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BJP Saugat e Modi Campaign : सौगात-ए-मोदी, एक नई सियासी पहल या महज़ चुनावी रणनीति?

BJP Saugat e Modi Campaign

नई दिल्ली। रमजान का पाक महीना चल रहा था। देशभर में रोज़ेदार इफ्तार और सेहरी की तैयारियों में लगे थे। इसी दौरान भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने एक नई घोषणा कर दी—’सौगात-ए-मोदी’ अभियान। घोषणा के साथ ही पार्टी के कार्यकर्ता मुस्लिम बहुल इलाकों में सक्रिय हो गए। मस्जिदों और बस्तियों में जाने लगे। गरीब और ज़रूरतमंद मुसलमानों तक एक ख़ास ईद किट पहुंचाई जाने लगी, जिसमें नए कपड़े, सेवइयां, चावल, दाल, तेल और अन्य जरूरी सामान थे।

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32 लाख मुस्लिम परिवारों तक ये किट पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया। हर मस्जिद से 100 लोगों को मदद देने की योजना थी। बीजेपी के अल्पसंख्यक मोर्चा के 32,000 कार्यकर्ता इस काम में जुट गए। दिल्ली से लेकर लखनऊ, पटना, हैदराबाद, भोपाल और जयपुर तक मस्जिदों के बाहर भाजपा कार्यकर्ताओं का जमावड़ा दिखने लगा। वे मुसलमानों को बताते कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चाहते हैं कि हर गरीब की ईद अच्छी हो।

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मोदी की सौगात या वोटों का सौदा?

भाजपा नेताओं ने इसे सबका साथ, सबका विकास की नीति का हिस्सा बताया। पार्टी के अल्पसंख्यक मोर्चा अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी बोले—“प्रधानमंत्री हर त्योहार में सबकी खुशी चाहते हैं।” अभियान के तहत ईद मिलन समारोह भी रखे गए। यहां भाजपा नेता मुस्लिम समुदाय से जुड़ने की कोशिश कर रहे थे।

लेकिन विपक्ष इसे चुनावी रणनीति मान रहा था। बिहार और उत्तर प्रदेश में चुनाव सिर पर थे। विपक्षी दलों को लगा कि यह भाजपा का नया सियासी दांव है।

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मुसलमानों का नजरिया?

कई मुस्लिम परिवारों ने सौगात-ए-मोदी किट मिलने पर खुशी जताई। वे बोले—”पहली बार कोई सरकार हमारे त्योहार का इतना ध्यान दे रही है।” लेकिन कुछ बुजुर्गों ने संदेह भी जताया।
लखनऊ के एक बुजुर्ग ने कहा—“पहले गोधरा हुआ, फिर मॉब लिंचिंग हुई, फिर CAA-NRC आया। अब ईद पर तोहफा दे रहे हैं। यह कैसा बदलाव है?”

क्या यह BJP की छवि बदल सकता है?

भाजपा का यह अभियान पहली बार नहीं था। इससे पहले पसमांदा मुसलमानों के बीच कई बैठकें हो चुकी थीं। पीएम मोदी खुद कह चुके हैं कि “गरीब मुसलमानों को मुख्यधारा में लाना भाजपा की प्राथमिकता है।”

लेकिन सवाल यह था कि क्या ये अभियान भाजपा के प्रति मुस्लिम समुदाय का भरोसा बढ़ा सकता है?
या फिर यह सिर्फ ईद के मौके पर “सॉफ्ट इमेज” बनाने की कोशिश थी?

भाजपा के रणनीतिकार मानते हैं कि यह पहल राजनीतिक रूप से असरदार साबित हो सकती है। लेकिन विपक्ष इसे “चुनावी प्रेम” कहकर खारिज कर रहा है।

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अगला कदम क्या होगा?

अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या भाजपा इस अभियान को स्थायी कल्याण योजना में बदलेगी या फिर यह सिर्फ चुनावी मौसम का अभियान बनकर रह जाएगा। क्या मुसलमान इसे भाजपा की नीयत में बदलाव मानेंगे या वोटबैंक की राजनीति समझेंगे?यह सियासी बिसात का नया खेल है, जिसमें ईद की मिठास घुली है, लेकिन राजनीति का तड़का भी लगा है।

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