV के कॉर्पोरेट बैंक खाते से करीब 9 करोड़ रुपये चुरा लिए।

जैसे फिल्म की कहानी

पुलिस के मुताबिक, नितिन डोंगरे, जो मूलतः महाराष्ट्र का रहने वाला है और सब्जी बेचने का काम करता था, ने इस धोखाधड़ी की साजिश रची। उसने खुद को L&T कंपनी का कर्मचारी बताते हुए दिल्ली की एक्सिस बैंक की ब्रांच में खाता संबंधित जानकारी बदलवाई। इसके बाद उसने महाराष्ट्र के उस्मानाबाद से कॉर्पोरेट इंटरनेट बैंकिंग का एक्सेस ले लिया।

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94 ट्रांजैक्शनों में उड़ाए करोड़ों

जांच में सामने आया कि 11 जुलाई से 30 अगस्त 2024 के बीच नितिन ने कुल 94 बार ट्रांजैक्शन कर के 8.94 करोड़ रुपये अलग-अलग खातों में ट्रांसफर किए।

बैंक मैनेजर बना साजिश का हिस्सा

इस केस में चौंकाने वाला पहलू यह रहा कि नितिन को यह अंदरूनी जानकारी एक बैंक अधिकारी, आशीष खंडेलवाल ने दी। आशीष ने न केवल पुराने डॉर्मेन्ट खाते की जानकारी दी, बल्कि खाताधारक के हस्ताक्षर और आईडी की कॉपी भी उपलब्ध कराई, जिससे नितिन का काम आसान हो गया।

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ऐसे हुआ खुलासा

पुलिस ने मोबाइल लोकेशन, बैंकिंग डेटा और ई-कॉमर्स डिलीवरी रिकॉर्ड्स के ज़रिए नितिन तक पहुंच बनाई। उसे पुणे के साईनाथ नगर से गिरफ्तार किया गया, जहां पूछताछ में उसने अपराध स्वीकार कर लिया और बैंक मैनेजर आशीष खंडेलवाल का नाम भी उजागर किया। आशीष को 8 अप्रैल को दिल्ली से गिरफ्तार किया गया।

कर्ज में डूबा था मास्टरमाइंड

नितिन डोंगरे को सब्जी व्यापार में भारी नुकसान हुआ था और उस पर किसानों का कर्ज था। इसी आर्थिक तंगी ने उसे इस डिजिटल अपराध की ओर धकेला। वहीं, बैंक अधिकारी ने निजी फायदे के लिए बैंक की गोपनीयता से समझौता किया।

सवाल उठता है…

इस घटना ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि सिर्फ तकनीक नहीं, बल्कि इंसानी लालच और सिस्टम की कमजोरियाँ भी साइबर अपराध को बढ़ावा देती हैं। क्या डिजिटल बैंकिंग सुरक्षित है? और क्या अंदरूनी कर्मचारियों की जांच अब और सख्त होनी चाहिए?

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