BILASPUR NEWS
बिलासपुर। पांच साल पहले, आज के सत्ताधारी दल के नेता, जो उस समय विपक्ष में थे, रेत माफिया के खिलाफ जमकर आवाज उठा रहे थे। उन्होंने रेत माफिया पर अंकुश लगाने की मांग करते हुए घेराबंदी भी की थी। तखतपुर के विधायक ने तो सदन में अपनी कुर्सी दांव पर लगाते हुए कहा था कि अगर मंत्रीजी हवाई सर्वे करवाकर नदियों में पोकलेन, ट्रैक्टर और हाइवा नहीं दिखाते हैं तो वे अपनी विधायकी छोड़ देंगे।
नेताजी का दबाव काम आया और रेत माफिया पर ताबड़तोड़ छापामारी शुरू हुई। इस कार्रवाई से पड़ोसी नेताजी, जो माफिया से जुड़े हुए थे, के पेट में दर्द होने लगा। विधानसभा चुनाव के समय भी रेत घाटों को लेकर काफी कटुता देखने को मिली थी। कुछ लोगों ने रेत से तेल निकालने की सोचकर चुनाव में नेताजी का साथ दिया था, लेकिन रेत घाटों की चकबंदी ने उनका खेल बिगाड़ दिया। अब नेताजी कुछ भी कहते हुए नहीं बन रहा
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राज्य में सरकार बदल गई है। ये तो आपको भी अच्छी तरह पता है। हम जो बताने जा रहे हैं उससे शायद आप अनजान हैं या फिर जान ही नहीं रहे हैं। सीएम की टीम में एक मंत्री ऐसे भी हैं जो बात-बात पर धारा प्रवाह धारा ही बताते रहते हैं। कामकाज के सिलसिले में कार्यकर्ता धारा वाले मंत्रीजी के पास जाते हैं तो आवेदन पढ़ने के बाद नेताजी भादवि और सीआरपीसी की धारा बताने लगते हैं।
मतलब समझ रहे हैं ना। धारा बताते ही नियमों के फेर में ऐसे उलझाते हैं कि कार्यकर्ता दोबारा काम के सिलसिले में जाने से तौबा ही कर लेते हैं। खुद तो करते हैं जान पहचान वालों को भी सावधान करने से नहीं चूक रहे हैं। एक कार्यकर्ता ने मासूमियत से कहा कि हमें धारा से क्या लेना-देना। हम तो अपना काम लेकर गए थे। वह भी नहीं हुआ। धारा वाले नेताजी की बात निराली।
केसरिया रंग में रंगने तैयार
बिलासपुर जिला पंचायत अध्यक्ष भाजपा के हो गए हैं। कांग्रेसी शिविर में सुगबुगाहट के साथ ही इस बात की चर्चा होने लगी है कि केसरिया रंग में रंगने के लिए और कितने लोग कतार में हैं। चर्चा और अटकलबाजी का दौर ऐसा कि अपनों के बीच सफाई भी पेश करनी पड़ रही है। सफाई, शिकवा-शिकायत का दौर तो चलता रहेगा। एक पूर्व विधायक, तीन पार्षद, ब्लाक के पदाधिकारी आयाराम गयाराम बनने तैयार खड़े हैं।
होली के पहले ही ये सभी केसरिया रंग में रंग जाएंगे। जी हां। कांग्रेसी शिविर के लिए ब्रेक्रिंग न्यूज से कम नहीं है। ब्रेकिंग कहें या फिर हार्ट ब्रेक्रिंग। गयाराम बनने के बाद कितने का दिल टूटेगा यह तो छोड़िए। बोलने वालों की सुनें और आपको बताएं तो गयारामों से कितने खुश होंगे यह देखने वाली बात होगी। टीआरपी देखिए। चौक-चौराहों पर अभी से इसकी चर्चा होने लगी है। कुछ तो नाम भी गिनाने लग गए हैं।
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मेरा क्या है बताओ तो
जिला मुख्यालय का सरकारी कार्यालय हो या फिर मैदानी अमला। इनके बीच एक नेताजी का डायलाग इन दिनों जमकर प्रसारित हो रहा है। सरकारी दफ्तरों में तो कुछ ज्यादा ही। अफसर हो या फिर मुंह लगा मातहत। प्रदेश में अपनी सरकार है। जाहिर है सब-कुछ अपने तरीके से ही चलना है।
तभी तो सरकारी खरीदी हो या फिर निर्माण कार्य के लिए जारी होने वाला फंड। जैसे ही नेताजी को जानकारी मिलती है अफसरों का फोन घनघनाने लगता है। पहले इधर-उधर की बात और फिर सीधे मतलब की बात। अफसर से अपने अंदाज में पूछते हैं मेरा क्या है।