CG Traditional Festivals
रायपुर। छत्तीसगढ़ में मनाया जाने वाला छेरछेरा पर्व कृषि प्रधान संस्कृति का प्रतीक है, जो पौष पूर्णिमा के दिन धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्यौहार न केवल उत्सव और दानशीलता की परंपरा को आगे बढ़ाता है, बल्कि छत्तीसगढ़ की सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक एकता को भी मजबूती प्रदान करता है।
-
छेरछेरा की परंपरा
छेरछेरा का पर्व तब मनाया जाता है, जब किसान अपनी फसल की कटाई और मिसाई पूरी कर घरों में अनाज का भंडारण कर लेते हैं। यह दिन दान के लिए समर्पित होता है। ग्रामीण क्षेत्रों में लोग धान का दान करते हैं और इसे पुण्य का कार्य माना जाता है। बच्चे और युवा समूह बनाकर “छेरछेरा माई कोठी के धान ला हेर हेरा” गीत गाते हुए घर-घर जाते हैं। घरों में महिलाएं और परिवारजन श्रद्धा भाव से उन्हें धान, चावल, या अन्य अनाज दान में देते हैं।
-
उत्सव और भाईचारे की भावना
छत्तीसगढ़ के गली-मोहल्लों में बच्चों और युवाओं द्वारा गीत और नृत्य के आयोजन होते हैं। यह पर्व लोगों को आपस में जोड़ने और सामाजिक समरसता बढ़ाने का कार्य करता है। दान के माध्यम से न केवल जरूरतमंदों की मदद की जाती है, बल्कि इससे समुदाय में भाईचारे की भावना भी प्रबल होती है।
CG Traditional Festivals
-
छेरछेरा पर्व की पौराणिक मान्यताएं
छेरछेरा पर्व को लेकर कई पौराणिक और प्रचलित कथाएं जुड़ी हुई हैं। जनश्रुतियों के अनुसार, जब फसल खेतों से खलिहानों में आती है, तो आद्रा और पुनर्वसु नक्षत्र में यह पर्व मनाया जाता है। इसे अच्छी फसल की खुशी और अनाज के पवित्रता के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, छेरछेरा पर्व से शुभ कार्यों की शुरुआत भी होती है। ग्रामीण इलाकों में विवाह, गृह प्रवेश और अन्य धार्मिक अनुष्ठानों का यह विशेष समय होता है।
-
छत्तीसगढ़ की कृषि प्रधान संस्कृति का उत्सव
छत्तीसगढ़, जिसे “धान का कटोरा” कहा जाता है, एक कृषि प्रधान राज्य है। यहां के किसान अपनी मेहनत और फसल की पवित्रता को महत्व देते हुए इस पर्व को मनाते हैं। दान देने की यह परंपरा छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर है।
-
सामाजिक और धार्मिक महत्व
यह पर्व केवल एक सांस्कृतिक उत्सव नहीं है, बल्कि धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। छेरछेरा पर्व हमें दान, सेवा और एकता का संदेश देता है। यह त्योहार छत्तीसगढ़ की जीवन शैली, आस्था और परंपरागत मूल्यों को संरक्षित करता है।
छेरछेरा पर्व छत्तीसगढ़ के ग्रामीण समाज का ऐसा उत्सव है, जो न केवल खुशहाली और फसल की समृद्धि का प्रतीक है, बल्कि इसके माध्यम से सामाजिक एकता और सामूहिक सहभागिता की परंपरा को भी निभाया जाता है।