Christian conversion in Chhattisgarh
रायपुर। छत्तीसगढ़ के कई जिलों में तेजी से ईसाई धर्मांतरण का खेल चल रहा है। ईसाई धर्म से जुड़े लोग भोले भाले लोगों को लोभ लालच में फंसाते हैं। फिर धीमे जहर की तरह ईसाइयत का पाठ पढ़ाकर धर्मांतरण तक ले जाते हैं। इनका शिकार आर्थिक रूप से कमजोर लोग, समाज के वंचित वर्ग के अलावा आदिवासी होते हैं। ईसाई धर्म से जुड़े धर्मावलंबी कमजोर लोगों को सक्षम बनाने के नाम पर उनका धर्म परिवर्तन करा रहे हैं।
इसी विषय पर राजधानी के राजेंद्र नगर स्थित द फोर्थ पिलर ने अशोका मिलेनियम में एक परिचर्चा आयोजित की। इसमें रायपुर के कई वरिष्ठ पत्रकार पहुंचे और धर्मांतरण के नेटवर्क, कार्यप्रणाली, धर्मांतरण का उद्देश्य और इसके पीछे मौजूद राजनीतिक और आर्थिक शक्तियों की साजिश के नाम को उजागर किया गया।
चर्चा में वरिष्ठ पत्रकार वरुण शखावत ने प्रदेश में हाल के दिनों में हुए धर्मांतरण की खबरों की रिपोर्टिंग और खबर के बाद पोस्ट रिपोर्टिंग नहीं होने पर चिंता जताई गई। उन्होंने मीडिया की समुचित भूमिका समेत कई अहम मुद्दे उठाए।
चर्चा के दौरान वरिष्ठ पत्रकार अजय भान सिंह ने ईसाई मिशिनरीज के काले कारनामे और उनके उद्देश्यों के साथ इसके पीछे मौजूद राजनीतिक शक्तियों और आर्थिक ताकतों का खुलकर जिक्र किया।
साथ ही बताया कि जो लोग ईसाई धर्मावलंबियों को अहिंसक मानते आएं हैं उनके इतिहास में उनके द्वारा किए गए अत्याचारों का ठीक से अध्ययन कर लेना चाहिए।
श्रीसिंह ने अपने वक्तव्य में भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में लगभग पूरी तरह फैल चुके ईसाई धर्मांलंवियों की कारगुजारियों पर प्रकाश डाला। साथ ही वेटिकन के रोल और उनके सहयोग के लिए यूरोप के राजघरानों के आर्थिक सहयोग की भी गहरी जानकारी दी।
चर्चा के दौरान ज्यादातर पत्रकारों ने इस बात पर बल दिया कि जब भी धर्मांतरण की बात आए तो पत्रकार को भी हिंदू होने से पहले भारतीय होकर अपनी सनातनी परपंरा बचाने की भी जिम्मेदारी उठानी होगी। वरना कॉन्वेंट कल्चर में पढ़ने वाले बच्चे कब राम नाम भूलकर ईसा मसीह के हो जाएंगे ये लोगों को पता भी नहीं चलेगा।
Christian conversion in Chhattisgarh
कौन और क्यों कर रहे धर्म परिवर्तन
मीडियो रिपोर्ट के अनुसार, प्रदेश की मूल आदिवासी जातियों जिसमें गोंड़, उरांव, मुरिया, मुड़िया, अबूझमाड़िया हैं। ये लोग तेजी से ईसाई धर्म की ओर आकर्षित हो रहे हैं। सवाल यह है कि आखिर आदिवासी क्यों ईसाई बन रहे हैं। इसके दो कारण है।
ईसाई धर्म अपना चुके लोग कहते हैं कि उनकी, उनके माता-पिता, परिजनों की बीमारी में चर्च की प्रार्थना बहुत असरकारक रही।
इससे ठीक उलट मूलधर्म के आदिवासियों का कहना है कि प्रार्थना, दिखावा है। चर्च की ओर से ईसाई बन चुके लोगों को मुफ्त शिक्षा, अनाज, इलाज, पैसे दिए जाते हैं। कई युवकों को चर्च ने मोटरसाइकिल दिलाई, कई को हर महीने तनख्वाह भी दी जाती है।