Abar Mata Temple
छत्तरपुर। शारदीय नवरात्र का पावन महीना शुरू हो चुका है। यह हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है, जिसे हर साल आश्विन माह में मनाया जाता है। नवरात्रि के दौरान माता दुर्गा की पूजा करने का खास महत्व होता है। धार्मिक मान्यताओ के अनुसार, जो भी व्यक्ति नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की पूजा करते हैं, उन्हें देवी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इसके अलावा इन दिनों देवी मां के दर्शन के लिए मंदिरों में भक्तों की अच्छी-खासी भीड़ देखने को मिलती है।
हमारा भारत मंदिरों का देश है। यहां हर कदम पर कई छोटे-बड़े मंदिर मिलते हैं, जिनका अपना सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व होता है। माता के हर मंदिर के पीछे कोई न कोई मान्यता कोई कहानी कोई रहस्य जरूर होता है। ऐसा ही एक रहस्य जुड़ा है बुंदेलखंड की अबार माता के मंदिर से, जो बंडा क्षेत्र में सागर-छतरपुर की सीमा पर स्थित है। इस मंदिर को लेकर एक कहानी बुंदेली वीर लड़ाके आल्हा और ऊदल से जुड़ी है। आज हम आपको माता के इस मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां आने से जीवन के सारे क्लेश दूर हो जाते हैं।
Abar Mata Temple
बुंदेलखंड के छतरपुर जिले में स्थित अबार माता का मंदिर अपने आप में बेहद अनूठा है। लगभग साढ़े आठ सौ साल पुराने इस मंदिर के बारे में लोगों की आस्था इतनी गहरी है उनका मानना है कि यहां आने भर से सारे जीवन के सारे क्लेश दूर हो जाते हैं। आस्था है कि इस चट्टान को छूने से भक्तों की मुराद पूरी होती है। लेकिन इस चट्टान पर हाथ रखने का एक अपना ही अलग तरीक़ा है। पहले हाथ को उल्टा रखकर मन्नत मांगो और पूरी हो जाने पर सीधे रखकर मां को धन्यवाद दो।
इस मंदिर में एक चट्टान मौजूद है, जिसके बारे में कहा जाता है कि कुछ समय पहले तक ये केवल कुछ फीट की थी। लेकिन धीरे-धीरे इसका आकार बढ़ते-बढ़ते आज क़रीब सत्तर फ़ीट तक पहुंच चुका है। कहा जाता है कि इस चट्टान को छूने से ही निःसंतान को संतान की प्राप्ति हो जाती है। लोग इस चट्टान का जुड़ाव भगवान शिव से मानते हैं क्योंकि कहा जाता है कि हर महाशिवरात्रि के दिन इसकी लंबाई एक तिल के बराबर बढ़ जाती है। जिसके बाद कुछ साल पहले इस चट्टान की चोटी पर माता की छोटी सी मढिया बनाकर मूर्ति स्थापित की गई, जिसके बाद इसका बढ़ना रुक गया।
Abar Mata Temple
डकैतों की माता का मंदिर
बता दें कि इस मंदिर को डकैतों की माता का मंदिर भी कहा जाता है। बुंदेलखंड के वीर आल्हा-ऊदल ने इस मंदिर को बनवाया था। करीब साढ़े 800 साल पहले वे महोबा से माधौगढ़ जा रहे थे। पहुंचने में देर यानि बुंदेली भाषा में अबेर हो जाने पर उन्होंने यहीं बियाबान जंगल में ही अपना डेरा डाल दिया। रात में जब उन्होंने अपनी आराध्य देवी का आह्वान किया तो मां ने उन्हें दर्शन देकर इसी स्थान पर मंदिर बनवाने की प्रेरणा दी। माता की प्रेरणा से उन्होंने यहां चट्टान पर मां की मढ़िया बनावा कर प्रतिमा स्थापित कराई। तभी से यहां मां को अबार माता के नाम जाना जाने लगा।
बुंदेलखंड के दस्यु युग में दुर्दांत और खूंखार डांकू इसी मंदिर में माता के दरबार में हाजरी लगाते थे। जिनमें पूजा बब्बा, मूरत सिंह, देवी सिंह जैसे डकैतों से लेकर ग्वालियर झांसी के डकैत भी यहां आते थे। तीन जिलों की सीमाओं से लगा घने जंगली पहाड़ों में बसा यह मंदिर उनके लिए वाकई एक सुरक्षित स्थान रहा होगा जो इस स्थान को उनके अनुकूल तार्किक रूप से सही माना जा सकता है। वहीं चट्टान से बने इस मंदिर की संरचना भी बहुत रोचक और अनोखी है। यहां कोई छिपा हो तो उसे ढूंढना मुश्किल होगा।
अबार माता के मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको लगभग 50 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं। नवरात्रि के दिनों में दूर-दूर से यहां श्रद्धालु मां के दर्शन के लिए आते हैं। यहां पर प्रत्येक वैशाख माह में एक विशाल मेला लगता है जो 15 दिनों तक चलता है। नवरात्रि में अबार माता का हर दिन श्रंगार होता है। पंचमी और अष्टमी को विशेष श्रंगार किया जाता है।
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