Ambedkar Hospital : मानव गरिमा पर गहरी चोट…! अंबेडकर अस्पताल में नवजात के पास चस्पा पोस्टर…लिखा- बच्चे की मां HIV पॉजिटिव…हाई कोर्ट सख्त…मुख्य सचिव से मांगा जवाब
Shubhra Nandi
Ambedkar Hospital
रायपुर, 11 अक्टूबर। Ambedkar Hospital : छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने रायपुर के डॉ. भीमराव अंबेडकर अस्पताल में हुई शर्मनाक और असंवेदनशील घटना पर कड़ा रुख अपनाया है। अस्पताल में एचआईवी पॉजिटिव मां के नवजात शिशु के पास उसके संक्रमण की जानकारी वाला पोस्टर लगाए जाने की घटना को कोर्ट ने मानव गरिमा का गंभीर उल्लंघन करार दिया है।
चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद की डिवीजन बेंच ने इस मामले को संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन मानते हुए मुख्य सचिव को 15 अक्टूबर तक व्यक्तिगत शपथपत्र दाखिल करने का निर्देश दिया है।
क्या है मामला?
रायपुर के प्रतिष्ठित डॉ. भीमराव अंबेडकर अस्पताल के गाइनो वार्ड में भर्ती एक एचआईवी पॉजिटिव मां और उसके नर्सरी वार्ड में रखे नवजात के पास एक पोस्टर चिपका दिया गया, जिसमें लिखा था- बच्चे की मां एचआईवी पॉजिटिव है।
जब नवजात के पिता बच्चे से मिलने पहुंचे, तो यह नोट देखकर भावुक होकर रो पड़े। इस अमानवीय कृत्य की खबर सामने आते ही पूरे प्रदेश में आक्रोश फैल गया और हाई कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए तत्काल सुनवाई शुरू कर दी।
हाई कोर्ट की सख्त टिप्पणी
कोर्ट ने कहा कि, यह कृत्य अत्यंत अमानवीय, असंवेदनशील और निंदनीय है। यह न केवल एक मां की पहचान उजागर करता है, बल्कि बच्चे को भी सामाजिक कलंक और भेदभाव के खतरे में डालता है। राज्य के सबसे बड़े अस्पताल में ऐसी लापरवाही कैसे हो सकती है?”
कोर्ट ने कहा कि यह घटना स्पष्ट रूप से निजता के अधिकार, सामाजिक सम्मान और संवैधानिक मूल्यों का हनन है। ऐसी घटनाएं न केवल कानूनी अपराध हैं, बल्कि समाज के मानवता के मूलभूत उसूलों के खिलाफ भी हैं।
मुख्य सचिव से मांगा शपथपत्र
हाई कोर्ट ने मुख्य सचिव को आदेश दिया है कि, 15 अक्टूबर 2025 तक व्यक्तिगत शपथपत्र प्रस्तुत करें। बताएं कि राज्य के सरकारी अस्पतालों में मरीजों की गोपनीयता और सम्मान को सुरक्षित रखने के लिए क्या व्यवस्थाएं हैं। यह भी स्पष्ट करें कि डॉक्टरों, नर्सों और पैरामेडिकल स्टाफ को संवेदनशीलता और कानूनी जिम्मेदारियों के लिए किस प्रकार प्रशिक्षित किया गया है
ऐसी गलती दोहराने से बचने के निर्देश
कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसी घटनाओं की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए, और शासन को सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में किसी भी मरीज की निजी जानकारी को इस तरह सार्वजनिक न किया जाए।
कोर्ट का आदेश तत्काल मुख्य सचिव को भेजे जाने का निर्देश दिया गया है, ताकि समयबद्ध कार्रवाई और जवाबदेही सुनिश्चित की जा सके।
अस्पताल प्रशासन की लापरवाही पर उठे सवाल
इस शर्मनाक घटना ने राज्य के सबसे बड़े अस्पताल की कार्यप्रणाली और स्टाफ की संवेदनशीलता की गंभीर कमी को उजागर कर दिया है। हाई कोर्ट की सख्ती के बाद अब निगाहें टिकी हैं कि क्या मुख्य सचिव समय पर और संतोषजनक जवाब देंगे और क्या शासन ऐसे मामलों की पुनरावृत्ति रोकने के लिए कोई ठोस कदम उठाएगा?