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Tuesday, October 14, 2025

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BASTAR DUSSEHRA FESTIVAL : बस्तर दशहरा की अनोखी परम्परा मावली परघाव रस्म, माता की डोली देखने उमड़ी हजारों श्रद्धालु की भीड़

BASTAR DUSSEHRA FESTIVAL

बस्तर। छत्तीसगढ़ प्रान्त में वैसे तो हर तीज त्यौहार की एक अनोखी परम्परा होती है। तो ऐसी कड़ी में आइये आपको विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व के बारे में बताते है। विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरे की सबसे महत्वपूर्ण मावली परघाव की रस्म शनिवार की रात अदा की गई। दो देवियों के मिलन के इस रस्म को जगदलपुर दंतेश्वरी मंदिर के प्रांगण कुटरूबाढ़ा में निभाई गई। वहीं इस रस्म को देखने के लिए हर साल की तरह शनिवार रात को भी हजारों श्रद्धालु की भीड़ इस अनोखी परम्परा को देखने शामिल हुई।

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परंपरा के मुताबिक, दंतेवाड़ा से मावली देवी की छत्र डोली और दंतेश्वरी के छत्र को जगदलपुर के दंतेश्वरी मंदिर लाया गया। दंतेवाड़ा से पहुंची माईजी की डोली और छत्र का भव्य स्वागत राजपरिवार सदस्य कमलचंद भंजदेव और बस्तरवासियों ने किया। आतिशबाजियां की गई, फूलों की बारिश की गई। परम्परा के अनुसार बस्तर राजपरिवार सदस्य कमलचंद भंजदेव ने माईजी की डोली की विधि-विधान से पूजा अर्चना की।

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जिसके बाद माईजी की डोली को दशहरा पर्व समापन होने तक मंदिर के भीतर रखा गया है। बस्तर दशहरा के दौरान होने वाली महत्वपूर्ण रस्म भीतर रैनी और बाहर रैनी, कुटुम जात्रा, काछन जात्रा में डोली और छत्र को शामिल किया जाएगा। आपको बता दें कि धार्मिक सहिष्णुता और सभी धर्मों के प्रति समादर का भाव रखने वाली सदियों पुरानी रस्म का नाम मावली परघाव है। मावली देवी के स्वागत को मावली परघाव कहते हैं। प्राचीन मान्यता के अनुसार लगभग 600 सालों से इस रस्म को धूमधाम से मनाया जाता है। यह परंपरा आज भी बस्तर में बखूबी निभाई जाती है

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वहीं आज रविवार को भीतर रैनी रस्म पूरी की जाएगी। 8 चक्कों वाले विजय रथ की परिक्रमा होगी। किलेपाल के ग्रामीण रथ खींचेंगे। रथ परिक्रमा के बाद भीतर रैनी की रस्म अदा की जाएगी, जिसमें ग्रामीण परंपरा अनुसार रथ की चोरी करेंगे। मावली परघाव रस्म को लेकर बस्तर राज परिवार के सदस्य कमलचंद भंजदेव ने बताया कि, बस्तर में अब तक जितने भी राजा थे सभी इस रस्म की अदायगी के समय कांटाबंद (राजा के सिर में फूलों का ताज) पहनकर ही माता की आराधना करने आते थे। वे भी इसी परंपरा को निभा रहे हैं। यह कांटाबंद का फूल बस्तर के जंगल में मिलता है। इसकी अपनी एक अलग विशेषता है।

कमलचंद भंजदेव ने कहा कि इसे पहनकर मां दंतेश्वरी और मां मावली के छत्र और डोली को प्रणाम कर कांधे पर उठाकर राज महल लाया हूं। माता बस्तर दशहरे में शामिल होंगी। जब तक माता की विदाई नहीं होती, तब तक माता राजमहल प्रांगण में ही रहेंगी। उन्होंने कहा कि, माता हमारी ईष्ट देवी हैं। बस्तर दशहरे में शामिल होने सदियों से आ रहीं हैं।

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मान्यता के अनुसार, देवी मावली कर्नाटक राज्य के मलवल्य गांव की देवी हैं, जो छिन्दक नागवंशी राजा द्वारा उनके बस्तर के शासनकाल में लाई गई थीं। छिंदक नागवंशी राजाओं ने 9वीं और 14वीं शताब्दी तक बस्तर में शासन किया। इसके बाद चालुक्य वंश के राजा अन्नम देव ने जब बस्तर में अपना नया राज्य स्थापित किया, तब उन्होंने देवी मावली को अपनी कुलदेवी के रूप में मान्यता दी। मावली देवी का बस्तर दशहरा पर्व में यथोचित सम्मान और स्वागत करने के लिए मावली परघाव रस्म शुरू की गई।

 

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