धार्मिक डेस्क, 09 सितंबर। Vishwakarma Puja : इस वर्ष विश्वकर्मा पूजा 17 सितंबर को मनाई जाएगी। झारखंड, बिहार, बंगाल, उत्तर प्रदेश समेत देश के कई राज्यों में यह पर्व विशेष रूप से मनाया जाता है। विश्वकर्मा पूजा में औजारों, लोहे और मशीनों की पूजा की जाती है क्योंकि मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा ने रावण की स्वर्ण लंका से लेकर भगवान श्रीकृष्ण की द्वारका नगरी तक भव्य निर्माण किए थे। इस दिन वाहन, मशीनें और औजार पूजित होते हैं जिससे व्यवसाय और कार्यों में प्रगति होती है।
पूजा का शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, 17 सितंबर की सुबह 08:12 बजे सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करेगा। इसके बाद सुबह 08:15 बजे से दोपहर 12:50 बजे तक पूजा का शुभ मुहूर्त माना गया है। इस समय विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
बन रहा है 100 वर्षों बाद विशेष संयोग
इस बार विश्वकर्मा पूजा पर 100 सालों बाद एक विशेष योग बन रहा है, जिसमें अमृत सिद्धि योग, सर्वार्थ सिद्धि योग, गुरु पुष्य योग, शिवयोग और एकादशी का संगम हो रहा है। यह अनोखा योग पूजा की महत्ता को कई गुना बढ़ा देगा और विशेष फलदायक माना जाएगा।
विश्वकर्मा पूजा का इतिहास और महत्व
विश्वकर्मा पूजा को ‘श्रमिकों का पर्व’ भी कहा जाता है। यह दिन कारीगरों, शिल्पकारों, इंजीनियरों और तकनीकी क्षेत्र से जुड़े सभी कामगारों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान विश्वकर्मा को सृष्टि का प्रथम वास्तुकार और देवशिल्पी माना गया है। वे स्वर्गलोक के इंद्रप्रासाद, विष्णु का सुदर्शन चक्र, शिव का त्रिशूल, रावण की स्वर्ण लंका, पांडवों का इंद्रप्रस्थ और श्रीकृष्ण की द्वारका जैसे महाशिल्पों के निर्माता हैं।
आधुनिक समय में भी है पूजा की प्रासंगिकता
आज के युग में फैक्ट्री, वर्कशॉप, दफ्तर और वाहन मालिक भी अपने उपकरणों, मशीनों और औजारों की पूजा करते हैं। यह पर्व न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि मेहनतकश लोगों के परिश्रम और कौशल का सम्मान भी करता है।
विश्वकर्मा पूजा (Vishwakarma Puja) का यह पावन दिन हम सभी को अपने कार्यों में लगन और समर्पण की प्रेरणा देता है, ताकि हम अपनी मेहनत और तकनीकी दक्षता से समाज और देश की प्रगति में योगदान दे सकें।