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Allahabad High Court : इलाहाबाद हाईकोर्ट का अहम फैसला, नाड़ा खोलना और प्राइवेट पार्ट छूना बलात्कार की कोशिश नहीं

Allahabad High Court

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक बेहद संवेदनशील मामले में अहम फैसला सुनाया है, जिसमें अदालत ने कहा कि किसी बच्ची का प्राइवेट पार्ट छूना और सलवार का नाड़ा तोड़ना भारतीय कानून के तहत बलात्कार की कोशिश (Attempt to Rape) की श्रेणी में नहीं आता। कोर्ट ने कहा कि यह हरकत जरूर यौन उत्पीड़न (Sexual Assault) है, लेकिन इसे बलात्कार की कोशिश के रूप में नहीं देखा जा सकता।

क्या था पूरा मामला?

यह केस उत्तर प्रदेश के एक जिले से जुड़ा है, जहां एक व्यक्ति पर आरोप लगा कि उसने एक नाबालिग बच्ची के साथ अश्लील हरकतें कीं। अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि आरोपी ने बच्ची की सलवार का नाड़ा तोड़ा और उसके प्राइवेट पार्ट को छुआ। इन घटनाओं के आधार पर पुलिस ने आरोपी के खिलाफ POCSO एक्ट के तहत बलात्कार की कोशिश सहित कई गंभीर धाराओं में मामला दर्ज किया।

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जब यह मामला हाईकोर्ट पहुंचा, तो अदालत ने तथ्यों की बारीकी से जांच की और पाया कि आरोपी ने भले ही नाबालिग बच्ची के साथ अनुचित हरकतें की हों, लेकिन ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है जिससे यह साबित हो कि उसने बलात्कार करने की कोशिश की थी। इसी आधार पर कोर्ट ने आरोपी पर से “बलात्कार की कोशिश” का आरोप हटा दिया और केवल यौन उत्पीड़न की धाराओं में मुकदमा चलाने की अनुमति दी।

कोर्ट ने क्या कहा?

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट कहा कि: “मात्र सलवार का नाड़ा तोड़ना और शरीर को छूना, बलात्कार की कोशिश नहीं माना जा सकता जब तक यह स्पष्ट रूप से सिद्ध न हो कि आरोपी ने आगे बढ़कर शारीरिक संबंध बनाने की मंशा से कोई ठोस प्रयास किया हो।”

फैसले पर उठे सवाल

इस फैसले के बाद समाज में कई तरह की प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। कुछ लोगों का कहना है कि यह फैसला POCSO एक्ट की मूल भावना के खिलाफ है, जो बच्चों को हर प्रकार के यौन शोषण से सुरक्षा देता है। वहीं, कुछ कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि कोर्ट ने कानून की शब्दों के अनुसार व्याख्या की है और दोष साबित करने के लिए “इरादे और प्रयास” को आधार बनाया है।

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सामाजिक असर और भविष्य की चिंता

यह फैसला भविष्य में ऐसे मामलों पर गहरा असर डाल सकता है। अब अभियोजन पक्ष को बलात्कार की कोशिश के तहत मुकदमा दर्ज करने और उसे सिद्ध करने में अतिरिक्त सावधानी बरतनी होगी। इस फैसले के बाद यौन शोषण के मामलों में आरोपी को कड़ी सजा दिलवाना और मुश्किल हो सकता है, क्योंकि अभियोजन को अब केवल हरकत नहीं, बल्कि आरोपी की “नियत” और “ठोस प्रयास” को भी सिद्ध करना होगा।

बाल अधिकार कार्यकर्ताओं की चिंता

बाल अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठनों का कहना है कि इस तरह के फैसलों से समाज में यह संदेश जा सकता है कि बच्चों के साथ अश्लील हरकत करने वालों को गंभीर सजा नहीं मिलेगी। उन्होंने सरकार से अपील की है कि कानून की व्याख्या को स्पष्ट किया जाए ताकि बच्चों को पूरी सुरक्षा मिल सके।

 

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