CJI DY Chandrachud
नई दिल्ली। आज यानी 10 नवंबर को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ अपने दो साल के कार्यकाल के बाद रिटायर हो रहे हैं। आज 8 नवंबर को उनका लास्ट वर्किंग डे है। ऐसे में जस्टिस चंद्रचूड़ आज देश के CJI के रूप अपने लास्ट वर्किंग डे में कई बड़े अहम फैसले ले सकते हैं। इसमें से आज एक फैसला AMU को अल्पसंख्यक संस्थान माना जाए या नहीं? इस पर भी हो सकता है।
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बता दें कि 10 नवंबर को चीफ जस्टिस ऑडीवाई चंद्रचूड़ रिटायर होने के बाद देश के अगले चीफ जस्टिस जस्टिस संजीव खन्ना होंगे। ये आगामी 11नवंबर यानी शुक्रवार को अपना पदभार संभालेंगे और देश के 51वें चीफ जस्टिस होंगे। वह कल अपना शपथ ग्रहण करेंगे। प्रधान न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति खन्ना का कार्यकाल करीब छह महीने का होगा और वह 13 मई 2025 को सेवानिवृत्त होंगे।
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इससे एक दिन पहले वर्तमान चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ 65 वर्ष की उम्र पूरी करने पर पद मुक्त हो जाएंगे। जस्टिस चंद्रचूड़ ने आठ नवंबर, 2022 को चीफ जस्टिस के रूप में पदभार ग्रहण किया था। जस्टिस खन्ना का प्रधान न्यायाधीश के रूप में कार्यकाल 6 महीने से कुछ अधिक होगा और वह 13 मई, 2025 को पदमुक्त होंगे।
1967 में में हुआ फैसला
मौजूदा समय में AMU में राज्य सरकार की आरक्षण नीति लागू नहीं है, लेकिन विश्वविद्यालय में अपनी आंतरिक आरक्षण नीति है, जिसके तहत 50% सीटें उन छात्रों के लिए आरक्षित हैं जिन्होंने इसके संबंधित स्कूलों और कॉलेजों से शिक्षा प्राप्त की है। यह मुद्दा पहले भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय किया जा चुका है। 1967 में, एस. अजीज बाशा वर्सेस भारत संघ मामले में पांच जजों की एक बेंच ने यह कहा था कि AMU को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता।
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जज ने अलिगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अधिनियम, 1920 का उल्लेख करते हुए यह कहा था कि AMU न तो मुस्लिम समुदाय द्वारा स्थापित किया गया था और न ही इसे मुस्लिम समुदाय द्वारा संचालित किया जाता था, जो कि अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थानों के लिए अनुच्छेद 30 (1) के तहत आवश्यक है।
आज के फैसले के बाद यह देखन दिलचस्प होगा कि AMU का भविष्य क्या होगा और क्या यह अपने आरक्षण और अन्य नीतियों में बदलाव करेगा। इस फैसले से न केवल AMU के भविष्य को आकार मिलेगा, बल्कि यह अन्य संस्थानों के लिए भी एक मिसाल पेश करेगा, जो अल्पसंख्यक संस्थान होने का दावा करते हैं।
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