रायपुर, 31 अक्टूबर। Vishnu Dev Route : छत्तीसगढ़ के जशपुर ज़िले के आदिवासी युवाओं ने भारतीय पर्वतारोहण के इतिहास में नया अध्याय रच दिया है। इन युवाओं ने हिमाचल प्रदेश की दूहंगन घाटी (मनाली) में स्थित 5,340 मीटर ऊँची जगतसुख पीक पर एक नया आल्पाइन रूट खोला है, जिसे मुख्यमंत्री विष्णु देव साय की पहल के सम्मान में “विष्णु देव रूट” नाम दिया गया है।
सबसे खास बात यह रही कि टीम ने यह कठिन चढ़ाई सिर्फ 12 घंटे में और पूरी तरह आल्पाइन शैली में पूरी की — बिना किसी फिक्स रोप या सपोर्ट स्टाफ के। यह शैली पर्वतारोहण की सबसे कठिन और आत्मनिर्भर विधि मानी जाती है।

जशपुर प्रशासन की पहल से संभव हुआ अभियान
यह ऐतिहासिक अभियान सितंबर 2025 में जशपुर प्रशासन और पहाड़ी बकरा एडवेंचर के सहयोग से आयोजित हुआ। इसमें हीरा ग्रुप सहित कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय संस्थानों ने सहयोग दिया।
टीम के पाँचों पर्वतारोही पहली बार हिमालय पहुँचे थे। उन्होंने प्रशिक्षण लिया “देशदेखा क्लाइम्बिंग एरिया” में — जो जशपुर प्रशासन द्वारा विकसित भारत का पहला प्राकृतिक एडवेंचर खेलों के लिए समर्पित प्रशिक्षण क्षेत्र है।
प्रशिक्षण की रूपरेखा तैयार की गई भारतीय पर्वतारोही स्वप्निल राचेलवार, न्यूयॉर्क के डेव गेट्स, और रनर्स XP के निदेशक सागर दुबे द्वारा। दो महीनों की कठिन तैयारी और बारह दिन के अभ्यास पर्वतारोहण के बाद टीम ने यह मिशन पूरा किया।

कठिन परिस्थितियों में सफलता
अभियान प्रमुख स्वप्निल राचेलवार के अनुसार, मौसम बेहद खराब था, दृश्यता सीमित थी और ग्लेशियरों में छिपी दरारें लगातार चुनौती दे रही थीं। इसके बावजूद टीम ने दृढ़ संकल्प से नई राह बनाई।
स्पेन के विख्यात पर्वतारोही और वर्ल्ड कप कोच टोती वेल्स, जो इस अभियान के तकनीकी सलाहकार रहे, ने कहा —
“इन युवाओं ने, जिन्होंने जीवन में कभी बर्फ नहीं देखी थी, हिमालय में नया मार्ग खोला है। यह साबित करता है कि सही अवसर और प्रशिक्षण मिलने पर भारत के ग्रामीण और आदिवासी युवा भी विश्वस्तरीय पर्वतारोही बन सकते हैं।”
नई चोटियाँ और नए नाम
“विष्णु देव रूट” के अलावा टीम ने दूहंगन घाटी में सात नई क्लाइम्बिंग रूट्स भी खोले। इनमें सबसे बड़ी उपलब्धि रही 5,350 मीटर ऊँची ‘छुपा रुस्तम पीक’ की पहली सफल चढ़ाई। इस मार्ग को ‘कुर्कुमा (Curcuma)’ नाम दिया गया — जो हल्दी का वैज्ञानिक नाम है, और भारतीय परंपरा में सहनशक्ति व उपचार का प्रतीक माना जाता है।
टीम और सहयोगी संस्थाएँ
अभियान का नेतृत्व स्वप्निल राचेलवार ने किया, सह-नेता रहे राहुल ओगरा और हर्ष ठाकुर। जशपुर के पर्वतारोही दल में रवि सिंह, तेजल भगत, रुसनाथ भगत, सचिन कुजुर और प्रतीक नायक शामिल थे।
प्रशासनिक सहयोग डॉ. रवि मित्तल (IAS), रोहित व्यास (IAS), शशि कुमार (IFS) और अभिषेक कुमार (IAS) द्वारा दिया गया।
तकनीकी सहायता डेव गेट्स (USA), अर्नेस्ट वेंटुरिनी, मार्टा पेड्रो (स्पेन), केल्सी (USA) और ओयविंड वाई. बो (नॉर्वे) ने दी। डॉक्यूमेंटेशन और फोटोग्राफी ईशान गुप्ता की कॉफी मीडिया टीम द्वारा की गई।
मुख्य प्रायोजक रहे पेट्ज़ल, एलाइड सेफ्टी इक्विपमेंट, रेड पांडा आउटडोर्स, रेक्की आउटडोर्स, अडवेनम एडवेंचर्स, जय जंगल प्राइवेट लिमिटेड, आदि कैलाश होलिस्टिक सेंटर, गोल्डन बोल्डर, क्रैग डेवलपमेंट इनिशिएटिव और मिस्टिक हिमालयन ट्रेल।

मुख्यमंत्री ने दी बधाई
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने इस उपलब्धि पर बधाई देते हुए कहा — “भारत का भविष्य गाँवों से निकलकर दुनिया की ऊँचाइयों तक पहुँच सकता है। जशपुर के इन युवाओं ने यह सिद्ध कर दिया है।”
एडवेंचर टूरिज़्म की नई दिशा
यह उपलब्धि न केवल एक पर्वतारोहण सफलता है, बल्कि इस सोच का प्रतीक भी है कि भारत के ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्र भी विश्वस्तरीय खेल प्रतिभा का केंद्र बन सकते हैं। अब जशपुर को सतत एडवेंचर और इको-टूरिज़्म हब के रूप में विकसित करने की दिशा में प्रयास तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं।


