B.ed Exam 2025
कांकेर। छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में एक मां रमिता कोमा अपने बच्चे को दूध पिलाने के चलते मात्र 4 मिनट की देरी से परीक्षा केंद्र पहुंची और उसे परीक्षा में बैठने नहीं दिया गया। बता दें कि यह मामला 22 मई को पीजी कॉलेज में आयोजित बीएड और प्री डीएलएड परीक्षा के दौरान हुआ। रमिता कोमा परीक्षा की पहली पाली में शामिल होने के बाद बाहर आई और अपने बच्चे को दूध पिलाने लगीं। जैसे ही दूसरी पाली की परीक्षा शुरू होने की घंटी बजी, वह तुरंत लौटने लगीं, लेकिन जब तक वह पहुंचीं, तब तक गेट बंद हो चुका था।
वहीं रमिता का कहना है कि वह परीक्षा कक्ष तक पहुंच गई थीं, लेकिन गार्ड और परीक्षा केंद्र के कर्मचारियों ने उन्हें जबरन बाहर निकाल दिया। इतना ही नहीं, उन्हें परीक्षा अधीक्षक से बात करने तक की अनुमति नहीं दी गई। रमिता ने दुख के साथ कहा, “सिर्फ अपने बच्चे को दूध पिलाना मेरे लिए महंगा साबित हो गया।”
B.ed Exam 2025
रमिता अकेली नहीं थीं। ज्योति यादव नाम की एक और छात्रा भी ठीक 2 बजकर 4 मिनट पर परीक्षा केंद्र पहुंची थी, जब केवल उत्तर पुस्तिकाएं ही बांटी जा रही थीं और प्रश्नपत्र अभी वितरित नहीं किए गए थे। लेकिन उसे भी हाथ पकड़कर बाहर निकाल दिया गया। एक अन्य छात्रा डेमेश्वरी साहू दवा लेने गई थीं, लेकिन लौटने पर गेट बंद मिला और उन्हें भी परीक्षा से वंचित कर दिया गया।
छात्राओं का आरोप है कि परीक्षा केंद्र में दोहरे मापदंड अपनाए गए। सुबह की पाली में 10 मिनट की देरी से आने वाले परीक्षार्थियों को प्रवेश दिया गया, लेकिन दोपहर की पाली में 4 मिनट की देरी पर भी किसी को अंदर नहीं जाने दिया गया। इससे कई छात्राओं का पूरा साल बर्बाद हो गया।
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यह घटना न केवल प्रशासन की सख्ती पर सवाल खड़े करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि परीक्षा जैसे अहम मौकों पर मानवीय दृष्टिकोण और लचीलापन कितना जरूरी है। रमिता कोमा जैसी मां, जो जिम्मेदारी और सपनों के बीच संतुलन बना रही थीं, उन्हें इस तरह बाहर निकालना न केवल अमानवीय था बल्कि शिक्षा व्यवस्था की संवेदनहीनता को भी उजागर करता है।
इस घटना के बाद यह मांग उठ रही है कि ऐसे मामलों में प्रशासन को मानवीय दृष्टिकोण अपनाना चाहिए और विशेष परिस्थितियों के लिए स्पष्ट और न्यायसंगत नीति बनाई जानी चाहिए, ताकि भविष्य में किसी मां की ममता उसकी पढ़ाई और करियर की राह में बाधा न बने।
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